टेक्कलकोट: Difference between revisions
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Revision as of 10:51, 7 March 2011
कर्नाटक के बेलारी ज़िले में टेक्कलकोटा स्थित है। इस स्थल से नव-प्रस्तर काल के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस स्थल के उत्खनन से दो नव-प्रस्तरकालीन संस्कृतियों के जमाव अनावृत्त किए हैं। दोनों ही चरणों से ताम्र निर्मित वस्तुएँ प्राप्त की गई हैं।
इतिहास
प्रारम्भिक नव-प्रस्तर चरण में घर्षित पाषाण उपकरण, लघु-आश्मक अस्थि-उपरकण, मनके तथा स्वर्ण निर्मित वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं। मनके पाषाण तथा घिया पत्थर से निर्मित हैं। इनके अतिरिक्त सीपी तथा सीसा के मनके भी प्राप्त हुए हैं। गर्त शवाधानों से खण्डित कंकाल मिले हैं, जिनके ऊपर ग्रेनाइट के पाषाण खण्ड स्थापित हैं। इस काल में क़ब्र में शवों के साथ सामग्री रखने की प्रथा प्रचलित नहीं थी। इस चरण के अधिकतर पात्र हस्तनिर्मित हैं। इनमें धूसर पात्रों की अधिकता है।
निवास स्थान
इस स्थल का परवर्ती चरण ताम्र-प्रस्तरकालीन माना गया है। इस चरण में कृष्ण-लोहित तथा फीके लाल पात्र विशेष रुप से उल्लेखनीय हैं। उत्खनन से प्राप्त झोंपड़ियों को लकड़ी की बल्लियों पर गाड़ कर टिकाया जाता था। इनके नीचे का भाग घास-फूस से घेरा गया था तथा इसी सामग्री से सम्भवतः तिकोने छप्पर का निर्माण भी किया जाता था। दूसरे प्रकार के वृत्ताकार झोंपड़ियों की दीवार पाषाण खण्डों के टुकड़ों द्वारा निर्मित वृत्त के सहारे टिकाई जाती थी। तीसरा प्रकार वर्गाकार तथा आयताकार झोंपड़ियों का है, जिनको बड़े पाषाण के खण्डों या चट्टानों के सहारे बनाया गया है। पाषाण खण्डों के सहारे टिकी वृत्ताकार झोंपड़ियाँ आज भी इस क्षेत्र की बोया जनजातियाँ बनाती हैं।
विभिन्न उपकरण
इस स्थल से प्राप्त उपकरण पाषाण व अस्थि निर्मित हैं। पाषाण उपकरणों में घर्षित कुल्हाड़ियों की अधिकता है। कुल्हाड़ियों के अतिरिक्त इनमें छेनी, छिद्रक तथा फनाकार अस्त्र तथा हथौड़े, लोढ़े, अहरन तथा तराशने के उपकरण प्राप्त हुए हैं। अस्थि उपकरण पशुओं के पैर की लम्बी हड्डियों तथा पिंजर से निर्मित हैं। इस वर्ग में छेनी, नोकदार अस्त्र आदि प्रमुख हैं। यहाँ से प्राप्त शवों को सीधा लिटाने की प्रथा अथवा दूसरी प्रथा के अंतर्गत अस्थियों को चुन कर दफ़नाया जाता था।
संस्कृति
अवशेषों के आधार पर इसकी तिथि ई.पू. लगभग डेढ़ हज़ार वर्ष आँकी गई है। पुरा अवशेषों की रुपरेखा तथा कालक्रम दोनों के आधार पर टेक्कलकोटा ताम्र-प्रस्तर सांस्कृतिक चरण का आवासीय क्षेत्र प्रतीत होता है, यद्यपि अधिकांश ताम्र-प्रस्तर संस्कृतियों की मूल अर्थव्यवस्था कृषि थी, परंतु इस स्थल पर कृषि के कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिले हैं।
विभिन्न आभूषण
परवर्ती चरण के शवों के साथ कुछ सामग्री रखने का भी प्रचलन हो गया था। कंकालो में भूमध्यसागरीय तथा प्रॉटो-ऑस्ट्रलाएड प्रजातीय गुणों का मिश्रण पाया गया है। टेक्कलकोटा के नव-प्रस्तरकाल के दोनों चरणों से सोने व ताँबे की वस्तुएँ प्राप्त की गई हैं। इनमें कुण्डलीय आभूषण, कुण्डलीय अंगूठी, तार व कील का शीर्ष उल्लेखनीय है।
खान पान
पशु अस्थियों में मवेशी व भेड़ की अस्थियाँ हैं। इन हड्डियों पर जलने तथा तोड़ने व काटने आदि के चिह्न हैं, जो इस बात का प्रमाण है कि इन पशुओं का माँस खाया जाता था। इसके अलावा घोंघे तथा कछुओं को भी आहार के रुप में ग्रहण करने के प्रमाण प्राप्त हुए हैं। समस्त अवशेषों के आधार पर इस स्थल को उत्तर नव-प्रस्तरकाल में रखा जा सकता है।
कला अलंकरण
पात्रों को पकाने से पूर्व अथवा पकाने के बाद साधारण रेखाओं से अलंकृत किया जाता था। चित्रण के लिए अधिकतर काले व जामुनी रंगों का प्रयोग किया गया था। अलंकरण की दूसरी प्रचलित विधा कुरेदकर तथा अँगुली द्वारा बनाए गए आलेख थे। इन पात्रों में अनाज संचय पात्र, घट टोंटीदार, लोहे के कटोरों के अनेक प्रकार, ढक्कन, छिद्रित पात्र इत्यादि प्रमुख हैं।
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