ऐहोल: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "रचियता" to "रचयिता") |
No edit summary |
||
Line 14: | Line 14: | ||
{{प्रचार}} | {{प्रचार}} | ||
{{लेख प्रगति | {{लेख प्रगति | ||
|आधार= | |आधार= | ||
|प्रारम्भिक= | |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 | ||
|माध्यमिक= | |माध्यमिक= | ||
|पूर्णता= | |पूर्णता= | ||
|शोध= | |शोध= | ||
}} | }} | ||
==संबंधित लेख== | |||
{{कर्नाटक के पर्यटन स्थल}} | |||
[[Category:कर्नाटक]] | [[Category:कर्नाटक]] | ||
[[Category:कर्नाटक के ऐतिहासिक स्थान]] [[Category:इतिहास कोश]] | [[Category:कर्नाटक के ऐतिहासिक स्थान]] [[Category:इतिहास कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 06:01, 15 January 2011
ऐहोल कर्नाटक के बीजापुर में स्थित, बादामी के निकट, बहुत प्राचीन स्थान है। इसे आइहोल के नाम से जाना जाता है। यहाँ से चालुक्य नरेश पुल्केशिन द्धितीय का 634 ई. का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है। यह प्रशस्ति के रूप में है और संस्कृत काव्य परम्परा में लिखा गया है। इसका रचयिता जैन कवि रविकीर्ति था। इस अभिलेख में पुलकेशी द्वितीय की विजयों का वर्णन है। इस अभिलेख में पुलकेशी द्वितीय के हाथों हर्षवर्धन की पराजय का भी वर्णन है।
मन्दिरों के अवशेष
यहाँ हमें 70 मन्दिरों के अवशेष मिलते हैं। ऐहोल का भारतीय मन्दिर वास्तुकला की पाठशाला कहा गया है। इसे 'ऐहोल का नगर' भी कहा जाता है। ऐहोल के मन्दिरों से दक्षिण भारत के हिन्दू मन्दिर वास्तुकला के इतिहास को समझने में सहायता मिलती है। ऐहोल के चालुक्यकालीन तीन मन्दिर विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। उनके नाम लाड़खान मन्दिर, दुर्गा मन्दिर तथा हच्चीमल्लीगुड्डी मन्दिर हैं।
लाड़खान मन्दिर
लाड़खान मन्दिर 450 ई. में निर्मित माना जाता है। यह वर्गाकार है। नीची तथा सपाट छत वाले इस वर्गाकार भवन की प्रत्येक दीवार 50 फुट लम्बी है। यह मन्दिर अपनी विशालता, रचना की सरलता, नक्शे की वास्तुकला के विवरण, इन सब बातों में गुफा मन्दिरों से मिलता जुलता है।
दुर्गा मन्दिर
दुर्गा मन्दिर सम्भवतः छठी सदी का है। यह मन्दिर बौद्ध चैत्य को ब्राह्मण धर्म के मन्दिर के रूप में उपयोग में लाने का एक प्रयोग है। इस मन्दिर का ढाँचा अर्द्धवृत्ताकार है।
हच्चीमल्लीगुड्डी मन्दिर
हच्चीमल्लीगुड्डी मन्दिर बहुत कुछ दुर्गा मन्दिर से मिलता-जुलता है। यद्यपि यह उससे बनावट में अधिक सरल तथा आकार में छोटा है। भीतरी कक्ष तथा मुख्य हॉल के बीच अन्तराल इसकी एक नई विशेषता है।
जैन मन्दिर
ऐहोल में सबसे बाद में बनने वाले मन्दिरों में मेगुत्ती का जैन मन्दिर है, 634 ई. का है। यह मन्दिर अभी अधूरा है।
|
|
|
|
|