कनिष्क: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 3: Line 3:


==कनिष्क और बौद्ध धर्म==
==कनिष्क और बौद्ध धर्म==
किंवदंतियों के अनुसार कनिष्क [[पाटलिपुत्र]] पर आक्रमण कर [[अश्वघोष]] नामक कवि तथा [[बौद्ध]] दार्शनिक को अपने साथ ले गया था और उसी के प्रभाव में आकर सम्राट की बौद्ध धर्म की ओर प्रवृत्ति हुई । इसके समय में कश्मीर में कुण्डलवन विहार अथवा जालंधर में चतुर्थ बौद्ध संगीति प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान वसुमित्र की अध्यक्षता में हुई । [[हुएंत्सांग]] के मतानुसार सम्राट कनिष्क की संरक्षता तथा आदेशानुसार इस संगीति में 500 बौद्ध विद्वानों ने भाग लिया और [[त्रिपिटक]] का पुन: संकलन संस्करण हुआ । इसके समय से बैद्ध ग्रंथों के लिए [[संस्कृत]] भाषा का प्रयोग हुआ और [[महायान]] बौद्ध संप्रदाय का भी प्रादुर्भाव हुआ । कुछ विद्वानों के मतानुसार [[गांधार]] कला का स्वर्णयुग भी इसी समय था, पर अन्य विद्वानों के अनुसार इस सम्राट के समय उपर्युक्त कला उतार पर थी । स्वयं बौद्ध होते हुए भी सम्राट के धार्मिक दृष्टिकोण में उदारता का पर्याप्त समावेश था और उसने अपनी मुद्राओं पर [[यूनानी]], ईरानी, हिन्दू और बौद्ध देवी देवताओं की मूर्तियाँ अंकित करवाई, जिससे उसके धार्मिक विचारों का पता चलता है । 'एकंसद् विप्रा बहुधा वदंति' की वैदिक भावना को उसने क्रियात्मक स्वरूप दिया।
किंवदंतियों के अनुसार कनिष्क [[पाटलिपुत्र]] पर आक्रमण कर [[अश्वघोष]] नामक कवि तथा [[बौद्ध]] दार्शनिक को अपने साथ ले गया था और उसी के प्रभाव में आकर सम्राट की बौद्ध धर्म की ओर प्रवृत्ति हुई । इसके समय में कश्मीर में कुण्डलवन विहार अथवा जालंधर में चतुर्थ बौद्ध संगीति प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान वसुमित्र की अध्यक्षता में हुई । [[हुएनसांग]] के मतानुसार सम्राट कनिष्क की संरक्षता तथा आदेशानुसार इस संगीति में 500 बौद्ध विद्वानों ने भाग लिया और [[त्रिपिटक]] का पुन: संकलन संस्करण हुआ । इसके समय से बैद्ध ग्रंथों के लिए [[संस्कृत]] भाषा का प्रयोग हुआ और [[महायान]] बौद्ध संप्रदाय का भी प्रादुर्भाव हुआ । कुछ विद्वानों के मतानुसार [[गांधार]] कला का स्वर्णयुग भी इसी समय था, पर अन्य विद्वानों के अनुसार इस सम्राट के समय उपर्युक्त कला उतार पर थी । स्वयं बौद्ध होते हुए भी सम्राट के धार्मिक दृष्टिकोण में उदारता का पर्याप्त समावेश था और उसने अपनी मुद्राओं पर [[यूनानी]], ईरानी, हिन्दू और बौद्ध देवी देवताओं की मूर्तियाँ अंकित करवाई, जिससे उसके धार्मिक विचारों का पता चलता है । 'एकंसद् विप्रा बहुधा वदंति' की वैदिक भावना को उसने क्रियात्मक स्वरूप दिया।


