राष्ट्रपति भवन: Difference between revisions

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Revision as of 03:41, 10 November 2010

thumb|250px|राष्ट्रपति भवन राष्ट्रपति भवन वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। इस भवन के निर्माण की सोच सर्वप्रथम 1911 में उस समय उत्पन्न हुई जब दिल्ली दरबार ने निर्णय किया कि भारत की राजधानी कोलकाता से दिल्ली स्थानान्तरित की जाएगी। इसी के साथ में यह भी निर्णय लिया गया कि नई दिल्ली में ब्रिटिश वायसराय के रहने के लिए एक आलीशान भवन का निर्माण किया जाएगा।

निर्माण

इस भवन के मुख्य शिल्पीकार एडविन लैंडसीर लुटियंस थे, जबकि इसके प्रमुख इंजीनियर हग कीलिंग थे। इस भवन का अधिकतम निर्माण कार्य ठेकेदार हारून-अल-राशिद के द्वारा किया गया। प्रारम्भ में इस भवन के निर्माण के लिए 4 लाख पौंड स्टर्लिंग राशि व्यय करने हेतु निर्धारित की गयी थी। परन्तु भवन के निर्माण में 17 साल लग जाने के कारण व्यय राशि बढकर 877136 पौंड स्टर्लिंग अर्थात् 1 करोड़ 28 लाख रुपये हो गई। यदि मुग़ल गार्डन और राष्ट्रपति भवन परिसर में कर्मचारियों के लिए बने आवासों की राशि भी इसमें शामिल कर दी जाये तो राष्ट्रपति भवन के निर्माण में 1 करोड़ 40 लाख रुपये ख़र्च हुए।

वास्तु विशेषताऐं

thumb|राष्ट्रपति भवन चार मंज़िल राष्ट्रपति भवन में कुल 340 कमरे हैं। 2 लाख वर्ग फुट में बने इस भवन में 70 करोड़ ईंटें तथा 30 लाख क्यूविक फुट पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। भवन के निर्माण में स्टील का प्रयोग नहीं किया गया है। राष्ट्रपति भवन में बने चक्र, छज्जे, छतरियाँ और जालियाँ भारतीय पुरातत्त्व पद्धति का अनुकरण हैं। भवन के स्तम्भों पर उकेरी गई घंटियाँ हिन्दू, जैन और बौद्ध मन्दिरों की घंटियों की अनुकृति हैं। जबकि इसके स्तम्भों के निर्माण की प्रेरणा कर्नाटक के मूडाबिद्री में स्थित जैन मन्दिर है। इसके गुम्बद के बारे में लुटियंस का मानना है क यह गुम्बद रोम के सर्वदेवमन्दिर (पैन्थियन आफ रोम) की याद दिलाता है। लेकिन विश्लेषकों का विचार है कि गुम्बर की संरचना सांची के स्तूप के पैटर्न पर की गई है। 26 जनवरी, 1950 को यह भवन प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का सरकारी आवास बना, तब से भारत के राष्ट्रपति का यह आवास है।


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