वनस्थली विद्यापीठ: Difference between revisions
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'''वनस्थली विद्यापीठ''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Banasthali Vidyapith'') [[राजस्थान]] के [[टोंक ज़िला|टोंक ज़िले]] की निवाई में स्थित है। यह विद्यापीठ महिला शिक्षा की राष्ट्रीय संस्था है, जहाँ शिशु कक्षा से लेकर स्नातकोत्तर शिक्षण एंव अनुसंधान कार्य हो रहा है। विद्यापीठ को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम की धारा तीन के अधीन [[भारत सरकार]] द्वारा विश्वविद्यालय मान्य संस्थान घोषित किया गया है। यह विद्यापीठ 'एसोसिएशन ऑफ़ इण्डियन यूनिवर्सिटीज' तथा 'एसोसिएशन ऑफ़ कॉमनवेल्थ यूनिवर्सिटीज' का सदस्य है। | '''वनस्थली विद्यापीठ''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Banasthali Vidyapith'') [[राजस्थान]] के [[टोंक ज़िला|टोंक ज़िले]] की निवाई में स्थित है। यह विद्यापीठ महिला शिक्षा की राष्ट्रीय संस्था है, जहाँ शिशु कक्षा से लेकर स्नातकोत्तर शिक्षण एंव अनुसंधान कार्य हो रहा है। विद्यापीठ को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम की धारा तीन के अधीन [[भारत सरकार]] द्वारा विश्वविद्यालय मान्य संस्थान घोषित किया गया है। यह विद्यापीठ 'एसोसिएशन ऑफ़ इण्डियन यूनिवर्सिटीज' तथा 'एसोसिएशन ऑफ़ कॉमनवेल्थ यूनिवर्सिटीज' का सदस्य है। | ||
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Latest revision as of 12:27, 22 December 2017
thumb|250px|वनस्थली विद्यापीठ का प्रतीक चिह्न वनस्थली विद्यापीठ (अंग्रेज़ी: Banasthali Vidyapith) राजस्थान के टोंक ज़िले की निवाई में स्थित है। यह विद्यापीठ महिला शिक्षा की राष्ट्रीय संस्था है, जहाँ शिशु कक्षा से लेकर स्नातकोत्तर शिक्षण एंव अनुसंधान कार्य हो रहा है। विद्यापीठ को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम की धारा तीन के अधीन भारत सरकार द्वारा विश्वविद्यालय मान्य संस्थान घोषित किया गया है। यह विद्यापीठ 'एसोसिएशन ऑफ़ इण्डियन यूनिवर्सिटीज' तथा 'एसोसिएशन ऑफ़ कॉमनवेल्थ यूनिवर्सिटीज' का सदस्य है।
इतिहास
वनस्थली विद्यापीठ का उद्भव विशिष्ट घटनाओं की परिविति है। ग्रामपुर्निर्माण का कार्यक्रम प्रारंभ करने और साथ ही रचनात्मक कार्यक्रम के माध्यम से सार्वजनिक कार्यकर्ता तैयार करने की इच्छा, विचार और योजना मन में लिए हुए, वनस्थली विद्यापीठ के संस्थापक पंडित हीरालाल शास्त्री ने सन 1929 में भूतपूर्व जयपुर राज्य सरकार में गृह तथा विदेश विभाग के सचिव के सम्मानपूर्ण पद को त्यागकर 'बन्थली' (वनस्थली) जैसे सूदूर गांव को अपने भावी कार्यक्षेत्र के रूप में चुना था। उनके साथ उनकी पत्नी श्रीमती रतन शास्त्री भी इस कार्य के लिए आगे आईं।
यहाँ कार्य करते हुए हीरालाल शास्त्री एवं रतन शास्त्री की प्रतिभावान पुत्री 12 वर्षीय शांताबाई का अचानक 25 अप्रैल, 1935 को केवल एक दिन की अस्वस्थता के पश्चात निधन हो गया। शांताबाई से उन्हें समाज सेवा के कार्य की बड़ी उम्मीद थी। इस अभाव और रिक्तता की भावनात्मक पूर्ति के लिए उन्होंने अपने परिचितों, मित्रों की 5-6 बच्चियों को बुलाकर उनके शिक्षण का कार्य आरंभ कर दिया और इसके लिए 6 अक्टूबर, 1935 को शांताबाई कुटीर की स्थापना की, जो कि बाद में वनस्थली विद्यापीठ के रूप में विकसित हुई।
नामकरण तथा दर्जा
इसका नाम वनस्थली विद्यापीठ 1943 में रखा गया। यही वह वर्ष था, जब कि यहाँ स्नातक स्तर के पाठ्यक्रम प्रथम बार आरंभ हुए। यू.जी.सी. द्वारा वर्ष 1983 में विद्यापीठ को डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया गया। वनस्थली विद्यापीठ की प्रथम छात्रा प्रो. सुशीला व्यास को निदेशक बनाया गया। यू.जी.सी. ने विद्यापीठ के पाठ्यक्रमों, सहगामी क्रियाओं तथा छात्रों के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण करने वाली संस्था को डीम्ड यूनिवर्सिट संस्था का दर्जा दिया। वर्तमान में विद्यापीठ अकेली ऐसी संस्था है, जो कि शिशु कक्षा से लेकर पी.एच.डी. स्तर तक की शिक्षा प्रदान करती है। वनस्थली विद्यापीठ को राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यानन परिषद द्वारा 'ए' स्तर का दर्जा दिया गया है।
वनस्थली विद्यापीठ का जन्म, प्रेम और करुणा की भावना से हुआ। प्रारम्भ में वनस्थली में शिक्षण कार्य के लिए न कोई अपनी भूमि थी, न कोई भवन, न रुपया और पैसा। थी तो एकमात्र संकल्प शक्ति। आज वनस्थली स्त्री शिक्षा का सर्वांग सम्पूर्ण केन्द्र है।
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