वसंत ऋतु: Difference between revisions
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प्राकृतिक सौन्द्रर्य का असली मजा लद्दाख की नुब्रा घाटी में बसा है। अगर आप इस इलाके में वसंत ऋतु में जाये तो माहौल और पावान पर होती है। गाँव के रेतीले रास्तो पर चलते हुए हरी भरी मैदानो का | प्राकृतिक सौन्द्रर्य का असली मजा लद्दाख की नुब्रा घाटी में बसा है। अगर आप इस इलाके में वसंत ऋतु में जाये तो माहौल और पावान पर होती है। गाँव के रेतीले रास्तो पर चलते हुए हरी भरी मैदानो का नज़ारा लेते हुए गाँव के दुसरे ओर स्थित पहाड़ पर नजर दौडाना अपने आप में एक मस्त कर देने वाला माहौल पैदा करता है। ईश्वर को याद करने के लिए यहाँ एक बहुत बड़ा प्रार्थना गृह बना हुआ है जो यहाँ आने वाले पर्यटकों को काफ़ी आकर्षित करता है। इस गाँव में 350 साल पुराना एक मांनस्ट्री है जो पर्यटको को अपनी ओर आकर्षित करती है। | ||
====सुमुर गाँव==== | ====सुमुर गाँव==== | ||
नुब्रा घाटी में सेमस्टेम लिंग गोपा के नाम से प्रसिद्ध यह गांव काफ़ी लोकप्रिय हैं। यहाँ सक्युमनी का एक बड़ी मुर्ति है, जिसके आस-पास लगी तस्वीर पर्यटको को आकर्षित करती है। यह इलाका नुब्रो घाटी के मानेंस्टी के नाम से भी जाना जाता है। | नुब्रा घाटी में सेमस्टेम लिंग गोपा के नाम से प्रसिद्ध यह गांव काफ़ी लोकप्रिय हैं। यहाँ सक्युमनी का एक बड़ी मुर्ति है, जिसके आस-पास लगी तस्वीर पर्यटको को आकर्षित करती है। यह इलाका नुब्रो घाटी के मानेंस्टी के नाम से भी जाना जाता है। |
Revision as of 14:36, 31 July 2014
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वसंत ऋतु भारत की 6 ऋतुओं में से एक ऋतु है। अंग्रेज़ी कलेंडर के अनुसार फरवरी, मार्च और अप्रैल माह में वसंत ऋतु रहती है। वसंत को ऋतुओं का राजा अर्थात सर्वश्रेष्ठ ऋतु माना गया है। इस समय पंचतत्त्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं। पंच-तत्त्व- जल, वायु, धरती, आकाश और अग्नि सभी अपना मोहक रूप दिखाते हैं। आकाश स्वच्छ है, वायु सुहावनी है, अग्नि (सूर्य) रुचिकर है तो जल पीयूष के समान सुखदाता और धरती उसका तो कहना ही क्या वह तो मानों साकार सौंदर्य का दर्शन कराने वाली प्रतीत होती है। ठंड से ठिठुरे विहंग अब उड़ने का बहाना ढूंढते हैं तो किसान लहलहाती जौ की बालियों और सरसों के फूलों को देखकर नहीं अघाता। धनी जहाँ प्रकृति के नव-सौंदर्य को देखने की लालसा प्रकट करने लगते हैं तो निर्धन शिशिर की प्रताड़ना से मुक्त होने के सुख की अनुभूति करने लगते हैं। सच! प्रकृति तो मानों उन्मादी हो जाती है। हो भी क्यों ना! पुनर्जन्म जो हो जाता है। श्रावण की पनपी हरियाली शरद के बाद हेमन्त और शिशिर में वृद्धा के समान हो जाती है, तब वसंत उसका सौन्दर्य लौटा देता है। नवगात, नवपल्ल्व, नवकुसुम के साथ नवगंध का उपहार देकर विलक्षणा बना देता है।
