गुरदयाल सिंह ढिल्लों: Difference between revisions
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'''डॉ. गुरदयाल सिंह ढिल्लों''' भारत के | '''डॉ. गुरदयाल सिंह ढिल्लों''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Gurdial Singh Dhillon'', जन्म: 6 अगस्त, 1915 - मृत्यु: 23 मार्च 1992) [[भारत]] के पाँचवें [[लोकसभा]] अध्यक्ष थे। ये 'जी. एस. ढिल्लों' नाम से भी प्रसिद्ध हैं। गुरदयाल सिंह ढिल्लों बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे जिन्हें कानून से लेकर [[पत्रकारिता]] तथा शिक्षा और खेलकूद से लेकर संवैधानिक अध्ययन में रुचि थी। सिद्धांतों से समझौता करना उन्हें कतई पसंद नहीं था। उनके लिए संसद लोकतंत्र का मंदिर था और इसलिए सभा और इसकी परम्पराओं तथा परिपाटियों के प्रति उनके मन में अत्यधिक सम्मान था। उनमें सभा की मनःस्थिति को पल भर में भांपने की अद्भुत क्षमता थी तथा उनका दृष्टिकोण व्यावहारिक हुआ करता था। इन्हीं गुणों के कारण वे अध्यक्ष पद के गुरुतर दायित्व का निर्वहन गौरवशाली तरीके से कर पाए। अंतर-संसदीय संघ की अंतर-संसदीय परिषद के अध्यक्ष के रूप में ढिल्लों का चुनाव न केवल उनके लिए बल्कि भारत की पूरी जनता तथा भारतीय [[संसद]] के लिए भी बहुत सम्मान की बात थी। | ||
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डॉ. गुरदयाल सिंह ढिल्लों (अंग्रेज़ी: Gurdial Singh Dhillon, जन्म: 6 अगस्त, 1915 - मृत्यु: 23 मार्च 1992) भारत के पाँचवें लोकसभा अध्यक्ष थे। ये 'जी. एस. ढिल्लों' नाम से भी प्रसिद्ध हैं। गुरदयाल सिंह ढिल्लों बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे जिन्हें कानून से लेकर पत्रकारिता तथा शिक्षा और खेलकूद से लेकर संवैधानिक अध्ययन में रुचि थी। सिद्धांतों से समझौता करना उन्हें कतई पसंद नहीं था। उनके लिए संसद लोकतंत्र का मंदिर था और इसलिए सभा और इसकी परम्पराओं तथा परिपाटियों के प्रति उनके मन में अत्यधिक सम्मान था। उनमें सभा की मनःस्थिति को पल भर में भांपने की अद्भुत क्षमता थी तथा उनका दृष्टिकोण व्यावहारिक हुआ करता था। इन्हीं गुणों के कारण वे अध्यक्ष पद के गुरुतर दायित्व का निर्वहन गौरवशाली तरीके से कर पाए। अंतर-संसदीय संघ की अंतर-संसदीय परिषद के अध्यक्ष के रूप में ढिल्लों का चुनाव न केवल उनके लिए बल्कि भारत की पूरी जनता तथा भारतीय संसद के लिए भी बहुत सम्मान की बात थी।
जीवन परिचय
गुरदयाल सिंह ढिल्लों का जन्म पंजाब के अमृतसर ज़िले के पंजवार में 6 अगस्त, 1915 को हुआ था। वे एक मेधावी छात्र थे। उनकी शिक्षा-दीक्षा खालसा कालेज, अमृतसर, गवर्नमेंट कालेज, लाहौर और यूनिवर्सिटी लॉ कालेज, लाहौर में हुई। 1937 से 1945 तक की अवधि के दौरान ढिल्लों ने वकालत की और एक सफल वकील के रूप में ख्याति अर्जित की। उनकी वकालत खूब चलती थी। इसके बावजूद वे अपनी देशभक्ति की भावना और अपने देशवासियों के प्रति चिंता को दबा नहीं सके। शीघ्र ही वे स्वतंत्रता संघर्ष तथा किसान आंदोलन में पूरी तरह कूद पड़े जिसके कारण उन्हें ब्रिटिश शासकों का कोपभाजन होना पड़ा। स्वतंत्रता संघर्ष से संबंधित गतिविधियों के लिए उन्हें दो बार जेल भेजा गया। लम्बे समय तक जेल में रहने के कारण उन्होंने वकालत छोड़ दी।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
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