दुखिया मूवा दुख कौं -कबीर: Difference between revisions
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दुखिया मूवा | दुखिया मूवा दु:ख कौं, सुखिया सुख कौं झूरि। | ||
सदा अनंदी राँम के, जिनि सुख-दुख मेल्हे दूरि॥ | सदा अनंदी राँम के, जिनि सुख-दुख मेल्हे दूरि॥ | ||
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Latest revision as of 14:00, 2 June 2017
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दुखिया मूवा दु:ख कौं, सुखिया सुख कौं झूरि। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! दु:खी व्यक्ति दु:ख के कारण पीड़ित रहता है और सुखी अधिक सुख की खोज में चिन्तित रहता है। कबीर कहते हैं कि राम के भक्त, जिन्होंने दु:ख-सुख के द्वन्द्व का त्याग दिया है; सदा आनन्द में रहते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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