टी. के. लहरी: Difference between revisions

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प्रो. टी.के. लहरी ने 1974 में प्रोफेसर के रूप में [[बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय]] में अपना करियर शुरू किया और आज वह बनारस में किसी देवदूत से कम नहीं हैं। बनारस में इन्हें लोग साक्षात भगवान की तरह देखते है। जिस ख्वाब को संजोकर [[मदन मोहन मालवीय]] ने बीएचयू की स्थापना की उस ख्वाब को टी.के. लहरी आज भी जिन्दा रखे हुए हैं। प्रो टी के लहरी 2003 में बीएचयू से रिटायरमेंट के बाद भी बीएचयू को अपनी सेवाएं दे रहे है। डॉ लहरी की ख़ास बात यह है कि वह रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली पेंशन से सिर्फ अपने भोजन के लिए पैसा लेते हैं। बाकी धनराशि वे बीएचयू को दान स्वरूप दे देते हैं।<ref>{{cite web |url=https://www.patrika.com/news/varanasi/padm-sri-professor-tk-lahri-10411 |title=https://www.patrika.com/news/varanasi/padm-sri-professor-tk-lahri-10411 |accessmonthday=16 मार्च|accessyear=2018 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=पत्रिका डॉट कॉम|language=हिंदी }}</ref>
प्रो. टी.के. लहरी ने 1974 में प्रोफेसर के रूप में [[बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय]] में अपना करियर शुरू किया और आज वह बनारस में किसी देवदूत से कम नहीं हैं। बनारस में इन्हें लोग साक्षात भगवान की तरह देखते है। जिस ख्वाब को संजोकर [[मदन मोहन मालवीय]] ने बीएचयू की स्थापना की उस ख्वाब को टी.के. लहरी आज भी जिन्दा रखे हुए हैं। प्रो टी के लहरी 2003 में बीएचयू से रिटायरमेंट के बाद भी बीएचयू को अपनी सेवाएं दे रहे है। डॉ लहरी की ख़ास बात यह है कि वह रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली पेंशन से सिर्फ अपने भोजन के लिए पैसा लेते हैं। बाकी धनराशि वे बीएचयू को दान स्वरूप दे देते हैं।<ref>{{cite web |url=https://www.patrika.com/news/varanasi/padm-sri-professor-tk-lahri-10411 |title=https://www.patrika.com/news/varanasi/padm-sri-professor-tk-lahri-10411 |accessmonthday=16 मार्च|accessyear=2018 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=पत्रिका डॉट कॉम|language=हिंदी }}</ref>
==आधुनिक धन्वन्तरि==
==आधुनिक धन्वन्तरि==
मेडिकल कॉलेज में तीन दशक की प्रोफेसरी में पढ़ा-लिखाकर सैकड़ों डॉक्टर तैयार करने वाले लहरी साहब के पास खुद का चारपहिया वाहन नहीं है। आज जब तमाम डॉक्टर चमक-दमक। ऐशोआराम की जिंदगी जीते हैं। लंबी-लंबी मंहगी कारों से चलते हैं। चंद कमीशन के लिए दवा कंपनियों और पैथालॉजी सेंटर से सांठ-गांठ करने में ऊर्जा खपाते हैं। नोटों के लिए दौड़-भाग करते हैं। तब प्रो. लहरी साहब आज भी अपने आवास से अस्पताल तक पैदल ही आते जाते है। मरीजों के लिए किसी देवता से कम नहीं हैं। उनकी बदौलत आज लाखों गरीब मरीजों का दिल धड़क रहा है, जो पैसे के अभाव में महंगा इलाज कराने में लाचार थे। गंभीर हृदय रोगों का शिकार होकर जब तमाम गरीब मौत के मुंह में समा रहे थे। तब डॉ. लहरी ने फरिश्ता बनकर उन्हें बचाया। प्रो. टी.के. लहरी  [[बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय]] से 2003 में ही रिटायर हो चुके हैं। चाहते तो बाकी साथियों की तरह [[बनारस]] या देश के किसी कोने में आलीशान हास्पिटल खोलकर करोड़ों कमा सकते थे मगर खुद को नौकरी से रिटायर माना चिकित्सकीय सेवा से नहीं।<ref name="nbt"/>
मेडिकल कॉलेज में तीन दशक की प्रोफेसरी में पढ़ा-लिखाकर सैकड़ों डॉक्टर तैयार करने वाले लहरी साहब के पास खुद का चारपहिया वाहन नहीं है। आज जब तमाम डॉक्टर चमक-दमक। ऐशोआराम की जिंदगी जीते हैं। लंबी-लंबी मंहगी कारों से चलते हैं। चंद कमीशन के लिए दवा कंपनियों और पैथालॉजी सेंटर से सांठ-गांठ करने में ऊर्जा खपाते हैं। नोटों के लिए दौड़-भाग करते हैं। तब प्रो. लहरी साहब आज भी अपने आवास से अस्पताल तक पैदल ही आते जाते है। मरीजों के लिए किसी देवता से कम नहीं हैं। उनकी बदौलत आज लाखों ग़रीब मरीजों का दिल धड़क रहा है, जो पैसे के अभाव में महंगा इलाज कराने में लाचार थे। गंभीर हृदय रोगों का शिकार होकर जब तमाम ग़रीब मौत के मुंह में समा रहे थे। तब डॉ. लहरी ने फरिश्ता बनकर उन्हें बचाया। प्रो. टी.के. लहरी  [[बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय]] से 2003 में ही रिटायर हो चुके हैं। चाहते तो बाकी साथियों की तरह [[बनारस]] या देश के किसी कोने में आलीशान हास्पिटल खोलकर करोड़ों कमा सकते थे मगर खुद को नौकरी से रिटायर माना चिकित्सकीय सेवा से नहीं।<ref name="nbt"/>
====समय के पाबंद====
====समय के पाबंद====
इस महान विभूति की गाथा यहीं नहीं खत्म होती। समय के पाबंद लोगों के लिए भी प्रो. लहरी मिसाल हैं। 75 साल की उम्र में भी वक्त के इतने पाबंद हैं कि उन्हें देखकर बीएचयू के लोग अपनी घड़ी की सूइयां मिलाते हैं। वे हर रोज नियत समय पर बीएचयू आते हैं और जाते हैं। 2003 में रिटायर्ड होने के बाद उनकी इन्हीं खासियतों को देखते हुए विश्वविद्यालय ने उन्हें इमेरिटस प्रोफेसर का दर्जा दिया। 2003 से वो 2011 तक यहाँ इमेरिटस प्रोफेसर रहे। इसके बाद भी उनकी कर्तव्य निष्ठा को देखते हुए उनकी सेवा इमेरिटस प्रोफेसर के तौर पर अब तक ली जा रही है। 75 साल की उम्र में भी वक्त के इतने पक्के हैं कि उनके आने-जाने के समय से लोग अपनी घड़ियों का समय मिलाते हैं।
इस महान विभूति की गाथा यहीं नहीं खत्म होती। समय के पाबंद लोगों के लिए भी प्रो. लहरी मिसाल हैं। 75 साल की उम्र में भी वक्त के इतने पाबंद हैं कि उन्हें देखकर बीएचयू के लोग अपनी घड़ी की सूइयां मिलाते हैं। वे हर रोज नियत समय पर बीएचयू आते हैं और जाते हैं। 2003 में रिटायर्ड होने के बाद उनकी इन्हीं खासियतों को देखते हुए विश्वविद्यालय ने उन्हें इमेरिटस प्रोफेसर का दर्जा दिया। 2003 से वो 2011 तक यहाँ इमेरिटस प्रोफेसर रहे। इसके बाद भी उनकी कर्तव्य निष्ठा को देखते हुए उनकी सेवा इमेरिटस प्रोफेसर के तौर पर अब तक ली जा रही है। 75 साल की उम्र में भी वक्त के इतने पक्के हैं कि उनके आने-जाने के समय से लोग अपनी घड़ियों का समय मिलाते हैं।

