ढोल दमामा डुगडुगी -कबीर: Difference between revisions
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Latest revision as of 07:32, 10 January 2014
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ढोल दमामा डुगडुगी, सहनाई औ भेरि । |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! इस जीवन में वैभव प्रदर्शन हेतु बाजे जैसे ढोल, धौंसा, डुगडुगी, शहनाई और भेरी विशेष अवसरों पर बजाए जाते हैं। परन्तु जीवन इतना क्षण-भंगुर है कि जो अवसर बीत गया, उसे पुन: वापस नहीं लाया जा सकता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख