प्रकाशवीर शास्त्री: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
Line 45: | Line 45: | ||
[[पंजाब]] में [[प्रताप सिंह कैरो|सरदार प्रताप सिंह कैरो]] के नेतृत्व में कार्य कर रही कांग्रेस सरकार ने [[हिन्दी]] का विनाश करने की योजना बनाई। आर्य समाज ने पूरा यत्न हिन्दी को बचाने का किया किन्तु जब कुछ बात न बनी तो यहां हिन्दी रक्षा समिति ने [[सत्याग्रह आन्दोलन]] करने का निर्णय लिया तथा शीघ्र ही सत्याग्रह का शंखनाद 1958 ईस्वी में हो गया। इन्होंने भी इस समय अपनी आर्य समाज के प्रति निष्ठा व कर्तव्य दिखाते हुए सत्याग्रह में भाग लिया। इस आन्दोलन ने इनको आर्य समाज का सर्वमान्य नेता बना दिया। | [[पंजाब]] में [[प्रताप सिंह कैरो|सरदार प्रताप सिंह कैरो]] के नेतृत्व में कार्य कर रही कांग्रेस सरकार ने [[हिन्दी]] का विनाश करने की योजना बनाई। आर्य समाज ने पूरा यत्न हिन्दी को बचाने का किया किन्तु जब कुछ बात न बनी तो यहां हिन्दी रक्षा समिति ने [[सत्याग्रह आन्दोलन]] करने का निर्णय लिया तथा शीघ्र ही सत्याग्रह का शंखनाद 1958 ईस्वी में हो गया। इन्होंने भी इस समय अपनी आर्य समाज के प्रति निष्ठा व कर्तव्य दिखाते हुए सत्याग्रह में भाग लिया। इस आन्दोलन ने इनको आर्य समाज का सर्वमान्य नेता बना दिया। | ||
====अखिल भारतीय आर्य उपदेशक सम्मेलन==== | ====अखिल भारतीय आर्य उपदेशक सम्मेलन==== | ||
इस समय आर्य समाज के उपदेशकों की स्थिति कुछ अच्छी न थी। इनकी स्थिति को सुधारने के लिए इन्होंने अखिल भारतीय आर्य उपदेशक सम्मेलन स्थापित किया तथा [[लखनऊ]] तथा [[हैदराबाद]] में इसके दो सम्मेलन भी आयोजित किये। 1962 तथा फिर 1967 में फिर दो बार आप स्वतन्त्र प्रत्याशी स्वरूप [[लोकसभा]] के लिए चुने गए। एक सांसद के रूप में आपने [[आर्य समाज]] के बहुत-से कार्य निकलवाये। | इस समय आर्य समाज के उपदेशकों की स्थिति कुछ अच्छी न थी। इनकी स्थिति को सुधारने के लिए इन्होंने अखिल भारतीय आर्य उपदेशक सम्मेलन स्थापित किया तथा [[लखनऊ]] तथा [[हैदराबाद]] में इसके दो सम्मेलन भी आयोजित किये। 1962 तथा फिर 1967 में फिर दो बार आप स्वतन्त्र प्रत्याशी स्वरूप [[लोकसभा]] के लिए चुने गए। एक [[सांसद]] के रूप में आपने [[आर्य समाज]] के बहुत-से कार्य निकलवाये। | ||
====विश्व हिन्दी सम्मेलन==== | ====विश्व हिन्दी सम्मेलन==== |
Revision as of 08:29, 29 November 2015
प्रकाशवीर शास्त्री
| |
पूरा नाम | प्रकाशवीर शास्त्री |
अन्य नाम | ओमप्रकाश त्यागी (वास्तविक नाम) |
जन्म | 30 दिसम्बर, 1923 |
जन्म भूमि | गाँव रेहड़ा, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 23 नवम्बर, 1977 |
मृत्यु स्थान | उत्तर प्रदेश |
अभिभावक | पिता- श्री दिलीप सिंह त्यागी |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | प्रकाशवीर शास्त्री का नाम भारतीय राजनीति में उच्चकोटि के भाषण देने वालों में लिया जाता है। |
