मार्को पोलो: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 8: | Line 8: | ||
|मृत्यु=[[29 जनवरी]] | |मृत्यु=[[29 जनवरी]] | ||
|मृत्यु स्थान=1324 | |मृत्यु स्थान=1324 | ||
|अभिभावक=पिता- | |अभिभावक=पिता- निकोलस पोलो, माता- निकोल एन्ना डेफ़्युसेह | ||
|पति/पत्नी=डोनाटा बाडोर | |पति/पत्नी=डोनाटा बाडोर | ||
|संतान=फ्यानटिना, बेल्लेला र मोरेट्टा | |संतान=फ्यानटिना, बेल्लेला र मोरेट्टा |
Revision as of 05:42, 24 January 2017
मार्को पोलो
| |
पूरा नाम | मार्को पोलो |
जन्म | 15 सितम्बर, 1254 |
जन्म भूमि | वेनिस |
मृत्यु | 29 जनवरी |
मृत्यु स्थान | 1324 |
अभिभावक | पिता- निकोलस पोलो, माता- निकोल एन्ना डेफ़्युसेह |
पति/पत्नी | डोनाटा बाडोर |
संतान | फ्यानटिना, बेल्लेला र मोरेट्टा |
कर्म-क्षेत्र | व्यापारी, अन्वेषक |
प्रसिद्धि | मार्को पोलो की यात्रा |
अन्य जानकारी | मार्को पोलो ने भारत में कई स्थानों की यात्रा की थी। उसने केरल के 'कायल' नामक प्राचीन नगर और बन्दरगाह का भी उल्लेख किया है। मार्को पोलो यहाँ के निवासियों की समृद्धि देखकर चकित रह गया था। |
मार्को पोलो (अंग्रेज़ी: Marco Polo, जन्म- 15 सितम्बर, 1254, वेनिस; मृत्यु- 29 जनवरी, 1324) एक इतालवी व्यापारी, खोजकर्ता, और राजदूत था। उसे एशिया पहुँचने वाला प्रथम यूरोपीय व्यक्ति माना जाता है। प्राचीन रेशम मार्ग की यात्रा करने वालों में से वह भी एक था।
जन्म तथा परिवार
मार्को पोलो का जन्म 15 सितम्बर, 1254 को वेनिस गणराज्य (इटली) में मध्य युग के अंत में हुआ था। उसके पिता का नाम निकोलस पोलो था। मार्को पोलो ने अपने पिता और अपने चाचा 'मातेयो' के साथ कई सामुद्रिक यात्राएँ की थीं। वह रेशम मार्ग की यात्रा करने वाले सर्वप्रथम यूरोपियनों में से एक था। उसने अपनी यात्रा 1271 में लाइआसुस बंदरगाह (आर्मेनिया) से प्रारंभ की थी।
यात्रा का प्रारम्भ
मार्को पोलो की यात्रा का प्रारंभ 1271 में सत्रह वर्ष की उम्र में हुआ। वेनिस से शुरू हुई अपनी यात्रा में वह कुस्तुनतुनिया से वोल्गा तट, वहाँ से सीरिया, फ़ारस, कराकोरम, और फिर कराकोरम से उत्तर की ओर बुखारा से होते हुए मध्य एशिया में स्टेपी के मैदानों से गुज़रकर पीकिंग पहुँचा। इस पूरी यात्रा में मार्को पोलो को साढ़े तीन वर्ष का समय लगा। इस अवधि में मार्को पोलो ने मंगोल भाषा भी सीख ली थी। पीकिंग में उसकी नियुक्ति मंगोल साम्राज्य की सिविल सेवा में हुई। यहाँ मार्को पोलो ने पंद्रह वर्ष तक रहते हुए खाकान की निष्ठापूर्वक सेवा की और फिर 1295 में वापस वेनिस लौट गया। वापस लौटने के बाद वह लोगों के नजरों में एक लोकप्रिय कथाकार बन गया। लोग उसके यात्रा वृत्तांतों को सुनने के लिए उसके पास जमा रहते थे।
भारत यात्रा
मार्को पोलो ने भारत में भी कई स्थानों की यात्रा की थी। उसने केरल के 'कायल' नामक प्राचीन नगर और बन्दरगाह का भी उल्लेख किया है। मार्को पोलो यहाँ के निवासियों की समृद्धि देखकर चकित रह गया था। वह अपने यात्रा विवरण में लिखता है-
"जिस राजा का यह नगर है, उसके पास विशाल कोषागार है और वह खुद कीमती जवाहरात धारण किये रहता है। वह बहुत ठाट-बाट से रहता है और अपने राज्य पर युक्तियुक्त ढंग से शासन करता है और विदेशियों और व्यापारियों के प्रति पक्षपात बरतता है, ताकि वे इस शहर में आकर प्रसन्न हों। इस शहर में सभी जहाज़ आते हैं, पश्चिम से, हारमोस से, किश से, अदन से और सभी अरब देशों से उन पर घोड़े और बिक्री की अन्य चीज़ें लदी रहती हैं। व्यापारिक बन्दरगाह होने के कारण यहाँ आस-पास के क्षेत्रों में बड़ी भीड़ होती है और इस शहर में बड़े-बड़े व्यापार का आदान-प्रदान होता है।"
|
|
|
|
|