कवितावली (पद्य)-अरण्य काण्ड

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right|thumb|250px|कवितावली

अरण्य काण्ड

 

मारीचानुधावन
 

 
(मारीचानुधावन)

पंचबटीं बर पर्नकुटी तर बैठे हैं रामु सुभायँ सुहाए।

सोहै प्रिया, प्रिय बंधु लसै ‘तलसी’ सब अंग घने छबि छाए।।
 
देखि मृगा मृगनैनी कहे प्रिय बेन, ते प्रीतम के मन भाए।

हेमकुरंगके संग सरासनु सायकु लै रघुनायकु धाए।।

(इति अरण्य काण्ड ) </poem>

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