बूँदी: Difference between revisions
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यहाँ के शासक राव सुर्जन हाड़ा ने [[अकबर]] की अधीनता स्वीकार कर ली थी। [[शाहजहाँ]] के समय बूँदी के शासक [[छत्रसाल]] हाड़ा ने [[दारा शिकोह|दारा]] की ओर से धरमत की लड़ाई में भाग लिया था, किंतु वह इस युद्ध में मारा गया। बूँदी अपनी विशिष्ट [[चित्रकला]] शैली के लिए विख्यात है, जो इस अंचल में मध्यकाल में विकसित हुई। बूँदी के विषयों में शिकार, सवारी, रामलीला, स्नानरत नायिका, विचरण करते [[हाथी]] ,शेर, हरिण, गगनचारी पक्षी, पेड़ों पर फुदकते शाखामृग आदि रहे हैं। | यहाँ के शासक राव सुर्जन हाड़ा ने [[अकबर]] की अधीनता स्वीकार कर ली थी। [[शाहजहाँ]] के समय बूँदी के शासक [[छत्रसाल]] हाड़ा ने [[दारा शिकोह|दारा]] की ओर से धरमत की लड़ाई में भाग लिया था, किंतु वह इस युद्ध में मारा गया। बूँदी अपनी विशिष्ट [[चित्रकला]] शैली के लिए विख्यात है, जो इस अंचल में मध्यकाल में विकसित हुई। बूँदी के विषयों में शिकार, सवारी, रामलीला, स्नानरत नायिका, विचरण करते [[हाथी]] ,शेर, हरिण, गगनचारी पक्षी, पेड़ों पर फुदकते शाखामृग आदि रहे हैं। | ||
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स्त्रियाँ [[लाल रंग|लाल]] -[[पीला रंग|पीले]] वस्त्र पहने अधिक दिखायी गयी हैं। | [[श्रावण]]-भादों में नाचते हुए [[मोर]] बूँदी के चित्रांकन परम्परा में बहुत सुन्दर बन पड़े है। यहाँ के चित्रों में नारी पात्र बहुत लुभावने प्रतीत होते हैं। नारी चित्रण में तीखी नाक, बादाम-सी आँखें, पतली कमर, छोटे व गोल चेहरे आदि मुख्य विशिष्टताएँ हैं। स्त्रियाँ [[लाल रंग|लाल]]-[[पीला रंग|पीले]] वस्त्र पहने अधिक दिखायी गयी हैं। बूँदी शैली की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता पृष्ठ भूमि के भू-दृश्य हैं। चित्रों में कदली, [[आम]] व पीपल के वृक्षों के साथ-साथ [[फूल]]-पत्तियों और बेलों को चित्रित किया गया है। चित्र के ऊपर वृक्षावली बनाना एवं नीचे पानी, [[कमल]], बतखें आदि चित्रित करना बूँदी चित्रकला की विशेषता रही | ||
बूँदी शैली की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता पृष्ठ भूमि के भू- दृश्य हैं। | ==प्रमुख शैलियाँ== | ||
चित्रों में कदली, [[आम]] व पीपल के वृक्षों के साथ-साथ [[फूल]] -पत्तियों और बेलों को चित्रित किया गया है। | मुग़लों की अधीनता में आने के बाद यहाँ की चित्रकला में नया मोड़ आया। यहाँ की चित्रकला पर उत्तरोत्तर [[मुग़ल]] प्रभाव बढ़ने लगा। राव रत्नसिंह (1631- 1658 ई.) ने कई चित्रकारों को दरबार में आश्रय दिया। शासकों के सहयोग एवं समर्थन तथा अनुकूल परिस्थितियों और नगर के भौगोलिक परिवेश की वजह से सत्रहवीं शताब्दी में बूँदी ने चित्रकला के क्षेत्र में काफ़ी प्रगति की। चित्रों में बाग, फ़व्वारे, फूलों की कतारें, तारों भरी रातें आदि का समावेश मुग़ल प्रभाव से होने लगा और साथ ही स्थानीय शैली भी विकसित होती रही। चित्रों में पेड़ पौधें, बतख तथा [[मयूर|मयूरों]] का अंकन बूँदी शैली के अनुकूल है। सन 1692 ई. के एक चित्र बसंतरागिनी में बूँदी शैली और भी समृद्ध दिखायी देती है। कालांतर में बूँदी शैली समृद्धि की ऊँचाइयों को छूने लगी। | ||
