कावर पक्षी अभयारण्य: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - " जमीन" to " ज़मीन") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - " मां " to " माँ ") |
||
Line 5: | Line 5: | ||
बिहार के बेगूसराय स्थित ‘कावर झील’ को प्रकृति ने एक अमूल्य धरोहर के रूप में हमें प्रदान किया था लेकिन आज यह झील लुप्त हो रही है। बुजुर्ग कहते हैं, ‘बारह कोस बरैला, चौदह कोस कबरैला’, अर्थात् एक समय था कि बरैला की झील बारह कोस अर्थात 36 वर्ग किमी में और कबरैला झील चौदह कोस में अर्थात 42 वर्ग कि.मी. के क्षेत्र में फैली हुई थी। | बिहार के बेगूसराय स्थित ‘कावर झील’ को प्रकृति ने एक अमूल्य धरोहर के रूप में हमें प्रदान किया था लेकिन आज यह झील लुप्त हो रही है। बुजुर्ग कहते हैं, ‘बारह कोस बरैला, चौदह कोस कबरैला’, अर्थात् एक समय था कि बरैला की झील बारह कोस अर्थात 36 वर्ग किमी में और कबरैला झील चौदह कोस में अर्थात 42 वर्ग कि.मी. के क्षेत्र में फैली हुई थी। | ||
इस झील से उत्तरी बिहार का एक बड़ा हिस्सा कई प्रकार से लाभान्वित होता था। ऊपरी ज़मीन पर [[गन्ना|गन्ने]], [[मक्का]], [[जौ]] आदि की फसलें काफ़ी अच्छी पैदावार देती थीं। हजारों मल्लाह इस झील से [[मछली]] पकड़ कर अपना जीवन यापन करते थे। झील के चारों ओर के क़रीब 50 गांव के मवेशी पालक मवेशियों को यहां की घास खिलाकर हमेशा दुग्ध उत्पादन में आगे रहते थे। ग्रामीण लोग झील की ‘लड़कट’ (एक प्रकार की घास) से अपना घर बनाया करते थे। यह काम आज भी होता है। दिलचस्प बात यह है कि इस झील में एक से बढ़कर एक विषधर सर्प भी रहा करते थे लेकिन आज तक कोई भी व्यक्ति यहां [[सांप]] के काटने से नहीं मरा। इसके पीछे एक देवी ‘जयमंगला’ की शक्ति बताई जाती है जो विष को भी अमृत बना देती हैं। झील के साथ ही | इस झील से उत्तरी बिहार का एक बड़ा हिस्सा कई प्रकार से लाभान्वित होता था। ऊपरी ज़मीन पर [[गन्ना|गन्ने]], [[मक्का]], [[जौ]] आदि की फसलें काफ़ी अच्छी पैदावार देती थीं। हजारों मल्लाह इस झील से [[मछली]] पकड़ कर अपना जीवन यापन करते थे। झील के चारों ओर के क़रीब 50 गांव के मवेशी पालक मवेशियों को यहां की घास खिलाकर हमेशा दुग्ध उत्पादन में आगे रहते थे। ग्रामीण लोग झील की ‘लड़कट’ (एक प्रकार की घास) से अपना घर बनाया करते थे। यह काम आज भी होता है। दिलचस्प बात यह है कि इस झील में एक से बढ़कर एक विषधर सर्प भी रहा करते थे लेकिन आज तक कोई भी व्यक्ति यहां [[सांप]] के काटने से नहीं मरा। इसके पीछे एक देवी ‘जयमंगला’ की शक्ति बताई जाती है जो विष को भी अमृत बना देती हैं। झील के साथ ही माँ '''जयमंगला का मंदिर''' है जहां आज भी एक बहुत बड़ा मेला लगता है। लेकिन झील की ये सब बातें केवल बातें ही रह गई हैं। कुछ साल से तो इस झील में घुटने भर भी पानी नहीं रहता। जहाँ पहले हजारों मछुआरे इस झील से अपना जीवनयापन करते थे वहीं अब इस झील से दस-बीस मछुआरों का भी जीवनयापन नहीं होता। 42 वर्ग किमी के क्षेत्रफल वाली यह झील [[6 जुलाई]] को एक किमी के दायरे में सिमट कर रह गई थी। जहाँ सालभर खिले कमल झील की शोभा बढ़ाते थे वहाँ आज एक भी कमल नहीं दिखता। | ||
