परिहार: Difference between revisions
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[[उत्तर भारत]] में 'प्राचीन भारतीय कृषिजन्य व्यवस्था एवं राजस्व संबंधी पारिभाषिक शब्दावली' के अनुसार '''परिहार''' भूमि अनुदानों के साथ शामिल विशेषाधिकार और छूटें हैं। [[कौटिल्य]] अर्थशास्त्र का निर्देश है कि [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] को प्रदत्त भूमि अनुदान को करों और अर्थदंडों से मुक्त रखना चाहिए। अभिलेखीय साक्ष्य भी इसकी पूर्ण पुष्टि करते हैं। शिवस्कंद्वर्मन के हीरदगल्ली के ताम्रपत्र [[अभिलेख]] में दो प्रकार के परिहारों का उल्लेख है। ये परिहार भू-अनुदान क्षेत्रों में शाही सत्ता के क्षय के सामान्यत: कारक माने जाते हैं। | [[उत्तर भारत]] में 'प्राचीन भारतीय कृषिजन्य व्यवस्था एवं राजस्व संबंधी पारिभाषिक शब्दावली' के अनुसार '''परिहार''' भूमि अनुदानों के साथ शामिल विशेषाधिकार और छूटें हैं। [[कौटिल्य]] अर्थशास्त्र का निर्देश है कि [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] को प्रदत्त भूमि अनुदान को करों और अर्थदंडों से मुक्त रखना चाहिए। अभिलेखीय साक्ष्य भी इसकी पूर्ण पुष्टि करते हैं। शिवस्कंद्वर्मन के हीरदगल्ली के ताम्रपत्र [[अभिलेख]] में दो प्रकार के परिहारों का उल्लेख है। ये परिहार भू-अनुदान क्षेत्रों में शाही सत्ता के क्षय के सामान्यत: कारक माने जाते हैं। | ||
{{seealso|सल्तनत काल की शब्दावली|भूगोल शब्दावली}} | {{seealso|सल्तनत काल की शब्दावली|भूगोल शब्दावली}} | ||
{{शब्द संदर्भ नया | |||
|अर्थ=छोड़ने की क्रिया/भाव, त्याग, तजना, दूर करने की क्रिया/भाव, हटाना, अलग करना, निराकरण, खंडन, दुराव, छिपाव, बलपूर्वक छीनने की क्रिया/भाव, त्रुटि या दोष आदि का निराकरण, ग्राम के समीप की भूमि जो सब ग्रामीणों की मानी जाती है, पशुओं के चरने के लिए छोड़ी गई भूमि, चरागाह, कर/लगान की छूट, माफ़ी, अपमान, तिरस्कार, उपेक्षा, [[अग्निकुल|अग्निवंश]] के अंतर्गत एक राजपूत वंश | |||
|व्याकरण=[[पुल्लिंग]] | |||
|उदाहरण=दृष्टि संबंधी दोषों का '''परिहार''' करने के लिए चश्मा उपयोग किया जाता है। | |||
|विशेष= | |||
|विलोम= | |||
|पर्यायवाची= | |||
|संस्कृत=परि हृ (धातु) + घञ | |||
|अन्य ग्रंथ= | |||
|संबंधित शब्द= | |||
|संबंधित लेख= | |||
|सभी लेख= | |||
}} | |||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} |
Revision as of 12:43, 27 February 2015
उत्तर भारत में 'प्राचीन भारतीय कृषिजन्य व्यवस्था एवं राजस्व संबंधी पारिभाषिक शब्दावली' के अनुसार परिहार भूमि अनुदानों के साथ शामिल विशेषाधिकार और छूटें हैं। कौटिल्य अर्थशास्त्र का निर्देश है कि ब्राह्मणों को प्रदत्त भूमि अनुदान को करों और अर्थदंडों से मुक्त रखना चाहिए। अभिलेखीय साक्ष्य भी इसकी पूर्ण पुष्टि करते हैं। शिवस्कंद्वर्मन के हीरदगल्ली के ताम्रपत्र अभिलेख में दो प्रकार के परिहारों का उल्लेख है। ये परिहार भू-अनुदान क्षेत्रों में शाही सत्ता के क्षय के सामान्यत: कारक माने जाते हैं।
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
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