सारंगी: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
mNo edit summary |
m (श्रेणी:वादन (को हटा दिया गया हैं।)) |
||
Line 22: | Line 22: | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{संगीत वाद्य}} | {{संगीत वाद्य}} | ||
[[Category:संगीत वाद्य]] | [[Category:संगीत वाद्य]] | ||
[[Category:संगीत कोश]] | [[Category:संगीत कोश]] |
Revision as of 07:54, 25 May 2011
चित्र:Icon-edit.gif | इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव" |
- सारंगी भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक ऐसा वाद्य यंत्र है जो गति के शब्दों और अपनी धुन के साथ इस प्रकार से मिलाप करता है कि दोनों की तारतम्यता देखते ही बनती है।
- सारंगी मुख्य रूप से गायकी प्रधान वाद्य यंत्र है। इसको लहरा अर्थात अन्य वाद्य यंत्रों की जुगलबंदी के साथ पेश किया जाता है।
- सारंगी शब्द हिंदी के सौ और रंग से मिलकर बना है जिसका मतलब है सौ रंगों वाला।
- अठारहवीं शताब्दी में तो सारंगी ने एक परम्परा का रूप ले लिया हुआ था। सारंगी का इस्तेमाल गायक अपनी गायकी में जुगलबंदी के रूप में लेते रहे हैं। राग ध्रुपद जो गायन पद्धति का सबसे कठिन राग माना जाता है, सारंगी के साथ इसकी तारतम्यता अतुल्य है।
- सारंगी स्वर और शांति में संबंध स्थापित करती है।
- सारंगी कोस्वर (संगीत)|सीखना कठिन है, जिस वजह से वाद्ययंत्र बजाने वाले युवा इसको पसंद नहीं करते हैं।
- प्राचीन काल में सारंगी घुमक्कड़ जातियों का वाद्य था। मुस्लिम शासन काल में सारंगी नृत्य तथा गायन दरबार का प्रमुख संगीत था।
- सारंगी वाद्य यंत्र का प्राचीन नाम सारिंदा है जो कालांतर के साथ सारंगी हुआ।
सारंगी के आकार-प्रकार
सारंगी का आकार देखें तो सारंगी अलग-अलग प्रकार की होती है। थार प्रदेश में दो प्रकार की सारंगी प्रयोग में लाई जाती हैं। सिंधी सारंगी और गुजरातन सारंगी। सिंधी सारंगी आकार-प्रकार में बड़ी होती है तथा गुजरातन सारंगी को मांगणियार व ढोली भी सहजता से बजाते हैं। सभी सारंगियों में लोक सारंगी सबसे श्रेष्ठ विकसित हैं। सारंगी का निर्माण लकड़ी से होता है तथा इसका नीचे का भाग बकरे की खाल से मंढ़ा जाता है। इसके पेंदे के ऊपरी भाग में सींग की बनी घोड़ी होती है। घोड़ी के छेदों में से तार निकालकर किनारे पर लगे चौथे में उन्हें बाँध दिया जाता है। इस वाद्य में 29 तार होते हैं तथा मुख्य बाज में चार तार होते हैं। जिनमें से दो तार स्टील के व दो तार तांत के होते हैं। आंत के तांत को रांदा कहते हैं। बाज के तारों के अलावा झोरे के आठ तथा झीले के 17 तार होते हैं। बाज के तारों पर गज, जिसकी सहायता से एवं रगड़ से सुर निकलते हैं, चलता है। सारंगी के ऊपर लगी खूँटियों को झीले कहा जाता है। पैंदे में बाज के तारों के नीचे घोड़ी में आठ छेद होते हैं। इनमें से झारों के तार निकलते हैं।
गुजरातन सारंगी को गुजरात में बनाया जाता है। इसे बाड़मेर व जैसलमेर ज़िले में लंगा-मगणियार द्वारा बजाया जाता है। यह सिंधी सारंगी से छोटी होती है एवं रोहिडे की लकड़ी से बनी होती है। इसमें बाज के चार तथा झील के आठ तार लगे होते हैं। मरुधरा में दिलरुबा सारंगी भी बजाई जाती है। वैसे दिलरुबा सारंगी पाकिस्तान के सिंध प्रांत में लोकप्रिय वाद्य है, परंतु जैसलमेर ज़िले में सिंधी मुसलमान रहते हैं, इसलिए यह वाद्य काफ़ी लोकप्रिय है।
|
|
|
|
|