हौदेश्वरनाथ मंदिर: Difference between revisions

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बाबा हौदेश्वरनाथ मंदिर से जुड़ी कई किंवदन्तियां हैं जब महाराज [[भगीरथ]] ने भोले नाथ की घोर तपस्या से उन्हें प्रसन्न कर वरदान स्वरूप मां [[गंगा]] को लेकर जा रहे थे तो हौदेश्वर धाम से तीन किलोमीटर पश्चिम वर्तमान में करेंटी घाट के पास जाह्नवी ऋषि तपस्या में लीन थे। गंगा की तेज धारा का गर्जन सुनकर उनकी तपस्या भंग हो गयी। नाराज ऋषि ने गंगा का पान कर लिया। हताश [[भगीरथ]] ने [[शिवलिंग]] की स्थापना कर वर्तमान में शाहपुर गांवके पास पुन: घोर तपस्या प्रारम्भ की। यहां पर उन्होंने वेदी का निर्माण किया और तपस्या और हवन-यज्ञ किया। कालान्तर में इस वेदी का नाम बेंती पड़ गया। इसके पश्चात घोर तपस्या से प्रसन्न शिव जी ने पुन: दर्शन देकर बताया कि मां गंगा का जाह्नवी ऋषि ने पान कर लिया है। ऋषि की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न करो और गंगा को अपने साथ लेकर जाओ। भगीरथ की घोर तपस्या से प्रसन्न ऋषि ने सोचा कि यदि गंगा को अपने मुख से बाहर निकालता हूं तो गंगा जूठी हो जायेंगी । तब ऋषिवर ने अपनी जंघा चीरकर मां गंगा को बाहर निकाला। इसके पश्चात उन्होंने बताया कि इस स्थान से 5 किलो मीटर तक गंगा को [[जाह्नवी]] के नाम से जाना जाएगा। आज यह स्थान हौदेश्वर नाथ धाम के नाम से जनपद में विख्यात है।   
बाबा हौदेश्वरनाथ मंदिर से जुड़ी कई किंवदन्तियां हैं जब महाराज [[भगीरथ]] ने भोले नाथ की घोर तपस्या से उन्हें प्रसन्न कर वरदान स्वरूप मां [[गंगा]] को लेकर जा रहे थे तो हौदेश्वर धाम से तीन किलोमीटर पश्चिम वर्तमान में करेंटी घाट के पास जाह्नवी ऋषि तपस्या में लीन थे। गंगा की तेज धारा का गर्जन सुनकर उनकी तपस्या भंग हो गयी। नाराज ऋषि ने गंगा का पान कर लिया। हताश [[भगीरथ]] ने [[शिवलिंग]] की स्थापना कर वर्तमान में शाहपुर गांवके पास पुन: घोर तपस्या प्रारम्भ की। यहां पर उन्होंने वेदी का निर्माण किया और तपस्या और हवन-यज्ञ किया। कालान्तर में इस वेदी का नाम बेंती पड़ गया। इसके पश्चात घोर तपस्या से प्रसन्न शिव जी ने पुन: दर्शन देकर बताया कि मां गंगा का जाह्नवी ऋषि ने पान कर लिया है। ऋषि की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न करो और गंगा को अपने साथ लेकर जाओ। भगीरथ की घोर तपस्या से प्रसन्न ऋषि ने सोचा कि यदि गंगा को अपने मुख से बाहर निकालता हूं तो गंगा जूठी हो जायेंगी । तब ऋषिवर ने अपनी जंघा चीरकर मां गंगा को बाहर निकाला। इसके पश्चात उन्होंने बताया कि इस स्थान से 5 किलो मीटर तक गंगा को [[जाह्नवी]] के नाम से जाना जाएगा। आज यह स्थान हौदेश्वर नाथ धाम के नाम से जनपद में विख्यात है।   


== महत्वता ==  
== महत्ता==  
[[सप्ताह]] के हर [[मंगलवार]] यहाँ मेला का आयोजन होता है। यहां पर रोजाना हजारों की संख्या में श्रद्धालु [[पूजा]] दर्शन के लिए आते हैं। [[मल मास|मलमास]] में श्रद्धालुओं व शिवभक्तों की भारी भीड़ होती है। बाबा हौदेश्वर नाथ धाम की महिमा अपने आप में विलक्षण है। धाम के बगल से अनवरत बहने वाली गंगा नदी का नाम यहीं से जाह्नवी पड़ा है। मलमास में भक्तों की भारी भीड़ लगती है। दूर दराज से [[शिव]] भक्त मंदिर में जलाभिषेक करने आते हैं।
[[सप्ताह]] के हर [[मंगलवार]] यहाँ मेला का आयोजन होता है। यहां पर रोजाना हजारों की संख्या में श्रद्धालु [[पूजा]] दर्शन के लिए आते हैं। [[मल मास|मलमास]] में श्रद्धालुओं व शिवभक्तों की भारी भीड़ होती है। बाबा हौदेश्वर नाथ धाम की महिमा अपने आप में विलक्षण है। धाम के बगल से अनवरत बहने वाली गंगा नदी का नाम यहीं से जाह्नवी पड़ा है। मलमास में भक्तों की भारी भीड़ लगती है। दूर दराज से [[शिव]] भक्त मंदिर में जलाभिषेक करने आते हैं।