==क्षत्रपों तथा महाक्षत्रपों की नियुक्ति==  
==क्षत्रपों तथा महाक्षत्रपों की नियुक्ति==  
इतने विस्तृत साम्राज्य के शासन के लिए सम्राट् ने क्षत्रपों तथा महाक्षत्रपों की नियुक्ति की जिनका उल्लेख उसके लेखों में है । स्थानीय शासन संबंधी 'ग्रामिक' तथा 'ग्राम कूट्टक' और 'ग्रामवृद्ध पुरुष' और 'सेना संबंधी', 'दंडनायक' तथा 'महादंडनायक' इत्यादि अधिकारियों का भी उसके लेखों में उल्लेख है ।
इतने विस्तृत साम्राज्य के शासन के लिए सम्राट् ने क्षत्रपों तथा महाक्षत्रपों की नियुक्ति की जिनका उल्लेख उसके लेखों में है । स्थानीय शासन संबंधी 'ग्रामिक' तथा 'ग्राम कूट्टक' और 'ग्रामवृद्ध पुरुष' और 'सेना संबंधी', 'दंडनायक' तथा 'महादंडनायक' इत्यादि अधिकारियों का भी उसके लेखों में उल्लेख है ।






[[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:शक कुषाण काल]]
[[Category:बौद्ध धर्म कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

Revision as of 12:47, 1 June 2010

कनिष्क|300px|right कनिष्क कुषाण वंश का प्रमुख सम्राट कनिष्क भारतीय इतिहास में अपनी विजय, धार्मिक प्रवृत्ति, साहित्य तथा कला का प्रेमी होने के नाते विशेष स्थान रखता है। कुमारलात की कल्पनामंड टीका के अनुसार इसने भारतविजय के पश्चात मध्य एशिया में खोतान जीता और वहीं पर राज्य करने लगा । इसके लेख पेशावर, माणिक्याल (रावलपिंडी), सुयीविहार (बहावलपुर),जेदा (रावलपिंडी), मथुरा, कौशांबी तथा सारनाथ में मिले हैं, और इसके सिक्के सिंध से लेकर बंगाल तक पाए गए हैं । कल्हण ने भी अपनी 'राजतरंगिणी' में कनिष्क, झुष्क और हुष्क द्वारा कश्मीर पर राज्य तथा वहाँ अपने नाम पर नगर बसाने का उल्लेख किया है । इनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि सम्राट कनिष्क का राज्य कश्मीर से उत्तरी सिंध तथा पेशावर से सारनाथ के आगे तक फैला था ।

कनिष्क और बौद्ध धर्म

किंवदंतियों के अनुसार कनिष्क पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर अश्वघोष नामक कवि तथा बौद्ध दार्शनिक को अपने साथ ले गया था और उसी के प्रभाव में आकर सम्राट की बौद्ध धर्म की ओर प्रवृत्ति हुई । इसके समय में कश्मीर में कुण्डलवन विहार अथवा जालंधर में चतुर्थ बौद्ध संगीति प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान वसुमित्र की अध्यक्षता में हुई । हुएनसांग के मतानुसार सम्राट कनिष्क की संरक्षता तथा आदेशानुसार इस संगीति में 500 बौद्ध विद्वानों ने भाग लिया और त्रिपिटक का पुन: संकलन संस्करण हुआ । इसके समय से बैद्ध ग्रंथों के लिए संस्कृत भाषा का प्रयोग हुआ और महायान बौद्ध संप्रदाय का भी प्रादुर्भाव हुआ । कुछ विद्वानों के मतानुसार गांधार कला का स्वर्णयुग भी इसी समय था, पर अन्य विद्वानों के अनुसार इस सम्राट के समय उपर्युक्त कला उतार पर थी । स्वयं बौद्ध होते हुए भी सम्राट के धार्मिक दृष्टिकोण में उदारता का पर्याप्त समावेश था और उसने अपनी मुद्राओं पर यूनानी, ईरानी, हिन्दू और बौद्ध देवी देवताओं की मूर्तियाँ अंकित करवाई, जिससे उसके धार्मिक विचारों का पता चलता है । 'एकंसद् विप्रा बहुधा वदंति' की वैदिक भावना को उसने क्रियात्मक स्वरूप दिया।

क्षत्रपों तथा महाक्षत्रपों की नियुक्ति

इतने विस्तृत साम्राज्य के शासन के लिए सम्राट् ने क्षत्रपों तथा महाक्षत्रपों की नियुक्ति की जिनका उल्लेख उसके लेखों में है । स्थानीय शासन संबंधी 'ग्रामिक' तथा 'ग्राम कूट्टक' और 'ग्रामवृद्ध पुरुष' और 'सेना संबंधी', 'दंडनायक' तथा 'महादंडनायक' इत्यादि अधिकारियों का भी उसके लेखों में उल्लेख है ।