मारवाड़

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मारवाड़ उत्तर मुग़ल काल में राजस्थान का एक विस्तृत राज्य था। मारवाड़ संस्कृत के मरूवाट शब्द से बना है जिसका अर्थ है मौत का भूभाग। मारवाड़ को मरुस्थल, मरुभूमि, मरुप्रदेश आदि नामों से भी जाना जाता है। भौगोलिक दृष्टिकोण से मारवाड़ राज्य के उत्तर में बीकानेर, पूर्व में जयपुर, किशनगढ़ और अजमेर, दक्षिण-पूर्व में अजमेर व उदयपुर, दक्षिण में सिरोहीपालनपुर एवं उत्तर-पश्चिम में जैसलमेर से घिरा हुआ है। 13वीं शताब्दी में राठौर मारवाड़ प्रान्तर में आये तथा अपनी वीरता के कारण उन्होंने यहां अपने राज्य की स्थापना की।

मारवाड़ चित्रशैली

मारवाड़ के राठौड़ौ का मूल पुरुष 'राव सीहा' था जिसने सन् 1246 के लगभग मारवाड़ की धरती पर अपना पैर जमाया। इसी के वंश में रणमल के पुत्र जोधा ने 1459 ई. में 'चिड़ियाटूक' पहाड़ी पर एक नए गढ़ की नींव रखी और उसकी तलहटी में अपने नाम से जोधपुर नगर बसाया। राव जोधा ने जोधपुर को अपनी राजधानी बनाया। यह नगर 26.18' उत्तरी अक्षांश ओर 73.1' पूर्वी देशांतर पर स्थित है। 1610 ई. में राजा गज सिंह ने यहां का शासन संभाला। गजसिंह (1610 -1630 ई.) के पश्चात् जसवंत सिंह प्रथम (1638 - 1678 ई.) शासक हुए, जो महानकला प्रेमी थे। उनके शासन काल में कृष्णलीला विषयक चित्रों का सृजन हुआ। इनके पश्चात् क्रमशः अजीत सिंह 1724 ई. तक, अभय सिंह (1724 - 1748 ई.) तथा बख्त सिंह (1724 - 1752 ई.) के समय क्रमशः जोधपुर में अनेक सुन्दर चित्रों का निर्माण हुआ। बख्त सिंह के पुत्र विजय सिंह (1753 - 1766 ई.) के समय राधा-कृष्ण एवं नायक-नायिका भेद विषयक चित्रों का सृजन हुआ, यह परम्परा भीमसिंह (1766 - 1803 ई.) के समय तक अनवरत चलती रही। महाराजा मानसिंह (1803 - 1843 ई.) के समय रामायण, दुर्गा सप्तशती, शिव-पुराण, नाथ चरित्र, ढोलामारु आदि विषयों से संबंधित अनेक पोथी चित्रों का निर्माण हुआ। तख्त सिंह (1843 -1873 ई.) तथा जसवंत सिंह द्वितीय (1873 - 1895 ई.) के समय कृष्ण चरित्र का विशेष अंकन हुआ।[1]




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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