गोवा का इतिहास: Difference between revisions

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[[1948]] और [[1949]] में भारत के गोवा पर दावे के बाद पुर्तग़ाल पर गोवा और इस उपमहाद्वीप में उसके अन्य सम्पत्तियों को छोड़ने का दबाव बढ़ता गया। [[1954]] के मध्य में गोवा के राष्ट्रवादियों ने [[दादरा तथा नगर हवेली]] की बस्तियों पर क़ब्ज़ा कर लिया और भारत समर्थक प्रशासन की स्थापना की। एक अन्य संकट की घड़ी तब आई, जब भारत के सत्याग्रहियों (अहिंसक प्रदर्शनकारी) ने गोवा में घुसने का प्रयास किया। पहले तो सत्याग्रहियों को वापस भेज दिया गया, लेकिन बाद में जब बहुत ज़्यादा संख्या में लोगों ने सीमा पार करने का प्रयत्न किया, तो पुर्तग़ाली अधिकारियों को बल का प्रयोग करना पड़ा और कई मौतें हुई। इससे [[18 अगस्त]], [[1955]] को पुर्तग़ाल और भारत के बीच राजनीतिक सम्बन्ध टूट गए। भारत और पुर्तग़ाल के बीच तनाव [[18 सितम्बर]], [[1961]] को अपने चरम पर पहुँचा और नौसेना एवं वायुसेना की मदद से भारतीय सेना ने गोवा, [[दमन और दीव]] पर क़ब्ज़ा कर लिया। [[1962]] में संविधान संशोधन द्वारा पुर्तग़ाली भारत को भारतीय गणराज्य मे शामिल कर लिया गया।


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गोवा के ऐतिहासिक मानचित्र
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गोवा प्राचीनकाल में गोमांचल, गोपकपट्टनम, गोपपुरी, और गोमांतक आदि कई नामों से विख्यात रहा है। इस प्रदेश की लंबी ऐतिहासिक परंपरा रही है। गोवा पश्चिमी समुद्र तट पर स्थित भूतपूर्व पुर्तग़ाली बस्ती है, जो 1961 से भारत का अभिन्न अंग बन गई।

प्राचीन नाम

गोवा का प्राचीन हिन्दू शहर, जिसके अवशेष का एक अंश ही बचा हुआ है, उसका निर्माण द्वीप के सुदूर दक्षिणी बिन्दु पर हुआ था और यह आरम्भिक हिन्दू दन्तकथाओं और इतिहास में प्रसिद्ध था। पुराणों और अभिलेखों में इसका नाम गोवे, गोवपुरी व गोमत के रूप में आता है। मध्यकालीन अरबी भूगोलविद् इसे सिंदाबूर या संदाबूर के नाम से और पुर्तगाली वेल्हा गोवा के रूप में जानते थे।

शासन

दूसरी शताब्दी से 1312 तक गोवा पर कदम्ब वंश और 1312 से 1367 तक दक्कन के मुस्लिम आक्रमणकारियों का शासन रहा। इसके बाद गोवा पर विजयनगर के हिन्दू साम्राज्य का क़ब्ज़ा हो गया और बाद में बहमनी वंश ने गोवा को जीत लिया, जिन्होंने 1440 में पुराने गोवा की स्थापना की। 1482 के बाद बहमनी राज्य के विभाजन के बाद गोवा बीजापुर के मुस्लिम शासक यूसूफ़ आदिल ख़ाँ के अधीन आ गया, जो पुर्तग़ालियों के भारत आगमन के समय इसके शासक थे। इस शहर पर मार्च 1510 में अल्फ़ांसो दे अल्बुक़र्क़ के नेतृत्व में पुर्तग़ालियों का आक्रमण हुआ। गोवा बिना किसी संघर्ष के पुर्तग़ालियों के क़ब्ज़े में आ गया और अल्बुक़र्क़ ने एक विजेता की तरह इस शहर में प्रवेश किया। तीन महीने के बाद यूसूफ़ आदिल ख़ाँ 60 हज़ार की सेना लेकर वापस लौटे और बंदरगाह के मार्ग पर क़ब्ज़ा कर लिया और पुर्तग़ालियों को मई से अगस्त तक अपने जहाज़ों पर रुकने पर मज़बूर कर दिया, इसके बाद ही मानसून की समाप्ति के कारण वे वापस समुद्र में पहुँच सके। नवम्बर में अल्बुक़र्क़ ज़्यादा बड़ी सेना के साथ लौटे और एक दुःसाहसी प्रतिरोध पर विजय प्राप्त कर उन्होंने शहर पर पुनः क़ब्ज़ा कर लिया और सभी मुसलमानों को मार डाला तथा एक हिन्दू तिमोजा को गोवा का प्रशासक नियुक्त किया।

