रचनाहार कौं चीन्हि लै -कबीर: Difference between revisions
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Latest revision as of 07:29, 7 November 2017
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रचनाहार कौं चीन्हि लै, खाबे कौं क्या रोइ। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! तू अपने स्रष्टा को पहचान। खाने के लिए क्यों रोता है? अपने हृदय रूपी मन्दिर में प्रविष्ट होकर तू प्रत्यग्राम्य को पहचान और विश्वास रूपी चादर ओढ़कर सुख की नींद सो अर्थात् निश्चिन्त हो जा।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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