Revision as of 04:58, 31 July 2014

250px|thumb|right|हौदेश्वरनाथ मंदिर बाबा हौदेश्वरनाथ धाम उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के कुण्डा तहसील मुख्यालय से 12 किलोमीटर दक्षिण दिशा में मां गंगा के पावनतट पर स्थित एक पुरातन मंदिर है।

इतिहास

शाहपुर गांव के समीप गंगा किनारे स्थित टीले पर कुछ लोग सफाई कर रहे थे। इसी दौरान शिवलिंग नुमा पत्थर दिखा। उसकी सफाई कर लोग पूजा करने लगे। धीरे-धीरे इस शिवलिंग का स्वरूप बढ़ने लगा तथा लोगों की आस्था जुड़ती गई। राजा भागीरथ जब अपने पुरखों को तारने के लिए पतित पावनी मां गंगा को लेकर जा रहे थे तो शाहपुर के समीप ही जान्ह्वी ऋषि ध्यानमग्न थे। गंगा जी के वेग से उनका ध्यान भंग हुआ। क्रोधित हो उन्होंने मां गंगा की धारा को रोक लिया। इससे राजा भागीरथ बहुत दु:खी हुए। उन्होंने जाह्नवी ऋषि को खुश करने के लिए बाबा हौदेश्वर नाथ धाम पर वृहद यज्ञ का आयोजन कराया था। उसमें सवा लाख मन हवन की आहुति दी गई थी। जिस स्थान पर वेदी बनाई गई थी वह स्थान आज बेती के नाम से विख्यात है।

पौराणिक कथा

"हौदे से प्रगटे हौदेश्वर नाथ ।
जो अवधेश्वर कहलाये थे ।।
यहीं गंगा भई जान्हवी ।
भागीरथ भोले को धयाये थे ।।"[1]

बाबा हौदेश्वरनाथ मंदिर से जुड़ी कई किंवदन्तियां हैं जब महाराज भगीरथ ने भोले नाथ की घोर तपस्या से उन्हें प्रसन्न कर वरदान स्वरूप मां गंगा को लेकर जा रहे थे तो हौदेश्वर धाम से तीन किलोमीटर पश्चिम वर्तमान में करेंटी घाट के पास जाह्नवी ऋषि तपस्या में लीन थे। गंगा की तेज धारा का गर्जन सुनकर उनकी तपस्या भंग हो गयी। नाराज ऋषि ने गंगा का पान कर लिया। हताश भगीरथ ने शिवलिंग की स्थापना कर वर्तमान में शाहपुर गांवके पास पुन: घोर तपस्या प्रारम्भ की। यहां पर उन्होंने वेदी का निर्माण किया और तपस्या और हवन-यज्ञ किया। कालान्तर में इस वेदी का नाम बेंती पड़ गया। इसके पश्चात घोर तपस्या से प्रसन्न शिव जी ने पुन: दर्शन देकर बताया कि मां गंगा का जाह्नवी ऋषि ने पान कर लिया है। ऋषि की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न करो और गंगा को अपने साथ लेकर जाओ। भगीरथ की घोर तपस्या से प्रसन्न ऋषि ने सोचा कि यदि गंगा को अपने मुख से बाहर निकालता हूं तो गंगा जूठी हो जायेंगी । तब ऋषिवर ने अपनी जंघा चीरकर मां गंगा को बाहर निकाला। इसके पश्चात उन्होंने बताया कि इस स्थान से 5 किलो मीटर तक गंगा को जाह्नवी के नाम से जाना जाएगा। आज यह स्थान हौदेश्वर नाथ धाम के नाम से जनपद में विख्यात है।

महत्ता

सप्ताह के हर मंगलवार यहाँ मेला का आयोजन होता है। यहां पर रोजाना हजारों की संख्या में श्रद्धालु पूजा दर्शन के लिए आते हैं। मलमास में श्रद्धालुओं व शिवभक्तों की भारी भीड़ होती है। बाबा हौदेश्वर नाथ धाम की महिमा अपने आप में विलक्षण है। धाम के बगल से अनवरत बहने वाली गंगा नदी का नाम यहीं से जाह्नवी पड़ा है। मलमास में भक्तों की भारी भीड़ लगती है। दूर दराज से शिव भक्त मंदिर में जलाभिषेक करने आते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जीतेश वैश्य

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख