खंभा एक गयंद दोइ -कबीर: Difference between revisions
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[[कबीरदास]] कहते हैं कि हे मानव! खम्भा रूपी शरीर एक ही है और अहं भाव और प्रेम रूपी हाथी दो हैं। दोनों को तुम एक साथ कैसे बाँध सकेगा? यह कैसे सम्भव है? यदि तू अहंभाव में रहता है तो उसके साथ प्रिय नहीं रह सकते। यदि तू प्रिय | [[कबीरदास]] कहते हैं कि हे मानव! खम्भा रूपी शरीर एक ही है और अहं भाव और प्रेम रूपी हाथी दो हैं। दोनों को तुम एक साथ कैसे बाँध सकेगा? यह कैसे सम्भव है? यदि तू अहंभाव में रहता है तो उसके साथ प्रिय नहीं रह सकते। यदि तू प्रिय अर्थात् प्रभु को रखना चाहता है तो मान को निकालना पड़ेगा। | ||
Latest revision as of 07:52, 7 November 2017
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खंभा एक गयंद दोइ, क्यों करि बंधसि बारि। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! खम्भा रूपी शरीर एक ही है और अहं भाव और प्रेम रूपी हाथी दो हैं। दोनों को तुम एक साथ कैसे बाँध सकेगा? यह कैसे सम्भव है? यदि तू अहंभाव में रहता है तो उसके साथ प्रिय नहीं रह सकते। यदि तू प्रिय अर्थात् प्रभु को रखना चाहता है तो मान को निकालना पड़ेगा।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख