छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-11: Difference between revisions

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*यह देखकर यजमान राजा ने कहा-'मैं आपको जानना चाहता हूँ ऋषिवर!'
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*उषस्ति ने अपना परिचय दिया-'मैं चक्र का पुत्र उषस्ति हूँ।' तब राजा ने कहा-'आप ही हमारे यज्ञ को पूर्ण करायें।'
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*राजा की स्वीकृति के बाद जब उषस्ति यज्ञ कराने के लिए तैयार हुए, तो प्रस्तोता ने देवता के बारे में पूछा। तब उषस्ति ने कहा-'वह देवता प्राण है।  
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*इसी प्रकार उद्गाता के पूछने पर उन्होंने 'आदित्य' को देवता बताया और उदीयमान [[सूर्य देवता|सूर्य]] की उपासना करने की बात कही।  
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:यह देखकर यजमान राजा ने कहा- "मैं आपको जानना चाहता हूँ ऋषिवर!"
 
:उषस्ति ने अपना परिचय दिया- "मैं चक्र का पुत्र उषस्ति हूँ।" तब राजा ने कहा- "आप ही हमारे [[यज्ञ]] को पूर्ण करायें।"
 
:उषस्ति ने तब कहा- "ऐसा ही हो। अब मैं इन्हीं प्रस्तोता, उद्गाता और प्रतिहर्ता से यज्ञ कराऊंगा। आप जितना धन इन्हें देंगे, उतना ही धन मुझे भी देना।"
 
*राजा की स्वीकृति के बाद जब उषस्ति यज्ञ कराने के लिए तैयार हुए, तो प्रस्तोता ने [[देवता]] के बारे में पूछा।
 
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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-11
विवरण 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है।
अध्याय प्रथम
कुल खण्ड 13 (तेरह)
सम्बंधित वेद सामवेद
संबंधित लेख उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य
अन्य जानकारी सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं।

छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय प्रथम का यह ग्यारहवाँ खण्ड है। इस खण्ड में दसवें खण्ड की कथा को आगे बढ़ाया गया है, जो इस प्रकार है-

यह देखकर यजमान राजा ने कहा- "मैं आपको जानना चाहता हूँ ऋषिवर!"
उषस्ति ने अपना परिचय दिया- "मैं चक्र का पुत्र उषस्ति हूँ।" तब राजा ने कहा- "आप ही हमारे यज्ञ को पूर्ण करायें।"
उषस्ति ने तब कहा- "ऐसा ही हो। अब मैं इन्हीं प्रस्तोता, उद्गाता और प्रतिहर्ता से यज्ञ कराऊंगा। आप जितना धन इन्हें देंगे, उतना ही धन मुझे भी देना।"
  • राजा की स्वीकृति के बाद जब उषस्ति यज्ञ कराने के लिए तैयार हुए, तो प्रस्तोता ने देवता के बारे में पूछा।
तब उषस्ति ने कहा- "वह देवता प्राण है। प्रलयकाल में सभी प्राणी प्राण में ही प्रवेश कर जाते हैं और उत्पत्ति के समय ये प्राण से ही उत्पन्न हो जाते हैं। यह 'प्राण' ही स्तुत्य देव है। यदि आप उसे जाने बिना स्तुति करते, तो मेरे वचन के अनुसार आपका मस्तक निश्चय ही गिर जाता।"
  • इसी प्रकार उद्गाता के पूछने पर उन्होंने 'आदित्य' को देवता बताया और उदीयमान सूर्य की उपासना करने की बात कही।
  • प्रतिहर्ता के पूछने पर उन्होंने 'अन्न' को देवता बताया; क्योंकि अन्न के बिना प्राणी का जीवित रहना असम्भव है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1

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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-3

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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-4

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खण्ड-1 | खण्ड-2 | खण्ड-3 से 10 | खण्ड-11 से 24

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-6

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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-7

खण्ड-1 से 15 | खण्ड-16 से 26

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-8

खण्ड-1 से 6 | खण्ड-7 से 15