शिक्षा | एम.ए. (स्नातकोत्तर) |
विद्यालय | आगरा विश्वविद्यालय |
भाषा | हिन्दी |
अन्य जानकारी | प्रकाशवीर शास्त्री संस्कृत के विद्वान् और आर्यसमाज के नेता के रूप में भी प्रसिद्ध थे। ये तीन बार (दूसरी, तीसरी और चौथी) लोकसभा के सांसद रहे। |
प्रकाशवीर शास्त्री (अंग्रेज़ी: Prakash Vir Shastri, जन्म- 30 दिसम्बर, 1923, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 23 नवम्बर, 1977) भारतीय संसद के लोकसभा सदस्य थे। ये संस्कृत के विद्वान् और आर्यसमाज के नेता के रूप में भी प्रसिद्ध थे। इनका वास्तविक नाम 'विद्या शंकर शास्त्री' था। प्रकाशवीर शास्त्री का नाम भारतीय राजनीति में उच्चकोटि के भाषण देने वालों में लिया जाता है। प्रकाशवीर के भाषणों में तर्क बहुत शक्तिशाली होते थे। उनके विरोधी भी उनके प्रशंसक बन जाते थे। ऐसा माना जाता है कि एक बार भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि प्रकाशवीर जी उनसे भी बेहतर वक्ता थे।
जीवन परिचय
प्रकाशवीर शास्त्री का जन्म 30 दिसम्बर, 1923 को उत्तर प्रदेश के गाँव रेहड़ा में हुआ। वह किशोरावस्था से ही राजनीति में सक्रिय हो गये और इसी बीच आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए. (स्नातकोत्तर) की डिग्री प्राप्त की। बाद में प्रकाशवीर गुरुकुल वृन्दावन के कुलपति बने। उन्हें 'शास्त्री' की उपाधि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से प्राप्त हुई।
कार्यक्षेत्र
प्रकाशवीर शास्त्री ने हिंदी, धर्मांतरण, अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों तथा पांचवें और छठे दशक की अनेक ज्वलंत समस्याओं पर अपने बेबाक विचार व्यक्त किए। 1957 में आर्य समाज द्वारा संचालित हिंदी आंदोलन में उनके भाषणों ने जबर्दस्त जान फूंक दी थी। सारे देश से हजारों सत्याग्रही पंजाब आकर गिरफ्तारियाँ दे रहे थे। सन् 1958 में स्वतंत्र रूप से लोकसभा सांसद बनकर संसद में गये। प्रकाशवीर शास्त्री संयुक्त राज्य संगठन में हिन्दी बोलने वाले पहले भारतीय थे जबकि दूसरे अटल बिहारी वाजपेयी।
आर्य समाज के समर्थक
प्रकाशवीर शास्त्री, स्वामी दयानन्द जी तथा आर्य समाज के सिद्धान्तों में पूरी आस्था रखते थे। इस कारण ही आर्य समाज की अस्मिता को बनाए रखने के लिए आपने 1939 में मात्र 16 वर्ष की आयु में ही हैदराबाद के धर्म युद्ध में भाग लेते हुए सत्याग्रह किया तथा जेल गये। इनकी आर्य समाज के प्रति अगाध आस्था थी, इस कारण ये अपनी शिक्षा पूर्ण करने पर आर्य प्रतिनिधि सभा उतर प्रदेश के माध्यम से उपदेशक स्वरूप कार्य करने लगे। आप इतना ओजस्वी व्याख्यान देते थे कि कुछ ही समय में इनका नाम देश के दूरस्थ भागों में चला गया और इनके व्याख्यान के लिए इनकी देश के विभिन्न भागों से माँग होने लगी।
हिन्दी रक्षा समिति
