रूप्यरत्नपरीक्षा कला: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - " कला " to "कला") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
[[चौंसठ कलाएँ जयमंगल के मतानुसार|जयमंगल के मतानुसार]] चौंसठ कलाओं में से यह एक[[प्रांगण:कला|कला]]है। सिक्के, [[रत्न]] आदि की परीक्षा करने की कला। | [[चौंसठ कलाएँ जयमंगल के मतानुसार|जयमंगल के मतानुसार]] चौंसठ कलाओं में से यह एक [[प्रांगण:कला|कला]] है। सिक्के, [[रत्न]] आदि की परीक्षा करने की कला। | ||
रत्नों की पहचान और उनमें वेध (छिद्र) करने की क्रिया का ज्ञान 'कला' है। प्राचीन समय से ही अच्छे बुरे रत्नों की पहचान तथा उनके धारण से होनेवाले शुभाशुभ फल का ज्ञान यहाँ के लोगों को था। [[ग्रह|ग्रहों]] के अनिष्ट फलों को रोकने के लिये विभिन्न रत्नों को धारण करने का शास्त्रों ने उपदेश किया है। उसके अनुसार रत्नों को धारण करने का फल आज भी प्रत्यक्ष दिखलायी देता है। पर आज तो भारतवर्ष की यह स्थिति है कि अधिकांश लोगों को उन रत्नों का धारण करना तो दूर रहा, दर्शन भी दुर्लभ है। | रत्नों की पहचान और उनमें वेध (छिद्र) करने की क्रिया का ज्ञान 'कला' है। प्राचीन समय से ही अच्छे बुरे रत्नों की पहचान तथा उनके धारण से होनेवाले शुभाशुभ फल का ज्ञान यहाँ के लोगों को था। [[ग्रह|ग्रहों]] के अनिष्ट फलों को रोकने के लिये विभिन्न रत्नों को धारण करने का शास्त्रों ने उपदेश किया है। उसके अनुसार रत्नों को धारण करने का फल आज भी प्रत्यक्ष दिखलायी देता है। पर आज तो भारतवर्ष की यह स्थिति है कि अधिकांश लोगों को उन रत्नों का धारण करना तो दूर रहा, दर्शन भी दुर्लभ है। | ||
Revision as of 10:21, 13 October 2011
जयमंगल के मतानुसार चौंसठ कलाओं में से यह एक कला है। सिक्के, रत्न आदि की परीक्षा करने की कला। रत्नों की पहचान और उनमें वेध (छिद्र) करने की क्रिया का ज्ञान 'कला' है। प्राचीन समय से ही अच्छे बुरे रत्नों की पहचान तथा उनके धारण से होनेवाले शुभाशुभ फल का ज्ञान यहाँ के लोगों को था। ग्रहों के अनिष्ट फलों को रोकने के लिये विभिन्न रत्नों को धारण करने का शास्त्रों ने उपदेश किया है। उसके अनुसार रत्नों को धारण करने का फल आज भी प्रत्यक्ष दिखलायी देता है। पर आज तो भारतवर्ष की यह स्थिति है कि अधिकांश लोगों को उन रत्नों का धारण करना तो दूर रहा, दर्शन भी दुर्लभ है।