विशेषकच्छेद्य कला: Difference between revisions

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[[चौंसठ कलाएँ जयमंगल के मतानुसार|जयमंगल के मतानुसार]] चौंसठ कलाओं में से यह एक कला है। [[भारत]] में प्राचीन काल से ही मस्तक पर तिलक लगाने की परम्परा है। विभिन्न संस्कारों में जैसे विवाह में वधु का और वर का मस्तक विभिन्न प्रकार की कलाकृति से सुशोभित किया जाता है जिसका प्रचलन आज भी है। और भारत में हिन्दू स्त्री के सुहाग के चिन्ह के रूप में मस्तक पर बिन्दी भी लगाई जाती है। [[हिन्दू धर्म]] के अनेक सम्प्रदायों में विभिन्न प्रकार के तिलक, [[चन्दन]], [[हल्दी]] और [[केसर]] युक्त सुगन्धित पदार्थों का प्रयोग करके बनाया जाता है। वैष्णव गोलाकार बिन्दी, शाक्त तिलक और शैव त्रिपुण्ड से अपना मस्तक सुशोभित करते है।
[[चौंसठ कलाएँ जयमंगल के मतानुसार|जयमंगल के मतानुसार]] चौंसठ कलाओं में से यह एक कला है। [[भारत]] में प्राचीन काल से ही मस्तक पर तिलक लगाने की परम्परा है। विभिन्न संस्कारों में जैसे विवाह में वधु का और वर का मस्तक विभिन्न प्रकार की कलाकृति से सुशोभित किया जाता है जिसका प्रचलन आज भी है। और [[भारत]] में हिन्दू स्त्री के सुहाग के चिन्ह के रूप में मस्तक पर बिन्दी भी लगाई जाती है। [[हिन्दू धर्म]] के अनेक सम्प्रदायों में विभिन्न प्रकार के तिलक, [[चन्दन]], [[हल्दी]] और [[केसर]] युक्त सुगन्धित पदार्थों का प्रयोग करके बनाया जाता है। वैष्णव गोलाकार बिन्दी, शाक्त तिलक और शैव त्रिपुण्ड से अपना मस्तक सुशोभित करते है।


==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==

Revision as of 09:38, 20 September 2010

जयमंगल के मतानुसार चौंसठ कलाओं में से यह एक कला है। भारत में प्राचीन काल से ही मस्तक पर तिलक लगाने की परम्परा है। विभिन्न संस्कारों में जैसे विवाह में वधु का और वर का मस्तक विभिन्न प्रकार की कलाकृति से सुशोभित किया जाता है जिसका प्रचलन आज भी है। और भारत में हिन्दू स्त्री के सुहाग के चिन्ह के रूप में मस्तक पर बिन्दी भी लगाई जाती है। हिन्दू धर्म के अनेक सम्प्रदायों में विभिन्न प्रकार के तिलक, चन्दन, हल्दी और केसर युक्त सुगन्धित पदार्थों का प्रयोग करके बनाया जाता है। वैष्णव गोलाकार बिन्दी, शाक्त तिलक और शैव त्रिपुण्ड से अपना मस्तक सुशोभित करते है।

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