मलखेड़ कर्नाटक: Difference between revisions

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दिगम्बर जैन नगई को अब भी तीर्थ मानते हैं। यहाँ 16 नक़्क़ाशीदार स्तम्भों का एक भव्य मण्डप है, जो किसी प्राचीन मन्दिर का प्रवेश द्वार था। इस मन्दिर का आधार ताराकार है, जो [[चालुक्य]] वास्तुकला का लक्षण माना जाता है। इसमें काले पत्थर के दो अभिलिखित पट्ट जड़े हैं। पास ही [[हनुमान]] मन्दिर है, जिसका सुन्दर दीपस्तम्भ गर्जराकार बना है। सिराम में पंचलिंग मन्दिर है, जिसका दीपदानस्तम्भ एक पत्थर ही में ताराशा हुआ है। यह 11वीं, 12वीं शती की रचना है। इसके अतिरिक्त 11वीं से 13वीं शती के कुछ जैन मन्दिर तथा मूर्तियाँ भी यहाँ हैं।
दिगम्बर जैन नगई को अब भी तीर्थ मानते हैं। यहाँ 16 नक़्क़ाशीदार स्तम्भों का एक भव्य मण्डप है, जो किसी प्राचीन मन्दिर का प्रवेश द्वार था। इस मन्दिर का आधार ताराकार है, जो [[चालुक्य]] वास्तुकला का लक्षण माना जाता है। इसमें काले पत्थर के दो अभिलिखित पट्ट जड़े हैं। पास ही [[हनुमान]] मन्दिर है, जिसका सुन्दर दीपस्तम्भ गर्जराकार बना है। सिराम में पंचलिंग मन्दिर है, जिसका दीपदानस्तम्भ एक पत्थर ही में ताराशा हुआ है। यह 11वीं, 12वीं शती की रचना है। इसके अतिरिक्त 11वीं से 13वीं शती के कुछ जैन मन्दिर तथा मूर्तियाँ भी यहाँ हैं।


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
*ऐतिहासिक स्थानावली से पेज संख्या 714-715 | '''विजयेन्द्र कुमार माथुर''' | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
*<span>ऐतिहासिक स्थानावली से पेज संख्या 714-715 | '''विजयेन्द्र कुमार माथुर''' | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार</span>
 
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==संबंधित लेख==
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मलखेड़, कर्नाटक भीमा नदी की सहायक कंगना नदी के दक्षिण तट पर छोटा सा ग्राम है, जो किसी समय दक्षिण भारत के प्रसिद्ध राष्ट्रकूट राजवंश की समृद्धशाली राजधानी मण्यखेट के रूप में प्रख्यात था।

इतिहास

राष्ट्रकूटों का राज्य यहाँ 8वीं शती से 10वीं शती ई. तक रहा था। ग्राम के आसपास दुर्ग तथा भवनों के अतिरिक्त मन्दिरों तथा मूर्तियों के भी विस्तृत अवशेष मिले हैं। जिससे ज्ञात होता है कि राष्ट्रकूट काल में इस नगर का कितना विस्तार था। 962 ई. में परमार नरेश सियक ने नगर को लूटा और तहस-नहस कर दिया। तत्पश्चात् 14वीं शती तक मलखेड़ अंधकारमय युग में पड़ा रहा। इस शती में यह नगर बहमनी राज्य का एक अंग बन गया। बहमनीकाल के एक प्रसिद्ध हिन्दू दार्शनिक जयतीर्थ की समाधि मलखेड़ में आज भी विद्यमान है। जयतीर्थ द्वैतवादी माध्वसम्प्रदाय के अनुयायी थे। उनके लिखे हुए ग्रंथ न्याय और सुधा हैं। 17वीं शती के अन्त में औरंगज़ेब ने इस स्थान को मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया। प्रसिद्ध राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष के शासन काल में मलखेड़ जैन धर्म, साहित्य तथा संस्कृति का महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। अमोघवर्ष का गुरु और आदि पुराण तथा पार्श्वाभ्यूदय काव्य इत्यादि का रचयिता जिनसेन यहीं का निवासी था। इनके अतिरिक्त जैन गणितज्ञ महेन्द्र, गुणभद्र, पुष्यदन्त, और कन्नड़ लेखक पोन्ना भी यहीं के निवासी थे। अमोघवर्ष स्वयं भी वृद्धावस्था में राजपाट त्याग कर जैन श्रवण बन गया था। इन्द्रराज चतुर्थ ने भी जैनधर्म के अनुसार सन्यास की दीक्षा ले ली थी। मलखेड़ में, इस काल में, संस्कृत और कन्नड़ भाषाओं की बहुत उन्नति हुई। जिनसेन के ग्रंथों के अतिरिक्त, राष्ट्रकूट नरेशों के समय में उनके द्वारा या उनके प्रोत्साहन से अमोघवृत्ति, संस्कृत व्याकरण टीका, गणितसार, महावीर के द्वारा रचित, कविराज मार्ग, कन्नड़ काव्यशास्त्र पर अमोघवर्ष की रचना और रत्नमालिका, अमोघवर्ष की कृति आदि ग्रंथों की भी रचना की गई। गुणभद्र ने आदिपुराण का उत्तरभाग राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण द्वितीय के शासन काल में लिखा। इसी समय का सबसे प्रसिद्ध लेखक पुष्पदंत था, जिसके लिखे हुए महापुराण, नयकुमाराचरिपु (अपभ्रंश ग्रंथ) आज भी विद्यमान हैं। कृष्ण द्वितीय के शासन काल में (939 ई.) इन्द्रनन्दी ने ज्वाला मालिनी कल्प और सोमदेव ने 959 ई. में यशस्तिलक चूंपकाव्य लिखे। उपयुक्त सभी कृतियों का सम्बन्ध मण्यखेट से था जिसके कारण इस नगर की मध्यकाल में, दक्षिण भारत के सभी विद्या केन्द्रों से अधिक ख्याति थी। राष्ट्रकूट काल में मलखेड़ अपने भव्य प्रासादों, व्यस्त बाज़ारों, प्रमोदवनों और उद्यानों के लिए प्रसिद्ध था। वर्तमान समय में मालखेड़, सिराम और नगई नामक ग्राम प्राचीन मण्यखेट के स्थान पर बसे हुए हैं।

दिगम्बर जैन नगई

दिगम्बर जैन नगई को अब भी तीर्थ मानते हैं। यहाँ 16 नक़्क़ाशीदार स्तम्भों का एक भव्य मण्डप है, जो किसी प्राचीन मन्दिर का प्रवेश द्वार था। इस मन्दिर का आधार ताराकार है, जो चालुक्य वास्तुकला का लक्षण माना जाता है। इसमें काले पत्थर के दो अभिलिखित पट्ट जड़े हैं। पास ही हनुमान मन्दिर है, जिसका सुन्दर दीपस्तम्भ गर्जराकार बना है। सिराम में पंचलिंग मन्दिर है, जिसका दीपदानस्तम्भ एक पत्थर ही में ताराशा हुआ है। यह 11वीं, 12वीं शती की रचना है। इसके अतिरिक्त 11वीं से 13वीं शती के कुछ जैन मन्दिर तथा मूर्तियाँ भी यहाँ हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • ऐतिहासिक स्थानावली से पेज संख्या 714-715 | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार

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