कबीर मंदिर ढहि पड़ी -कबीर: Difference between revisions
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Latest revision as of 07:28, 7 November 2017
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कबीर मंदिर ढहि पड़ी, ईंट भई सैवार। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! अद्भुत स्रष्टा ने इस सुन्दर शरीर रूपी मंदिर को बनाया है, किन्तु एक दिन वह नष्ट-भ्रष्ट हो जाता है और उसकी हड्डियों पर, जहाँ वह दफनाया जाता है, घास-फूस जम जाती है। उसका निर्माता उसी शरीर (मंदिर) को फिर बनाने के लिए नहीं मिलता।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख