जोगिन्दर जसवन्त सिंह: Difference between revisions

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'''जोगिन्दर जसवन्त सिंह''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Joginder Jaswant Singh'', जन्म- [[17 सितंबर]], [[1945]], बहावलपुर, [[पंजाब]]) [[भारतीय थल सेना]] के 22वें सेनाध्यक्ष थे। उनको [[27 नवंबर]], [[2004]] को जनरल एन. सी. विज की सेवानिवृति के बाद सेनाध्यक्ष नियुक्त किया गया था। [[31 जनवरी]], [[2005]] को सेवानिवृत्त होने तक वह इस पद पर रहे। उनके बाद [[दीपक कपूर|जनरल दीपक कपूर]] थल सेना के अगले सेनाध्यक्ष बने थे। जोगिन्दर जसवन्त सिंह [[भारतीय सेना]] का नेतृत्व करने वाले पहले [[सिक्ख]] सिपाही हैं। वह चण्डीमन्दिर में स्थित पश्चिमी कमान से आने वाले 11वें सैन्य प्रमुख हैं। सेवानिवृत्ति के बाद वह [[27 जनवरी]], [[2008]] को [[अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल]] बने और [[28 मई]], [[2013]] तक इस पद पर रहे।
'''जोगिन्दर जसवन्त सिंह''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Joginder Jaswant Singh'', जन्म- [[17 सितंबर]], [[1945]], बहावलपुर, [[पंजाब]]) [[भारतीय थल सेना]] के 22वें सेनाध्यक्ष थे। उनको [[27 नवंबर]], [[2004]] को जनरल एन. सी. विज की सेवानिवृति के बाद सेनाध्यक्ष नियुक्त किया गया था। [[31 जनवरी]], [[2005]] को सेवानिवृत्त होने तक वह इस पद पर रहे। उनके बाद [[दीपक कपूर|जनरल दीपक कपूर]] थल सेना के अगले सेनाध्यक्ष बने थे। जोगिन्दर जसवन्त सिंह [[भारतीय सेना]] का नेतृत्व करने वाले पहले [[सिक्ख]] सिपाही हैं। वह चण्डीमन्दिर में स्थित पश्चिमी कमान से आने वाले 11वें सैन्य प्रमुख हैं। सेवानिवृत्ति के बाद वह [[27 जनवरी]], [[2008]] को [[अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल]] बने और [[28 मई]], [[2013]] तक इस पद पर रहे।
==परिचय==
==परिचय==
*जोगिन्दर जसवन्त सिंह का जन्म 17 सितम्बर, 1945 को बहावलपुर रियासत के शम्मा सट्टा नगर में हुआ था।  वह लेफ्टिनेंट कर्नल जसवन्त सिंह मारवाह और उनकी पत्नी जसपाल कौर की प्रथम सन्तान थे। उनका [[परिवार]] मूलतः रावलपिंडी के दोलताला नगर से था। जोगिंदर का बाल्यकाल [[उत्तर भारत]] की अलग-अलग सैन्य छावनियों में बीता, क्योंकि उनके [[पिता]] का अक्सर स्थानांतरण होता रहता था।
जोगिन्दर जसवन्त सिंह का जन्म 17 सितम्बर, 1945 को बहावलपुर रियासत के शम्मा सट्टा नगर में हुआ था।  वह लेफ्टिनेंट कर्नल जसवन्त सिंह मारवाह और उनकी पत्नी जसपाल कौर की प्रथम सन्तान थे। उनका [[परिवार]] मूलतः रावलपिंडी के दोलताला नगर से था। जोगिंदर का बाल्यकाल [[उत्तर भारत]] की अलग-अलग सैन्य छावनियों में बीता, क्योंकि उनके [[पिता]] का अक्सर स्थानांतरण होता रहता था।
====शिक्षा====
====शिक्षा====
जोगिन्दर जसवन्त सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कैथोलिक कॉन्वेंट स्कूलों में प्राप्त की; विशेषकर सिकंदराबाद के सेंट एनी में और [[जम्मू]] के सेंट मैरी प्रेजेंटेशन कॉन्वेंट में, जहां उनके पिता को रिकवरी कंपनी के प्रमुख कमांडिंग अफसर के रूप में [[1956]]-[[1960]] के बीच तैनात किया गया था। [[1958]] में उन्होंने जम्मू में मॉडल अकादमी में दाखिला लिया और [[1960]] में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की।
जोगिन्दर जसवन्त सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कैथोलिक कॉन्वेंट स्कूलों में प्राप्त की; विशेषकर सिकंदराबाद के सेंट एनी में और [[जम्मू]] के सेंट मैरी प्रेजेंटेशन कॉन्वेंट में, जहां उनके पिता को रिकवरी कंपनी के प्रमुख कमांडिंग अफसर के रूप में [[1956]]-[[1960]] के बीच तैनात किया गया था। [[1958]] में उन्होंने जम्मू में मॉडल अकादमी में दाखिला लिया और [[1960]] में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की।
==कार्यक्षेत्र==
==कार्यक्षेत्र==
*[[जनवरी]] [[1961]] में जोगिंदर राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के 25वें पाठ्यक्रम में शामिल हो गए और [[1962]] में चीन-भारतीय युद्ध छिड़ने के समय एक कैडेट थे। उस समय एनडीए के डिप्टी कमांडेंट ब्रिगेडियर होशियार सिंह को चौथी इन्फैंट्री डिवीजन के तहत एक ब्रिगेड की कमान सौंपी गई थी और युद्ध कार्रवाई में वह शहीद हो गए थे। जनरल जोगिन्दर जसवन्त सिंह को सेना मुख्यालय, सैन्य संचालन निदेशालय में अतिरिक्त महानिदेशक मिलिटरी ऑपरेशंस (एडीजीएमओ) के रूप में भी चुना गया था। एडीजीएमओ के कार्यकाल के दौरान उन्होंने [[भारत]]-[[चीन]] सीमा मुद्दे पर [[भारत]] की नीति विकसित करने के लिए सकारात्मक योगदान दिया और संयुक्त कार्यकारी समूह के हिस्से के रूप में बीजिंग का दौरा किया।
[[जनवरी]] [[1961]] में जोगिंदर राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के 25वें पाठ्यक्रम में शामिल हो गए और [[1962]] में चीन-भारतीय युद्ध छिड़ने के समय एक कैडेट थे। उस समय एनडीए के डिप्टी कमांडेंट ब्रिगेडियर होशियार सिंह को चौथी इन्फैंट्री डिवीजन के तहत एक ब्रिगेड की कमान सौंपी गई थी और युद्ध कार्रवाई में वह शहीद हो गए थे। जनरल जोगिन्दर जसवन्त सिंह को सेना मुख्यालय, सैन्य संचालन निदेशालय में अतिरिक्त महानिदेशक मिलिटरी ऑपरेशंस (एडीजीएमओ) के रूप में भी चुना गया था। एडीजीएमओ के कार्यकाल के दौरान उन्होंने [[भारत]]-[[चीन]] सीमा मुद्दे पर [[भारत]] की नीति विकसित करने के लिए सकारात्मक योगदान दिया और संयुक्त कार्यकारी समूह के हिस्से के रूप में बीजिंग का दौरा किया।


