पांडर पिंजर मन भँवर -कबीर
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पांडर पिंजर मन भँवर, अरथ अनूपम बास। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! शरीर कुंद की झाड़ समान है, उसके पुष्प में मनोरथ की अनुपम संगुध है। उस पर मनरूपी भ्रमर मँडराता रहता है। उस झाड़ को साधक रामनाम जपरूपी अमर प्राणदायियी शक्ति से सींचता रहता है। तब उसमें विश्वास के फल प्रफुल्लित होते हैं। यही भक्ति की सार्थकता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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