जनस्थान शक्तिपीठ

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हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। ये अत्यंत पावन तीर्थ कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। जनस्थान, 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ है।

स्थिति

मध्य रेलवे के मुम्बई-दिल्ली मुख्य रेल मार्ग पर नासिक रोड स्टेशन से लगभग 8 कि.मी. दूर पंचवटी नामक स्थान पर स्थित भद्रकाली मंदिर ही शक्तिपीठ है, जहाँ सती का "चिबुक" भाग गिरा था। यहाँ की शक्ति 'भ्रामरी' तथा शिव ' विकृताक्ष' हैं- "चिबुके भ्रामरी देवी विकृताक्ष जनस्थले"।[1] अत: यहाँ चिबुक ही शक्तिरूप में प्रकट हुआ। इस मंदिर में शिखर नहीं है, सिंहासन पर नवदुर्गाओं की मूर्तियाँ है, जिसके बीच के भद्रकाली की ऊँची मूर्ति है।

नामकरण

इस स्थान के नासिक नामकरण के पीछे यहाँ की नौ छोटी-छोटी पहाड़ियाँ हैं, जिनके कारण इसका नाम पड़ा-'नव शिव', जो शनै:शनै: बदल कर 'नासिक' हो गया। इन सभी नौ पहाड़ियाँ पर माँ दुर्गा का स्थान है, जिनमें एक स्थान पर भद्रकाली की पूर्व परंपरानुगत स्वयंभू मूर्ति है।

स्थापना

इस्लामी शासन में मूर्ति अपमानित न हो, इसलिए गाँव के बाहर उक्त पहाड़ी पर मूर्ति स्थापित की गयी तथा सन 1790 में सरदार गणपत राव पटवर्धन दीक्षित ने यह वर्तमान मंदिर बनवाया। इसे देवी का मठ कहा गया तथा मंदिर के ऊपर दो मंजिलें बनायीं गयीं। यवनों के उत्पात की आशंका से मंदिर पर कलश स्थापित नहीं किया गया। इसी से इस पर शिखर नहीं हैं। पंच धातु निर्मित माँ भद्रकाली की अत्यंत आकर्षक प्रतिमा लगभग 38 सेंटीमीटर (15 इंच) ऊँची है और इनके 18 भुजाओं में विविध आयुध हैं।

त्रिकाल-पूजन

उल्लेखनीय है कि यहाँ मंदिर की ओर से ही 'प्राच्यविद्यापीठ' की स्थापना की गयी है, जहाँ पुरातन गुरु परंपराधारित वेद-वेदांग का अध्ययन होता है। छात्र मंदिर के आस-पास स्थित ब्राह्मणों के 350 घरों से मधुकरी (भिक्षा) लाते हैं। उसी का नैवेद्य माँ को अर्पित किया जाता है तथा माँ के त्रिकाल-पूजन की व्यवस्था भी छात्र ही करते हैं। निकटस्थ प्रवासी ब्राह्मण परिवारों के घर से क्रमानुसार पूजार्चन, नैवेद्य, देवी पाठ, नंदादीप आदि के लिए सामग्री-संग्रहण किया जाता है। नवरात्र का उत्सव शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से पूर्णिमा तक धूमधाम से मनाया जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. तंत्र चूड़ामणि

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