जोगिन्दर जसवन्त सिंह [[1998]] में सियाचिन और सर क्रीक मुद्दे पर [[पाकिस्तान]] के साथ वार्ता के लिए [[रक्षा मंत्रालय]] की टीम के सदस्य भी थे। इसके बाद उन्होंने भारत के रक्षा मंत्री के साथ सिएरा लियोन का भी दौरा किया, जहां एक भारतीय दल ने संयुक्त राष्ट्र के हिस्से के रूप में एक मिशन का सफल संचालन किया। एडीजीएमओ के रूप में, [[1999]] के कारगिल संघर्ष के दौरान वह [[भारतीय सेना]] का सार्वजनिक चेहरा थे। इस युद्ध की योजना और निष्पादन में उनकी सेवाओं की मान्यता में उन्हें [[अति विशिष्ट सेवा पदक]] से सम्मानित किया गया था।
जोगिन्दर जसवन्त सिंह [[1998]] में सियाचिन और सर क्रीक मुद्दे पर [[पाकिस्तान]] के साथ वार्ता के लिए [[रक्षा मंत्रालय]] की टीम के सदस्य भी थे। इसके बाद उन्होंने भारत के रक्षा मंत्री के साथ सिएरा लियोन का भी दौरा किया, जहां एक भारतीय दल ने संयुक्त राष्ट्र के हिस्से के रूप में एक मिशन का सफल संचालन किया। एडीजीएमओ के रूप में, [[1999]] के कारगिल संघर्ष के दौरान वह [[भारतीय सेना]] का सार्वजनिक चेहरा थे। इस युद्ध की योजना और निष्पादन में उनकी सेवाओं की मान्यता में उन्हें [[अति विशिष्ट सेवा पदक]] से सम्मानित किया गया था।
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Revision as of 10:31, 5 July 2021

