हिन्दुस्तानी संगीत

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उत्तरी भारत और पाकिस्तान का शास्त्रीय संगीत 12वीं सदी के अंत एवं 13वीं सदी की शुरुआत में उपमहाद्वीप के उत्तरी हिस्सों पर इस्लामी जीत के कारण अरबी एवं ईरानी संगित शैलियों पर ज़ोर दिया गया। बाद में ये शैलियाँ प्राचीन भारतीय परंपराओं के साथ घुलमिल गई, परिणामतः एक नई विशिष्ट शैली का विकास हुआ। इससे हिंदुस्तानी संगीत में नए आयाम जुड़े। प्राचीन भारतीय परंपरा दक्षिण भारत में विदेशी प्रभाव में क़ायम रही, जिसकी सीमा मोटे तौर पर आंध्र प्रदेश में हैदराबाद शहर है।

उत्तरी और दक्षिणी भारत के संगीत में रागों के मूल लयात्मक सिद्धांतों एवं ताल के सुर संबंधी सिद्धांतों में समरुपता है, लेकिन उनकी शैलीयों एवं वर्गीकरण में क़ाफी भिन्नता है। उत्तरी संगीत में वाद्य संगीत ज्यादा प्रबल है, जिसमें विभिन्न वाद्य यंत्र अधिक संख्या में प्रयुक्त होते हैं; और कुछ शुद्ध वाद्य यंत्र विधाएँ हैं, जैसे गत, जिसमें किसी हद तक एक ही धुन को विभिन्न विधियों से प्रस्तुत किया जाता है।

हिंदुस्तानी संगीत को दक्षिण के संगीत की तुलना में ज़्यादा भावप्रद एवं रूमानी माना जाता है। उदाहरणस्वरूप आलाप में लंबी तान उनींदी विह्वलता पैदा कर सकती है। चरणबद्ध तरीक़े से द्रुत से द्रुत ताल, कभी-कभी ताल की संरचना में सहवर्ती परिवर्तनों के साथ, हिंदुस्तानी संगीत की विशेषता है।  

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