ढोल दमामा डुगडुगी -कबीर: Difference between revisions

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[[कबीरदास]] कहते हैं कि हे मानव! इस जीवन में वैभव प्रदर्शन हेतु बाजे जैसे ढोल, धौंसा, डुगडुगी, [[शहनाई]] और भेरी विशेष अवसरों पर बजाए जाते हैं। परन्तु जीवन इतना क्षण-भंगुर है कि जो अवसर बीत गया, उसे पुन: वापस नहीं लाया जा सकता है।




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Latest revision as of 07:32, 10 January 2014

ढोल दमामा डुगडुगी -कबीर
कवि कबीर
जन्म 1398 (लगभग)
जन्म स्थान लहरतारा ताल, काशी
मृत्यु 1518 (लगभग)
मृत्यु स्थान मगहर, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ साखी, सबद और रमैनी
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कबीर की रचनाएँ

ढोल दमामा डुगडुगी, सहनाई औ भेरि ।
औसर चले बजाइ करि, है कोइ लावै फेरि।।

अर्थ सहित व्याख्या

कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! इस जीवन में वैभव प्रदर्शन हेतु बाजे जैसे ढोल, धौंसा, डुगडुगी, शहनाई और भेरी विशेष अवसरों पर बजाए जाते हैं। परन्तु जीवन इतना क्षण-भंगुर है कि जो अवसर बीत गया, उसे पुन: वापस नहीं लाया जा सकता है।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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