संपाठ्य कला: Difference between revisions
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Revision as of 11:45, 10 January 2011
जयमंगल के मतानुसार चौंसठ कलाओं में से यह एक कला है। संपाठ्य का अर्थ है- दो या अधिक व्यक्तियों द्वारा स्पर्धा के लिए या मनोरंजन के हेतु काव्य कंठस्थ करना।
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