वैदेही वनवास -अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

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वैदेही वनवास अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' का प्रसिद्ध खण्डकाव्य है। इसका प्रकाशन 'प्रियप्रवास' के प्रकाशन के कोई 26 वर्ष बाद 1940 ई. में हुआ। अब तक इसके चार संस्करण निकल चुके हैं। 'हरिऔध' कृत खड़ीबोली के इस दूसरे प्रबन्ध काव्य में रामकथा के वैदेही वनवास प्रसंग को आधार बनाया गया है और करुण रस की निष्पत्ति कराई गयी है। किंतु इसमें 'प्रियप्रवास' की तुलना में बहुत कम लोकप्रियता मिल पायी है। यद्यपि इस कृति में कवि 'हरिऔध' ने यथासाध्य सरल तथा बोलचाल की भाषा अपनायी है।[1]

वैदेही वनवास -अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'
कुल अठारह (18) सर्ग
वैदेही वनवास प्रथम सर्ग
वैदेही वनवास द्वितीय सर्ग
वैदेही वनवास तृतीय सर्ग
वैदेही वनवास चतुर्थ सर्ग
वैदेही वनवास पंचम सर्ग
वैदेही वनवास षष्ठ सर्ग
वैदेही वनवास सप्तम सर्ग
वैदेही वनवास अष्टम सर्ग
वैदेही वनवास नवम सर्ग
वैदेही वनवास दशम सर्ग
वैदेही वनवास एकादश सर्ग
वैदेही वनवास द्वादश सर्ग
वैदेही वनवास त्रयोदश सर्ग
वैदेही वनवास चतुर्दश सर्ग
वैदेही वनवास पंचदश सर्ग
वैदेही वनवास षोडश सर्ग
वैदेही वनवास सप्तदश सर्ग
वैदेही वनवास अष्टदश सर्ग



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 2 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 583।

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