नाक: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('(अंग्रेज़ी:Nose) '''{{PAGENAME}}''' अधिकांश जीव जं...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
m (श्रेणी:नया पन्ना (को हटा दिया गया हैं।))
Line 20: Line 20:
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{मानव शरीर}}
{{मानव शरीर}}
[[Category:नया पन्ना]]
[[Category:जीव विज्ञान]]
[[Category:जीव विज्ञान]]
[[Category:विज्ञान कोश]]
[[Category:विज्ञान कोश]]
[[Category:मानव शरीर]]
[[Category:मानव शरीर]]
__INDEX__
__INDEX__

Revision as of 08:11, 6 February 2011

(अंग्रेज़ी:Nose) नाक अधिकांश जीव जंतुओं के शरीर का आवश्यक अंग हैं। इस लेख में मानव शरीर से संबंधित उल्लेख है। गन्ध ज्ञान के लिए नासिका के अन्दर करोटि के घ्राणकोशों में बन्द दो लम्बी नासा गुहाएँ पाई जाती हैं। ये नासा पट्टी द्वारा दो भागों में विभक्त रहती हैं। प्रत्येक नासा गुहा तीन भागों में बँटी रहती है-

  • प्रकोष्ठ
  • श्वाँसमार्ग
  • घ्राण भाग

घ्राण भाग में श्लेष्मिका कला पाई जाती है। जिसे घ्राण उपकला या श्नीडेरियल कला कहते हैं।

गन्ध का ज्ञान होना

श्वास एवं घ्राण भागों की श्लेष्मिका में श्लेष्मिका कला के नीचे संयोजी ऊतक का स्तर होता है। इसे आधार पटल कहते हैं। घ्राण भाग में यह मोटा होता है और इसमें शाखान्वित बोमेन की ग्रन्थियाँ होती हैं। इनसे स्रावित जल सदृश श्लेष्म वायु के साथ में आए गन्ध कणों को अपने में घोल लेता है और तभी घ्राण कोशिकाएँ ग्रन्ध से प्रभावित होती हैं। इसके बाद ये घुले हुए गन्ध युक्त कण संवेदी तन्त्रिकाओं के संवेदी रोमों के सम्पर्क में आते हैं। संवेदी रोम गन्ध की इस संवेदना (या उद्दीपन) को ग्रहण करके घ्राण तन्त्रिका द्वारा मस्तिष्क को पहुँचाते हैं, जिससे हमें गन्ध का ज्ञान हो जाता है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख