अरुणा रॉय: Difference between revisions

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Revision as of 14:20, 20 September 2012

अरुणा रॉय
जन्म 26 मई, 1946
जन्म भूमि चेन्नई
पति/पत्नी संजीव बंकर राय
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिज्ञ
भाषा हिन्दी, अंग्रेज़ी
पुरस्कार-उपाधि 'मेग्सेसे पुरस्कार' (2000) और 'मेवाड़ सेवाश्री'
अन्य जानकारी अरुणा रॉय सम्पूर्ण भारत में संचालित 'मजदूर किसान शक्ति संगठन' की संस्थापिका और अध्यक्ष हैं।
अद्यतन‎ 6:05, 20 सितम्बर-2012 (IST)

अरुणा रॉय (जन्म- 26 मई, 1946, चेन्नई) भारत की उन महिलाओं में से एक हैं, जो बेहतर सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ-साथ राजनीति में भी सक्रिय रूप से क्रियाशील हैं। इन्हें राजस्थान के गरीब लोगों के जीवन को सुधारने और इस दिशा में किये गए उनके प्रयासों के लिए विशेष तौर पर जाना जाता है। भारत में सूचना का अधिकार लागू करने के लिए उनके द्वारा किये गए प्रयत्न और योगदान प्रशंसनीय हैं। अरुणा रॉय राजस्थान के राजसमंद ज़िले में स्थित देवडूंगरी ग्राम से सम्पूर्ण भारत में संचालित 'मजदूर किसान शक्ति संगठन' की संस्थापिका और अध्यक्ष हैं।

समाज सेवा

26 मई, 1946 को अरुणा रॉय का जन्म मद्रास (वर्तमान चेन्नई) में हुआ था। वे 'भारतीय प्रशासनिक सेवा' (आई.ए.एस.) के लिए चुनी गईं थीं। 1968 से 1973 तक इस प्रतिष्ठित सेवा के बाद इन्होंने सामाजिक कार्यों के हित में यह पद त्याग दिया। अरुणा रॉय ने सामाजिक सेवा का काम तिलोनिया, राजस्थान स्थित 'सोशल वर्क एण्ड रिसर्च सेंटर' से शुरू किया। यह संस्थान उनके पति संजीव बंकर राय द्वारा स्थापित किया गया था।

संगठन की स्थापना

1983 में उनका अपने पति से अलगाव हुआ और वह 1987 में राजस्थान के राजसमंद ज़िले के देवडूंगरी गाँव आ गईं। वहाँ काम करते हुए 1990 में 'मज़दूर किसान शक्ति संगठन' की स्थापना की। यह एक गैर राजनैतिक जन-संगठन माना गया। इस संगठन के लिए काम करते हुए अरुणा रॉय ने स्त्रियों तथा मज़दूर-किसानों को संगठित करके उन्हें जागरूकता का पाठ पढ़ाया।

पुरस्कार

सन 2000 में अरुणा रॉय को 'सामुदायिक नेतृत्व' की श्रेणी में 'मेग्सेसे पुरस्कार' और 'मेवाड़ सेवाश्री' आदि पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार देते हुए इनके उस प्रयास को विशेष रूप से पहचाना गया, जिसके ज़रिये इन्होंने स्त्रियों तथा मज़दूर किसानों को उनके सूचना पाने के अधिकार की व्यापक जानकारी दी थी। अरुणा रॉय ने पुरस्कार से प्राप्त राशि को एक ट्रस्ट को सौंप दिया था, जिससे लोकतांत्रिक अधिकारों के पक्ष में संघर्ष को बल मिले।


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