जोगिन्दर जसवन्त सिंह (अंग्रेज़ी: Joginder Jaswant Singh, जन्म- 17 सितंबर, 1945, बहावलपुर, पंजाब) भारतीय थल सेना के 22वें सेनाध्यक्ष थे। उनको 27 नवंबर, 2004 को जनरल एन. सी. विज की सेवानिवृति के बाद सेनाध्यक्ष नियुक्त किया गया था। 31 जनवरी, 2005 को सेवानिवृत्त होने तक वह इस पद पर रहे। उनके बाद जनरल दीपक कपूर थल सेना के अगले सेनाध्यक्ष बने थे। जोगिन्दर जसवन्त सिंह भारतीय सेना का नेतृत्व करने वाले पहले सिक्ख सिपाही हैं। वह चण्डीमन्दिर में स्थित पश्चिमी कमान से आने वाले 11वें सैन्य प्रमुख हैं। सेवानिवृत्ति के बाद वह 27 जनवरी, 2008 को अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल बने और 28 मई, 2013 तक इस पद पर रहे।

परिचय

जोगिन्दर जसवन्त सिंह का जन्म 17 सितम्बर, 1945 को बहावलपुर रियासत के शम्मा सट्टा नगर में हुआ था। वह लेफ्टिनेंट कर्नल जसवन्त सिंह मारवाह और उनकी पत्नी जसपाल कौर की प्रथम सन्तान थे। उनका परिवार मूलतः रावलपिंडी के दोलताला नगर से था। जोगिंदर का बाल्यकाल उत्तर भारत की अलग-अलग सैन्य छावनियों में बीता, क्योंकि उनके पिता का अक्सर स्थानांतरण होता रहता था।

शिक्षा

जोगिन्दर जसवन्त सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कैथोलिक कॉन्वेंट स्कूलों में प्राप्त की; विशेषकर सिकंदराबाद के सेंट एनी में और जम्मू के सेंट मैरी प्रेजेंटेशन कॉन्वेंट में, जहां उनके पिता को रिकवरी कंपनी के प्रमुख कमांडिंग अफसर के रूप में 1956-1960 के बीच तैनात किया गया था। 1958 में उन्होंने जम्मू में मॉडल अकादमी में दाखिला लिया और 1960 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की।

कार्यक्षेत्र

जनवरी 1961 में जोगिंदर राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के 25वें पाठ्यक्रम में शामिल हो गए और 1962 में चीन-भारतीय युद्ध छिड़ने के समय एक कैडेट थे। उस समय एनडीए के डिप्टी कमांडेंट ब्रिगेडियर होशियार सिंह को चौथी इन्फैंट्री डिवीजन के तहत एक ब्रिगेड की कमान सौंपी गई थी और युद्ध कार्रवाई में वह शहीद हो गए थे। जनरल जोगिन्दर जसवन्त सिंह को सेना मुख्यालय, सैन्य संचालन निदेशालय में अतिरिक्त महानिदेशक मिलिटरी ऑपरेशंस (एडीजीएमओ) के रूप में भी चुना गया था। एडीजीएमओ के कार्यकाल के दौरान उन्होंने भारत-चीन सीमा मुद्दे पर भारत की नीति विकसित करने के लिए सकारात्मक योगदान दिया और संयुक्त कार्यकारी समूह के हिस्से के रूप में बीजिंग का दौरा किया।

जोगिन्दर जसवन्त सिंह 1998 में सियाचिन और सर क्रीक मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ वार्ता के लिए रक्षा मंत्रालय की टीम के सदस्य भी थे। इसके बाद उन्होंने भारत के रक्षा मंत्री के साथ सिएरा लियोन का भी दौरा किया, जहां एक भारतीय दल ने संयुक्त राष्ट्र के हिस्से के रूप में एक मिशन का सफल संचालन किया। एडीजीएमओ के रूप में, 1999 के कारगिल संघर्ष के दौरान वह भारतीय सेना का सार्वजनिक चेहरा थे। इस युद्ध की योजना और निष्पादन में उनकी सेवाओं की मान्यता में उन्हें अति विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित किया गया था।

राजनीतिक जीवन

27 जनवरी, 2008 को जनरल जोगिन्दर जसवन्त सिंह ने अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल पद की शपथ ग्रहण की। 28 मई, 2013 तक वह इस पद पर रहे, जिसके बाद लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) निर्भय शर्मा प्रदेश के अगले राज्यपाल बने। जनवरी 2017 में जनरल सिंह तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष और पंजाब के उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल की उपस्थिति में शिरोमणि अकाली दल में शामिल हो गए। 2017 पंजाब विधान सभा चुनाव में उन्होने शिरोमणि अकाली दल के उम्मीदवार के रूप में पटियाला शहरी सीट से कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ा, जिसमें उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

  1. पुनर्प्रेषित साँचा:राज्यपाल, उपराज्यपाल व प्रशासक