हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "==टीका टिप्पणी और संदर्भ==" to "{{संदर्भ ग्रंथ}} ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "{{लेख प्रगति |आधार=आधार1 |प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}" to "{{लेख प्रगति |आधार= |प्रारम्भि�) |
||
Line 11: | Line 11: | ||
{{प्रचार}} | {{प्रचार}} | ||
{{लेख प्रगति | {{लेख प्रगति |आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
|आधार= | |||
|प्रारम्भिक= | |||
|माध्यमिक= | |||
|पूर्णता= | |||
|शोध= | |||
}} | |||
{{संदर्भ ग्रंथ}} | {{संदर्भ ग्रंथ}} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== |
Revision as of 07:50, 27 July 2012
हड़प्पा संस्कृति की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता थी- इसकी नगर योजना। इस सभ्यता के महत्त्वपूर्ण स्थलों के नगर निर्माण में समरूपता थी। नगरों के भवनो के बारे में विशिष्ट बात यह थी कि ये जाल की तरह विन्यस्त थे।
नगर
प्राप्त नगरों के अवशेषों से पूर्व और पश्चिम दिशा में दो टीले मिले मिले है। पूर्व दिशा में स्थित टीले पर 'नगर' या फिर 'आवास' क्षेत्र के साक्ष्य मिलते हैं। पश्चिम के टीले पर 'गढ़ी' अथवा 'दुर्ग' के साक्ष्य मिले हैं। लोथल एवं सूरकोटदा के 'दुर्ग' और 'नगर' क्षेत्र दोनों एक ही रक्षा-प्राचीर से घिरे है।
मकान
यहाँ प्राप्त मकानों के अवशेषो से स्पष्ट होता है कि प्रत्येक 'मकान' के बीच में एक 'आंगन' होता था, आंगन के चारों ओर चार-पांच बड़े कमरे 'रसोईघर' एवं 'स्नानागार' के साथ बने होते थे। स्नानागार गली की ओर बने होते थे। कुछ बड़े आकार के भवन मिले हैं जिसमें 30 कमरे तक बने होते थे एवं दो मंजिले भवन का भी अवशेष मिला है। घरों के दरवाजे एवं खिड़िकियाँ सड़क की ओर न खुलकर पिछवाड़े की ओर खुलती थी। भवन निर्माण में प्रयुंक्त ईंटों का आकार 51.43x26.27x6.35 सेमी बड़ी ईंट, 36.83x18.41x10.16 सेमी मझोले आकार की ईंट, 24.13x11.05x5.08 सेमी. छोटे आकार की ईटें होती थी। ईटों के निर्माण का निश्चित अनुपात 4:2:1 था। यहाँ पर मिले भवन अलंकरण रहित हैं।, केवल कालीबंगा में फर्श के निर्माण में अलंकृत ईंट का प्रयोग किया गया है।
सड़कें
सिंधु सभ्यता में सड़कों का जाल नगर को कई भागों में विभाजित करता था। सड़कें पूर्व से पश्चिम एवं उत्तर से दक्षिण की ओर जाती हुई एक दूसरे को समकोण पर काटती थी। मोहनजोदाड़ो में पाये गये मुख्य मार्गो की चौड़ाई लगभग 9.15 मीटर एवं गलियां क़रीब 3 मीटर चौड़ी होती थी। सड़को का निर्माण मिट्टी से किया गया था। सड़को के दोनो ओर नालियों का निर्माण पक्की ईटों द्वारा किया गया था और इन नालियों में थोड़ी-थोड़ी दूर पर ‘मानुस मोखे‘ बनाये गये थे। नलियों के जल निकास का इतना उत्तम प्रबन्घ किसी अन्य समकालीन सभ्यता में नहीं मिलता ।
|
|
|
|
|