चित्र के ऊपर वृक्षावली बनाना एवं नीचे पानी, [[कमल]], बतखें आदि चित्रित करना बूँदी चित्रकला की विशेषता रही | |||
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राव रत्नसिंह (1631- 1658 ई.) ने कई चित्रकारों को दरबार में आश्रय दिया। | |||
शासकों के सहयोग एवं समर्थन तथा अनुकूल परिस्थितियों और नगर के भौगोलिक परिवेश की वजह से सत्रहवीं शताब्दी में बूँदी ने चित्रकला के क्षेत्र में काफ़ी प्रगति की। | |||
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चित्रों में पेड़ पौधें, बतख तथा मयूरों का अंकन बूँदी शैली के अनुकूल है। | |||
सन 1692 ई. के एक चित्र बसंतरागिनी में बूँदी शैली और भी समृद्ध दिखायी देती है। कालांतर में बूँदी शैली समृद्धि की ऊँचाइयों को छूने लगी। | |||
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Revision as of 12:55, 23 February 2011
राजस्थान के दक्षिण-पूर्व में स्थित बूँदी एक पूर्व रियासत एवं ज़िला मुख्यालय है। इसकी स्थापना सन 1242 ई. में राव देवाजी ने की थी। बूँदी पहाड़ियों से घिरा सघन वनाच्छादित सुरम्य नगर है।
इतिहास
यहाँ के शासक राव सुर्जन हाड़ा ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली थी। शाहजहाँ के समय बूँदी के शासक छत्रसाल हाड़ा ने दारा की ओर से धरमत की लड़ाई में भाग लिया था, किंतु वह इस युद्ध में मारा गया। बूँदी अपनी विशिष्ट चित्रकला शैली के लिए विख्यात है, जो इस अंचल में मध्यकाल में विकसित हुई। बूँदी के विषयों में शिकार, सवारी, रामलीला, स्नानरत नायिका, विचरण करते हाथी ,शेर, हरिण, गगनचारी पक्षी, पेड़ों पर फुदकते शाखामृग आदि रहे हैं।
चित्रकला
- REDIRECTसाँचा:मुख्य
श्रावण-भादों में नाचते हुए मोर बूँदी के चित्रांकन परम्परा में बहुत सुन्दर बन पड़े है। यहाँ के चित्रों में नारी पात्र बहुत लुभावने प्रतीत होते हैं। नारी चित्रण में तीखी नाक, बादाम-सी आँखें, पतली कमर, छोटे व गोल चेहरे आदि मुख्य विशिष्टताएँ हैं। स्त्रियाँ लाल-पीले वस्त्र पहने अधिक दिखायी गयी हैं। बूँदी शैली की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता पृष्ठ भूमि के भू-दृश्य हैं। चित्रों में कदली, आम व पीपल के वृक्षों के साथ-साथ फूल-पत्तियों और बेलों को चित्रित किया गया है। चित्र के ऊपर वृक्षावली बनाना एवं नीचे पानी, कमल, बतखें आदि चित्रित करना बूँदी चित्रकला की विशेषता रही
प्रमुख शैलियाँ
मुग़लों की अधीनता में आने के बाद यहाँ की चित्रकला में नया मोड़ आया। यहाँ की चित्रकला पर उत्तरोत्तर मुग़ल प्रभाव बढ़ने लगा। राव रत्नसिंह (1631- 1658 ई.) ने कई चित्रकारों को दरबार में आश्रय दिया। शासकों के सहयोग एवं समर्थन तथा अनुकूल परिस्थितियों और नगर के भौगोलिक परिवेश की वजह से सत्रहवीं शताब्दी में बूँदी ने चित्रकला के क्षेत्र में काफ़ी प्रगति की। चित्रों में बाग, फ़व्वारे, फूलों की कतारें, तारों भरी रातें आदि का समावेश मुग़ल प्रभाव से होने लगा और साथ ही स्थानीय शैली भी विकसित होती रही। चित्रों में पेड़ पौधें, बतख तथा मयूरों का अंकन बूँदी शैली के अनुकूल है। सन 1692 ई. के एक चित्र बसंतरागिनी में बूँदी शैली और भी समृद्ध दिखायी देती है। कालांतर में बूँदी शैली समृद्धि की ऊँचाइयों को छूने लगी।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