पंजाब में सरदार प्रताप सिंह कैरो के नेतृत्व में कार्य कर रही कांग्रेस सरकार ने हिन्दी का विनाश करने की योजना बनाई। आर्य समाज ने पूरा यत्न हिन्दी को बचाने का किया किन्तु जब कुछ बात न बनी तो यहां हिन्दी रक्षा समिति ने सत्याग्रह आन्दोलन करने का निर्णय लिया तथा शीघ्र ही सत्याग्रह का शंखनाद 1958 ईस्वी में हो गया। इन्होंने भी इस समय अपनी आर्य समाज के प्रति निष्ठा व कर्तव्य दिखाते हुए सत्याग्रह में भाग लिया। इस आन्दोलन ने इनको आर्य समाज का सर्वमान्य नेता बना दिया।
अखिल भारतीय आर्य उपदेशक सम्मेलन
इस समय आर्य समाज के उपदेशकों की स्थिति कुछ अच्छी न थी। इनकी स्थिति को सुधारने के लिए इन्होंने अखिल भारतीय आर्य उपदेशक सम्मेलन स्थापित किया तथा लखनऊ तथा हैदराबाद में इसके दो सम्मेलन भी आयोजित किये। 1962 तथा फिर 1967 में फिर दो बार आप स्वतन्त्र प्रत्याशी स्वरूप लोकसभा के लिए चुने गए। एक सांसद के रूप में आपने आर्य समाज के बहुत-से कार्य निकलवाये।
विश्व हिन्दी सम्मेलन
वर्ष 1975 में प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन, जो नागपुर में सम्पन्न हुआ, में भी इन्होंने खूब कार्य किया तथा आर्य प्रतिनिधि सभा मंगलवारी नागपुर के सभागार में, सम्मेलन में पधारे आर्यों की एक सभा का आयोजन भी किया। इस सभा में (हिन्दी सम्मेलन में पंजाब के प्रतिनिधि स्वरूप भाग लेने के कारण) मैं भी उपस्थित था, आपके भाव प्रवाह व्याख्यान से जन जन भाव विभोर हो गया।[1]
विदेश यात्रा
पण्डित प्रकाशवीर शास्त्री ने अनेक देशों में भ्रमण किया तथा जहां भी गए, वहां आर्य समाज का सन्देश साथ लेकर गये तथा सर्वत्र आर्य समज के गौरव को बढ़ाने के लिए सदा प्रयत्नशील रहे। जिस आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तर प्रदेश के उपदेशक बनकर आपने कार्यक्षेत्र में कदम बढ़ाया था, उस आर्य प्रतिनिधि सभा उतर प्रदेश के आप अनेक वर्ष तक प्रधान रहे। आप के ही पुरुषार्थ से मेरठ, कानपुर तथा वाराणसी में आर्य समाज स्थापना शताब्दी सम्बन्धी सम्मेलनों को सफलता मिली। इतना ही नहीं आप की योग्यता के कारण सन् 1974 इस्वी में इन्हें परोपकारिणी सभा का सदस्य मनोनीत किया गया। इनका जीवन यात्राओं में ही बीता तथा अन्त समय तक यात्राएं ही करते रहे। अन्त में जयपुर से दिल्ली की ओर आते हुए एक रेल दुर्घटना हुई। इस रेल गाड़ी में आप भी यात्रा कर रहे थे। इस दुर्घटना के कारण 23 नवम्बर, 1977 इस्वी को इनकी जीवन यात्रा भी पूर्ण हो गई तथा आर्य समाज का यह महान योद्धा हमें सदा के लिए छोड़ कर चला गया।[1]
लोकसभा सांसद
ये तीन बार (दूसरी, तीसरी और चौथी) लोकसभा के सांसद रहे।
निधन
संस्कृत भाषा के विद्वान् और आर्यसमाज के इस नेता का निधन 23 नवम्बर 1977 को उत्तर प्रदेश में हुआ।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 पण्डित प्रकाश वीर शास्त्री (हिन्दी) आर्य मंतव्य। अभिगमन तिथि: 21 दिसम्बर, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख