ओमेश कुमार भारती: Difference between revisions

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'''ओमेश कुमार भारती''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Omesh Kumar Bharti'') भारतीय चिकित्सक हैं। वह [[शिमला]], [[हिमाचल प्रदेश]] आदि क्षेत्रों के महामारी विज्ञानी हैं। साल [[2019]] में कुत्ता काटने के लिए एक किफायती इलाज खोजने में अग्रणी काम के लिए उन्हें [[पद्म श्री]] नागरिक सम्मान मिला है।<br />
'''ओमेश कुमार भारती''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Omesh Kumar Bharti'') भारतीय चिकित्सक हैं। वह [[शिमला]], [[हिमाचल प्रदेश]] आदि क्षेत्रों के महामारी विज्ञानी हैं। साल [[2019]] में कुत्ता काटने के लिए एक किफायती इलाज खोजने में अग्रणी काम के लिए उन्हें [[पद्म श्री]] नागरिक सम्मान मिला है।<br />
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[[चित्र:Omesh-Kumar-Bharti.jpg|thumb|250px|राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द से पद्म श्री प्राप्त करते ओमेश कुमार भारती]] ओमेश कुमार भारती (अंग्रेज़ी: Omesh Kumar Bharti) भारतीय चिकित्सक हैं। वह शिमला, हिमाचल प्रदेश आदि क्षेत्रों के महामारी विज्ञानी हैं। साल 2019 में कुत्ता काटने के लिए एक किफायती इलाज खोजने में अग्रणी काम के लिए उन्हें पद्म श्री नागरिक सम्मान मिला है।

  • डॉ. ओमेश कुमार भारती करीब 17 सालों से एंटी रेबीज वैक्सीन पर काम कर रहे थे। शोध में उन्होंने एक ऐसे सीरम को इजात किया जो पागल कुत्ते के काटने से होने वाले घाव पर लगाने से इसका असर जल्द होगा। इससे पहले जहां पागल कुत्ते या बंदर के काटने पर सीरम को घाव और मांंसपेशियों में लगाया जाता था, लेकिन डॉ. भारती ने अपने शोध से ये साबित किया कि रेबीज इम्यूनोग्लोबुलिन सीरम को घाव पर लगाने से असर जल्दी होगा।[1]
  • सालों बाद इस काम को करने वाले डॉ. ओमेश कुमार भारती के इस शोध को अब वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की ओर से मान्यता दी गई है। जिसके बाद अब विश्व स्तर पर इस नई तकनीक से पागल कुत्ते के काटने का इलाज हो पाएगा।
  • अपने शोध को मान्यता दिलवाने के लिए ओमेश कुमार भारती को लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी और लंबे शोध के बाद मरीजों पर प्रयोग के बाद वो इसे मान्यता दिलवाने में सफल हुए।
  • लोगों को इस नई तकनीक पर विश्वास दिलवाना मुश्किल था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और लगातार शोध को सही साबित करने के लिए प्रयोग करते गए। उन्हें सफलता तब मिली, जब इस शोध को वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने मान्यता दी और इस तकनीक को विश्व भर के लिए बेहतर बताया।
  • डॉ. ओमेश भारती ने शोध कर जिस सीरम को तैयार किया है, वो घोड़े और आदमी के खून से बनता है, जिसकी उपलब्धता बहुत कम है। आदमी के खून से सीरम बनाने की कीमत पांच से छह हजार और घोड़े के खून से बनने वाले सीरम का खर्च करीब पांच सौ से छह सौ रुपये तक आता है। इससे पहले इस सीरम को जब मांंसपेशियों में लगाया जाता था तो इसकी मात्रा करीबन दस मिली लीटर के आसपास रहती थी, लेकिन अब घाव में लगाने से इसकी मात्रा एक मिली लीटर रह गई है, जिससे इसकी उपलब्धता और इस पर होने वाले खर्च में विश्व स्तर में भारी कमी आई है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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