मैसूर युद्ध प्रथम

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प्रथम मैसूर युद्ध 1767 से 1769 ई. तक लड़ा गया। 1761 के आस-पास एक शाही मुसलमान हैदर अली, जो पहले से ही प्रधान सेनापति था, मैसूर राज्य का स्वयंभु शासक बन गया और अपने प्रभुत्व क्षेत्र का विस्तार करने लगा। प्रथम मैसूर युद्ध 1667 से 1669 ई. तक हुआ,जिसका कारण मद्रास में अंग्रेज़ों की आक्रामक नीतियाँ थीं।

हैदर अली की चाल

1766 ई. में जब हैदर अली मराठों से एक युद्ध में उलझा था, मद्रास के अंग्रेज़ अधिकारियों ने निज़ाम की सेवा में एक ब्रिटिश सैनिक टुकड़ी भेज दी थी, और ईस्ट इंडिया कंपनी ने हैदर अली के विरुद्ध उत्तरी सरकारों के समर्पण के लिए हैदराबाद के निज़ाम से गठबंधन कर लिया। जिसकी सहायता से निज़ाम ने मैसूर के भू-भागों पर आक्रमण कर दिया था। अंग्रेज़ों की इस अकारण शत्रुता से हैदर-अली को बड़ा क्रोध आया। उसने मराठों से संधि कर ली, अस्थिर बुद्धि निज़ाम को अपनी ओर मिला लिया और निज़ाम की सहायता से कर्नाटक पर, जो उस समय अंग्रेज़ों के नियंत्रण में था, आक्रमण कर दिया।

संधि

1768 ई. में निज़ाम युद्ध से हट गया और उसने अकेले हैदर अली को अंग्रेज़ों का सामना करने के लिए छोड़ दिया। इस प्रकार प्रथम मैसूर युद्ध का सूत्रपात हुआ। यह युद्ध दो वर्षों तक चलता रहा और 1769 ई. में जब हैदर अली का अचानक धावा मद्रास के क़िले की दीवारों तक पहुँच गया, उसका अंत हुआ। मद्रास कौंसिल के सदस्य भयाकुल हो उठे और उन्होंने हैदर-अली द्वारा सुलह की शर्तें स्वीकार कर लीं।

संधि की शर्तें

संधि की शर्तों के अनुसार दोनों पक्षों ने जीते गए भू-भाग लौटा दिए और अंग्रेज़ों ने विवशता में हैदर अली की शर्तों पर 4 अप्रैल, 1769 को 'मद्रास की संधि' कर ली। संधि की शर्तों के अनुसार यह एक प्रतिरक्षात्मक संधि थी। दोनों पक्षों ने एक दूसरे के जीते हुए क्षेत्रों को वापस किया, परन्तु हैदर अली ने 'करुर' के क्षेत्र को वापस नहीं किया। अंग्रेज़ों ने हैदर अली पर किसी और के आक्रमण के समय रक्षा करने का वायदा किया।


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