झांझ: Difference between revisions
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Revision as of 04:18, 25 November 2010
- झांझ प्रायः लोहे का बना होता है।
- लोहे के दो गोल टुकड़े जिसके मध्य में एक छेद होता है, जिस पर रस्सी या कपड़ा हाथ में पकड़ने के लिए लगाया जाता है।
- एक-एक टुकड़े को एक-एक हाथ में पकड़कर बजाया जाता है।
गोलाकार समतल या उत्तलाकार धातु की तश्तरी जैसा ताल वाद्य, जिसे ढोल बजाने की लकड़ी से या इसके जोड़े को एक-दूसरे से रगड़ते हुए टकराकर बजाया जाता है। इसका असीरिया, इज़राइल (1100 ई.पू.), मिस्र और अन्य प्रचीन सभ्यताओं में अक्सर आनुष्ठानिक तौर पर इस्तेमाल किया जाता था। यह मध्य काल में सुदुर पूर्व एवं यूरोप में 13वीं सदी से पहले पहुंचा। अधिकतर एशियाई झांझ चौड़े किनारे वाले उभार या बिना उभार के क्षैतिज तरीक़े से आड़े पकड़कर तेजी से टकराए जाते हैं या छोटे किनारे वाले (या किनारा रहित), खड़े तरीक़े से पकड़कर धीमे बजाए जाते हैं। पश्चिमी वाद्य वृंदीय झांझ, तुर्की सैनिक बैंड से लिया गया है, जो 18वीं सदी के यूरोप में प्रचलित था। झांझों के इस्तेमाल की शुरुआत जोज़ेफ़ हैडन (विशेष रूप से उनकी मिलिट्री सिंफनी, 1794), डब्ल्यू. ए. मोत्ज़ार्ट और लुडविग वॉन वीटोवान की रचनाओं में हुई। रूमानी संगीत, जैसे रिचर्ड वैग्नर की टेनहॉसर में इनका इस्तेमाल नाटकीय चरम के रेखांकन के लिए किया जाता है, पारंपरिक रूप से सर्वोत्तम झांझ तुर्की से आते हैं।
अनिश्चित सुरमान वाले आधुनिक झांझ क़रीब 36-46 सेमी व्यास वाले केंद्र में उभरे (जहां पकड़ने के लिए फीता बंधा होता है) और किनारे की ओर थोड़े से तिरछे मुड़े हुए होते हैं, ताकि किनारे ही आपस में टकराएं। इनकी विस्तार-क्षमता कमाल की है। हालांकि इन्हें आमतौर पर टकराया या रगड़ा जाता है, लेकिन इनका संचालन पैडल द्वारा भी किया जा सकता है या इन्हें ब्रश अथवा कठोर या मुलायम सिरे वाले चोब के प्रहार से बजाया जा सकता है। जैज़ और नृत्य बैंड में अन्य तकनीकें भी प्रयुक्त होती हैं।
प्राचीन झांझ (उदाहरणस्वरूप, क्लॉड डिबसी द्वारा प्रयुक्त) छोटे करताल जैसे उंगलियों में पहनकर बजाए जाने वाले झांझ है, जिनका एक निश्चित सुरमान वाला उच्च स्वर होता है; इनका इस्तेमाल मूल रूप से नृत्य वाद्य के रूप में प्राचीन काल से मध्य-पूर्व में हो रहा है।
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