दुनियाँ भाँड़ा दुख का -कबीर: Difference between revisions

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दुनियाँ भाँड़ा दुख का, भरी मुहाँमुह भूष।
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अदया अल्लह राम की, कुरलै कौनी कूष।।
अदया अल्लह राम की, कुरलै कौनी कूष।।
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Latest revision as of 14:00, 2 June 2017

दुनियाँ भाँड़ा दुख का -कबीर
कवि कबीर
जन्म 1398 (लगभग)
जन्म स्थान लहरतारा ताल, काशी
मृत्यु 1518 (लगभग)
मृत्यु स्थान मगहर, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ साखी, सबद और रमैनी
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कबीर की रचनाएँ

दुनियाँ भाँड़ा दु:ख का, भरी मुहाँमुह भूष।
अदया अल्लह राम की, कुरलै कौनी कूष।।

अर्थ सहित व्याख्या

कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! यह संसार तृष्णा से लबालब भरे हुए पात्र स्वरूप है। अत: यह दु:ख का भण्डार है। इसमें पूर्ण तृप्ति के लिए प्रयास करना व्यर्थ है। अल्लाह या राम की दया के बिना यह तृष्णा समाप्त नहीं हो सकती। हे जीव! जब सारा संसार एक अतृप्त वासना का भण्डार है तो ऐसे संसार में किस खजाने के लिए चीखता रहता है?


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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