Latest revision as of 09:19, 12 April 2018

टी. के. लहरी
पूरा नाम डॉ. तपन कुमार लहरी
अन्य नाम प्रो. टी.के. लहरी
जन्म भूमि वाराणसी, उत्तर प्रदेश
कर्म-क्षेत्र चिकित्सा
पुरस्कार-उपाधि पद्मश्री (2016)
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी प्रो. टी.के. लहरी ने 1974 में प्रोफेसर के रूप में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में अपना करियर शुरू किया। 2003 में रिटायर्ड होने के बाद इनकी खासियतों को देखते हुए विश्वविद्यालय ने उन्हें इमेरिटस प्रोफेसर का दर्जा दिया। 2003 से वो 2011 तक यहाँ इमेरिटस प्रोफेसर रहे। इसके बाद भी उनकी कर्तव्य निष्ठा को देखते हुए उनकी सेवा इमेरिटस प्रोफेसर के तौर पर अब तक ली जा रही है। 75 साल की उम्र में भी वक्त के इतने पक्के हैं कि उनके आने-जाने के समय से लोग अपनी घड़ियों का समय मिलाते हैं।
अद्यतन‎

डॉ. तपन कुमार लहरी (अंग्रेज़ी: Dr. Tapan Kumar Lahiri) भारत के प्रसिद्ध कार्डियोथोरेसिक सर्जन हैं। सेवा में रहते हुए तथा सेवा निवृत्ति के पश्चात चिकित्सकों द्वारा मरीज़ों को लूटने के किस्से तो आये दिन सुनने को मिलते है। भोले की नगरी में स्थित बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के रिटायर्ड डॉ. टी. के. लहरी देश मे ऐसे डॉक्टर हैं जो मरीजों का निःशुल्क इलाज करते हैं। अपनी इस सेवा के लिए डॉ. लहरी को भारत सरकार द्वारा वर्ष 2016 में चौथे सर्वश्रेष्ठ नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया गया।