वसंत में गांव का मजा
वसंत के सुहाने मौसम में घूमने का मजा कुछ ख़ास ही होता है। इस सुहाने मौसम में अगर आप को कहीं जाने का मन करे तो आप सोचेंगे कहाँ जाएँ, क्या करें? इस मौसम में पर्यटकों को रेतों से चमकते टीले देखने में अच्छे लगते है और पर्यटक ख़ूबसूरत पहाड़ियों के नज़ारे में मग्न होकर इसके आस-पास के गांव प्राकृतिक सौन्दर्य में खो जाते है। जहाँ एक तरफ रेतीले मैदान हों, तो दूसरी तरफ बर्फ़ से ढके पहाड़ या गांव, जो अपनी इलाज पद्धति के कारण विश्व प्रसिद्ध हैं। बात हो रही है लद्दाख के नुब्रा घाटी के मशहूर गांव के बारे में। लद्दाख में धूमने को बहुत कुछ है, लेकिन अधिकांश पर्यटन यहाँ के गाँव घूमने आते है। चाहे वह सुमुर गाँव हो या इलाजो के लिए मशहूर गाँव हांप स्प्रिंग हो या मांनेस्ट्री और खुबानी के खेती के लिए मशहूर गाँव दिसकिप हो। पर्यटकों की खातिरदारी गाँव का आदरर्पूण माहौल एवं शहर से कही दूर पहाड़ों के बीच प्राकृतिक सौन्द्रर्य का अनूठा दृश्य पर्यटकों को इन गाँव की ओर आकर्षित करता है।
प्राकृतिक सौन्द्रर्य का असली मजा लद्दाख की नुब्रा घाटी में बसा है। अगर आप इस इलाके में वसंत ऋतु में जाये तो माहौल और पावान पर होती है। गाँव के रेतीले रास्तो पर चलते हुए हरी भरी मैदानो का नज़ारा लेते हुए गाँव के दुसरे ओर स्थित पहाड़ पर नजर दौडाना अपने आप में एक मस्त कर देने वाला माहौल पैदा करता है। ईश्वर को याद करने के लिए यहाँ एक बहुत बड़ा प्रार्थना गृह बना हुआ है जो यहाँ आने वाले पर्यटकों को काफ़ी आकर्षित करता है। इस गाँव में 350 साल पुराना एक मांनस्ट्री है जो पर्यटको को अपनी ओर आकर्षित करती है।
सुमुर गाँव
नुब्रा घाटी में सेमस्टेम लिंग गोपा के नाम से प्रसिद्ध यह गांव काफ़ी लोकप्रिय हैं। यहाँ सक्युमनी का एक बड़ी मुर्ति है, जिसके आस-पास लगी तस्वीर पर्यटको को आकर्षित करती है। यह इलाका नुब्रो घाटी के मानेंस्टी के नाम से भी जाना जाता है।
हाँट स्प्रिंग
यहाँ गाँव अपनी इलाजी पद्धति के लिए काफ़ी प्रसिद्ध है। यहाँ आने वाले पर्यटक प्रकृति नज़ारों के साथ-साथ त्वचा से जुड़ी परेशानियाँ भी दूर कराते हैं। इस इलाके में इलाज के लिए लोग काफ़ी दूर-दूर से आते हैं।
कहाँ ठहरें
ठहरने के लिए हर गाँव में छोटे से लेकर बड़े होटल एवं रेस्टोरेंट हैं। यहाँ के स्थानीय लोगों ने अपने घर में पर्यटकों के लिए आरामदायक व्यवस्था बना रखी है। सारे गाँव लेह से 110-130 किमी की दूरी पर स्थित है। इन गाँव में पहुँचने के लिए श्रीनगर-लेह-मार्ग और मनाली-लेह-मार्ग से बस एवं छोटी गाड़ियों से जा सकते हैं। लेह से इस इलाके में जाने के लिए बस एवं छोटी गाड़ियाँ हर वक्त मिलती रहती हैं। लेह देश के हर महानगर से जुड़ा हुआ है। वायुमार्ग के रास्ते लेह एयरपोर्ट पर पहुँचा जा सकता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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