गोवा पुर्तग़ालियों का एशिया में पहला क्षेत्रीय क़ब्ज़ा था। अल्बुक़र्क़ और उनके उत्तराधिकारियों ने द्वीप के 30 ग्रामीण समुदाय के संविधान और रीति-रिवाज़ों में लगभग सती प्रथा के अलावा किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया। सती प्रथा को उन्होंने समाप्त कर दिया।

गोवा का पतन

गोवा पूर्व दिशा में समूचे पुर्तग़ाली साम्राज्य की राजधानी बन गया। इसे लिस्बन के समान नागरिक अधिकार दिए गए और 1575 से 1600 के बीच यह उन्नति के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचा। इसके बाद भारतीय सीमा में डच आगमन के साथ गोवा का पतन होने लगा। 1603 और 1639 में डच बेड़े के द्वारा घेर लिया गया, हालाँकि इस पर कभी क़ब्ज़ा नहीं हो सका और 1635 में एक महामारी के कारण तबाह हो गया। 1683 में मुग़ल सेना ने इसे मराठा आक्रमणकारियों के क़ब्ज़े में जाने से बचाया और 1739 में पूरे क्षेत्र पर इन्हीं आक्रमणकारियों का हमला हुआ और नए वाइसराय के बेड़े के अनुपेक्षित आगमन के कारण ही बच सका।

प्रशासन के मुख्यालय को पहले मोर्मूगाँव (वर्तमान मर्मगाँव) और फिर 1759 में पंजिम (अब पणजी) ले जाया गया। गोवा के स्थानीय निवासियों के पुराने गोवा से नए गोवा के प्रवास का मुख्य कारण हैज़ा नामक महामारी थी।

अभियान दल

19वीं सदी में नेपोलियन के पुर्तग़ाल पर क़ब्ज़े के कारण 1809 में अंग्रेज़ों का अस्थायी अधिकार; कान्डे डि टोरेस नोवास का गवर्नर काल, 1855 से 1864, जिन्होंने कई सुधारों की शुरुआत की और शताब्दी के दूसरे अर्द्धांश में हुए सैनिक विद्रोह जैसी घटनाओं ने यहाँ की बस्तियों को प्रभावित किया। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण 3 दिसम्बर, 1895 में हुआ विद्रोह है, जिसने पुर्तग़ाल को एक अभियान दल भेजने पर मज़बूर कर दिया। इस अभियान दल के साथ आए अल्फ़ांसो हेनरीक्स डुक्यू डि ओपार्टो ने मार्च से मई 1896 में गवर्नर के अधिकारों का प्रयोग किया।

भारतीय गणराज्य मे शामिल

1948 और 1949 में भारत के गोवा पर दावे के बाद पुर्तग़ाल पर गोवा और इस उपमहाद्वीप में उसके अन्य सम्पत्तियों को छोड़ने का दबाव बढ़ता गया। 1954 के मध्य में गोवा के राष्ट्रवादियों ने दादरा तथा नगर हवेली की बस्तियों पर क़ब्ज़ा कर लिया और भारत समर्थक प्रशासन की स्थापना की। एक अन्य संकट की घड़ी तब आई, जब भारत के सत्याग्रहियों (अहिंसक प्रदर्शनकारी) ने गोवा में घुसने का प्रयास किया। पहले तो सत्याग्रहियों को वापस भेज दिया गया, लेकिन बाद में जब बहुत ज़्यादा संख्या में लोगों ने सीमा पार करने का प्रयत्न किया, तो पुर्तग़ाली अधिकारियों को बल का प्रयोग करना पड़ा और कई मौतें हुई। इससे 18 अगस्त, 1955 को पुर्तग़ाल और भारत के बीच राजनीतिक सम्बन्ध टूट गए। भारत और पुर्तग़ाल के बीच तनाव 18 सितम्बर, 1961 को अपने चरम पर पहुँचा और नौसेना एवं वायुसेना की मदद से भारतीय सेना ने गोवा, दमन और दीव पर क़ब्ज़ा कर लिया। 1962 में संविधान संशोधन द्वारा पुर्तग़ाली भारत को भारतीय गणराज्य मे शामिल कर लिया गया।


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