कबीर सीतलता भई -कबीर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 12:16, 11 January 2014 by मेघा (talk | contribs) ('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Kabirdas-2.jpg |...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search
कबीर सीतलता भई -कबीर
कवि कबीर
जन्म 1398 (लगभग)
जन्म स्थान लहरतारा ताल, काशी
मृत्यु 1518 (लगभग)
मृत्यु स्थान मगहर, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ साखी, सबद और रमैनी
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कबीर की रचनाएँ

कबीर सीतलता भई, पाया ब्रह्य गियान।
जिहि बैसंदर जग जलै, सो मेरे उदक समान॥

अर्थ सहित व्याख्या

कबीरदास कहते हैं कि जब मेरे भीतर ब्रह्म-ज्ञान जगा तो समत्वजनित शीतलता व्याप्त हो गयी। जिस दुर्वचनरूपी अग्नि से सारा संसार जल रहा है, वह मेरे लिए जल के समान शीतल हो गया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः