चंपारण्य

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चंपारण्य या 'चंपकारण्य' प्राचीन काल में बड़ी गंडक के तट के समीप विस्तीर्ण वन था। महाभारत, वनपर्व में तीर्थ यात्रानुपर्व के अंतर्गत कौशिकी नदी (वर्तमान कोसी, बिहार) के पश्चात चंपारण्य का उल्लेख है-

'ततो गच्छेत राजेन्द्र चंपकारण्यमुत्तमम्, तत्रोष्य रजनीमेकां गोसहस्त्रफलं लभेत्'[1]

  • चंपारण्य के क्षेत्र में गंडकी नदी के तट पर बगहा नगर बसा हुआ है, इसे लोग 'नारायणी' तथा 'शालिग्रामी' भी कहते हैं।
  • बगहा से 25 मील की दूरी पर दरबाबारी में गंडक, पंचनद तथा सोनहा नदियों का संगम है।
  • निकट ही बावनगढ़ी के खंडहर हैं, जहाँ पांडवों ने अपने वनवास का कुछ समय व्यतीत किया था।
  • पौराणिक किंवदतियों के अनुसार चंपारण्य वही स्थान है, जहाँ श्रीमद्भागवत में वर्णित सजबाह युद्ध हुआ था, किंतु श्रीमद्भागवत के अनुसार इस आख्यायिका की घटना स्थली त्रिकूट पर्वत के निकट थी।
  • गंडक की घाटी में गज और ग्राह के पैरों के चिन्ह भी[2] पाए जाते हैं।
  • चंपारण्य में संगम के निकट वह स्थान भी है, जहाँ से सीता ने राम की सेना तथा लवकुश में होने वाला युद्ध देखा था।
  • यहीं संग्रामपुर का ग्राम है, जहाँ वाल्मीकि का आश्रम बताया जाता है।
  • चंपारन का ज़िला प्राचीन चंपारण्य के क्षेत्र में ही बसा हुआ है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 319 |

  1. वनपर्व 84, 133.
  2. श्रद्धालु लोगों की कल्पना के अनुसार

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