;अस्तित्त्व पर संकट | ;अस्तित्त्व पर संकट |
Revision as of 14:07, 2 June 2017
[[चित्र:Kanwar-Lake-Bird-Sanctuary.jpg|thumb|250px|कावर झील पक्षी अभयारण्य, बिहार]] कावर झील एशिया की सबसे बड़ी शुद्ध जल (वेट लैंड एरिया) की झील है और यह पक्षी अभयारण्य (बर्ड संचुरी) भी है। इस झील को पक्षी विहार का दर्जा सन् 1984 में बिहार सरकार ने दिया था। यह झील 42 वर्ग किमी (6311 हेक्टेयर क्षेत्र) के क्षेत्रफल में फैली है। इस बर्ड संचुरी में 59 तरह के विदेशी पक्षी और 107 तरह के देसी पक्षी ठंडे के मौसम मे देखे जा सकते है। यह बिहार राज्य के बेगूसराय के मंझौल में है। पुरातत्वीय महत्व का बौद्धकालीन हरसाइन स्तूप इसी क्षेत्र में स्थित है।
- कावर झील लुप्त होती
बिहार के बेगूसराय स्थित ‘कावर झील’ को प्रकृति ने एक अमूल्य धरोहर के रूप में हमें प्रदान किया था लेकिन आज यह झील लुप्त हो रही है। बुजुर्ग कहते हैं, ‘बारह कोस बरैला, चौदह कोस कबरैला’, अर्थात् एक समय था कि बरैला की झील बारह कोस अर्थात 36 वर्ग किमी में और कबरैला झील चौदह कोस में अर्थात 42 वर्ग कि.मी. के क्षेत्र में फैली हुई थी।
इस झील से उत्तरी बिहार का एक बड़ा हिस्सा कई प्रकार से लाभान्वित होता था। ऊपरी ज़मीन पर गन्ने, मक्का, जौ आदि की फसलें काफ़ी अच्छी पैदावार देती थीं। हजारों मल्लाह इस झील से मछली पकड़ कर अपना जीवन यापन करते थे। झील के चारों ओर के क़रीब 50 गांव के मवेशी पालक मवेशियों को यहां की घास खिलाकर हमेशा दुग्ध उत्पादन में आगे रहते थे। ग्रामीण लोग झील की ‘लड़कट’ (एक प्रकार की घास) से अपना घर बनाया करते थे। यह काम आज भी होता है। दिलचस्प बात यह है कि इस झील में एक से बढ़कर एक विषधर सर्प भी रहा करते थे लेकिन आज तक कोई भी व्यक्ति यहां सांप के काटने से नहीं मरा। इसके पीछे एक देवी ‘जयमंगला’ की शक्ति बताई जाती है जो विष को भी अमृत बना देती हैं। झील के साथ ही माँ जयमंगला का मंदिर है जहां आज भी एक बहुत बड़ा मेला लगता है। लेकिन झील की ये सब बातें केवल बातें ही रह गई हैं। कुछ साल से तो इस झील में घुटने भर भी पानी नहीं रहता। जहाँ पहले हजारों मछुआरे इस झील से अपना जीवनयापन करते थे वहीं अब इस झील से दस-बीस मछुआरों का भी जीवनयापन नहीं होता। 42 वर्ग किमी के क्षेत्रफल वाली यह झील 6 जुलाई को एक किमी के दायरे में सिमट कर रह गई थी। जहाँ सालभर खिले कमल झील की शोभा बढ़ाते थे वहाँ आज एक भी कमल नहीं दिखता।
- अस्तित्त्व पर संकट
विगत कुछ वर्षों से झील में जल संकट गहराता जा रहा है। गर्मियों में तो यह बिल्कुल सूख जाती है। इसका कारण है, पर्याप्त पानी झील में न इकट्ठा होना। बरसाती पानी बहकर नालों के जरिए पहले झील में गिरता था, परंतु अब इन नालों में गाद भर जाने से पानी झील तक नहीं पहंच पाता है। बाढ़ में आसपास की मिट्टी झील में आने से भी इसकी गहराई कम हो रही है। समय रहते यदि झील को बचाने के लिए प्रयास नहीं किए गए तो आने वाली पीढ़िया इस झील का केवल नाम ही सुन पाएंगी।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख