जेरेमिया: Difference between revisions
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[[बाइबिल]] के पूर्वाद्ध में सात व्यक्तियों का नाम जेरेमिया है, किंतु उनमें से अनाथोथ के नबी<ref>650-587 ई. पू.</ref> प्रमुख हैं। यह जोशीया के राज्यकाल में लगभग 626 ई. पू. ईश्वर की प्रेरणा से [[येरुसलम]] में नबूवत करने लगे। बारूक उनका ईमानदार सखा था।<ref name ="cc">{{cite web |url= http://khoj.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE|title= जेरेमिया|accessmonthday=14 अगस्त|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= भारतखोज|language= हिन्दी}}</ref> | |||
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*587 ई. पू. में बाबुल की सेना ने यहूदिया पर अधिकार कर लिया और | *उच्च वर्ग के लोगों को बाबुल से निर्वासित कर दिया गया। येरुसलम के अवरोध के समय जेरेमिया को अपने विरोधियों से बहुत कष्ट सहना पड़ा। | ||
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* | *जेरेमिया की साहसपूर्ण जीवन यात्रा पराजय पर समाप्त हुई, किंतु धार्मिक क्षेत्र में उनका गहरा प्रभाव रहा। उन्होंने सिखलाया कि मुक्ति का कार्य सांसारिक सफलता पर निर्भर नहीं होता। उनकी तीन रचनाएँ मानी जाती है- | ||
*जेरेमिया की साहसपूर्ण जीवन यात्रा पराजय पर समाप्त हुई किंतु धार्मिक क्षेत्र में उनका गहरा प्रभाव रहा। उन्होंने सिखलाया कि मुक्ति का कार्य सांसारिक सफलता पर निर्भर नहीं होता। उनकी तीन रचनाएँ मानी जाती है- | |||
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Revision as of 06:47, 16 August 2015
जेरेमिया या येरेमिया
बाइबिल के पूर्वाद्ध में सात व्यक्तियों का नाम जेरेमिया है, किंतु उनमें से अनाथोथ के नबी[1] प्रमुख हैं। यह जोशीया के राज्यकाल में लगभग 626 ई. पू. ईश्वर की प्रेरणा से येरुसलम में नबूवत करने लगे। बारूक उनका ईमानदार सखा था।[2]
- जेरेमिया के उपदेशों का सारांश यह था, कि यदि यहूदिया के लोग धर्म की उपेक्षा करते रहेंगे तो वे निश्चय ही नष्ट किए जाएँगे। उन्होंने राजा सेदेकियाह को यह परामर्श दिया कि वह बाबुल (बेबीलोनिया)[3] का आधिपत्य ईश्वर की इच्छा समझकर स्वीकार करें और मिस्र की सहायता से बाबुल का विरोध न करें।
- 587 ई. पू. में बाबुल की सेना ने यहूदिया पर अधिकार कर लिया और येरुसलम तथा उसके मंदिर को नष्ट कर दिया।
- उच्च वर्ग के लोगों को बाबुल से निर्वासित कर दिया गया। येरुसलम के अवरोध के समय जेरेमिया को अपने विरोधियों से बहुत कष्ट सहना पड़ा।
- अपनी विजय के बाद बाबुल के अधिकारियों ने जेरेमिया को कैद से रिहा किया और उनके मित्र गदल्या को राजयपाल बना दिया। बाद में मिस्र के समर्थकों ने गदल्या की हत्या की और जेरेमिया को मिस्र देश में निर्वासित कर दिया।[2]
- जेरेमिया की साहसपूर्ण जीवन यात्रा पराजय पर समाप्त हुई, किंतु धार्मिक क्षेत्र में उनका गहरा प्रभाव रहा। उन्होंने सिखलाया कि मुक्ति का कार्य सांसारिक सफलता पर निर्भर नहीं होता। उनकी तीन रचनाएँ मानी जाती है-
- नवूबतों का ग्रंथ
- एक पत्र
- विलापगीत
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