जीवन परिचय

प्रो. टी.के. लहरी ने 1974 में प्रोफेसर के रूप में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में अपना करियर शुरू किया और आज वह बनारस में किसी देवदूत से कम नहीं हैं। बनारस में इन्हें लोग साक्षात भगवान की तरह देखते है। जिस ख्वाब को संजोकर मदन मोहन मालवीय ने बीएचयू की स्थापना की उस ख्वाब को टी.के. लहरी आज भी जिन्दा रखे हुए हैं। प्रो टी के लहरी 2003 में बीएचयू से रिटायरमेंट के बाद भी बीएचयू को अपनी सेवाएं दे रहे है। डॉ लहरी की ख़ास बात यह है कि वह रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली पेंशन से सिर्फ अपने भोजन के लिए पैसा लेते हैं। बाकी धनराशि वे बीएचयू को दान स्वरूप दे देते हैं।[1]

आधुनिक धन्वन्तरि

मेडिकल कॉलेज में तीन दशक की प्रोफेसरी में पढ़ा-लिखाकर सैकड़ों डॉक्टर तैयार करने वाले लहरी साहब के पास खुद का चारपहिया वाहन नहीं है। आज जब तमाम डॉक्टर चमक-दमक। ऐशोआराम की जिंदगी जीते हैं। लंबी-लंबी मंहगी कारों से चलते हैं। चंद कमीशन के लिए दवा कंपनियों और पैथालॉजी सेंटर से सांठ-गांठ करने में ऊर्जा खपाते हैं। नोटों के लिए दौड़-भाग करते हैं। तब प्रो. लहरी साहब आज भी अपने आवास से अस्पताल तक पैदल ही आते जाते है। मरीजों के लिए किसी देवता से कम नहीं हैं। उनकी बदौलत आज लाखों ग़रीब मरीजों का दिल धड़क रहा है, जो पैसे के अभाव में महंगा इलाज कराने में लाचार थे। गंभीर हृदय रोगों का शिकार होकर जब तमाम ग़रीब मौत के मुंह में समा रहे थे। तब डॉ. लहरी ने फरिश्ता बनकर उन्हें बचाया। प्रो. टी.के. लहरी बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से 2003 में ही रिटायर हो चुके हैं। चाहते तो बाकी साथियों की तरह बनारस या देश के किसी कोने में आलीशान हास्पिटल खोलकर करोड़ों कमा सकते थे मगर खुद को नौकरी से रिटायर माना चिकित्सकीय सेवा से नहीं।[2]

समय के पाबंद

इस महान विभूति की गाथा यहीं नहीं खत्म होती। समय के पाबंद लोगों के लिए भी प्रो. लहरी मिसाल हैं। 75 साल की उम्र में भी वक्त के इतने पाबंद हैं कि उन्हें देखकर बीएचयू के लोग अपनी घड़ी की सूइयां मिलाते हैं। वे हर रोज नियत समय पर बीएचयू आते हैं और जाते हैं। 2003 में रिटायर्ड होने के बाद उनकी इन्हीं खासियतों को देखते हुए विश्वविद्यालय ने उन्हें इमेरिटस प्रोफेसर का दर्जा दिया। 2003 से वो 2011 तक यहाँ इमेरिटस प्रोफेसर रहे। इसके बाद भी उनकी कर्तव्य निष्ठा को देखते हुए उनकी सेवा इमेरिटस प्रोफेसर के तौर पर अब तक ली जा रही है। 75 साल की उम्र में भी वक्त के इतने पक्के हैं कि उनके आने-जाने के समय से लोग अपनी घड़ियों का समय मिलाते हैं।

पद्मश्री सम्मान

यूं तो इस विभूति को बहुत पहले ही पद्मश्री जैसे सम्मान मिल जाने चाहिए थे। मगर देर से ही सही, पिछले साल पूरी काशीनगरी तब खुशी से झूम उठी थी, जब इस महान विभूति को 26 जनवरी 2016 को भारत सरकार ने पद्मश्री से नवाजा। लाखों मरीजों का दिल धड़काने वाले प्रो. लहरी को मिले सम्मान से पद्मश्री का भी गौरव बढ़ता नजर आया। लहरी साहब को देखकर इस सवाल का जवाब भी मिल गया कि डॉक्टरों को भगवान का दर्जा क्यों दिया गया है।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. https://www.patrika.com/news/varanasi/padm-sri-professor-tk-lahri-10411 (हिंदी) पत्रिका डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 16 मार्च, 2018।
  2. 2.0 2.1 आधुनिक धन्वन्तरि प्रो. टी के लहरी (हिंदी) नवभारत टाइम्स। अभिगमन तिथि: 16 मार्च, 2018।

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