महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 2 श्लोक 20-29

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द्वितीय (2) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: द्वितीय अध्याय: श्लोक 20-29 का हिन्दी अनुवाद

पार्थ! उस समय अग्निहोत्र में लगे हुए किसी वेदपाठी ब्राह्मण की होमधेनु उधर आ निकली। उसने अनजाने में उस धेनु को (हिस्त्र जीव समझकर) अकस्मात मार डाला। अनजाने में यह अपराध बन गया है, ऐसा समझकर कर्ण ने ब्राह्मण को सारा हाल बता दिया और उसे प्रसन्न करते हुए इस प्रकार कहा-। ’भगवन! मैंने अनजाने में आपकी गाय मार डाली है, अतः आप मेरा यह अपराध क्षमा करके मुझ पर कृपा कीजिये, ’कर्ण ने इस बात को बार-बार दुहराया, ब्राह्मण उसकी बात सुनते ही कुपित हो उठा और कठोर वाणी द्वारा उसे डांटता हुआ सा बोला- ’दुराचारी! तू मार डालने योग्य है। दुर्मते ! तू अपने इस पाप का फल प्राप्त कर ले। पापी! तू जिसके साथ सदा ईर्ष्या रखता है और जिसे परास्त करने के लिये निरन्तर चेष्टा करता है, उसके साथ युद्ध करते हुए तेरे रथ के पहिये को धरती निगल जायेगी। नारदजी का कर्ण को शाप प्राप्त होने का प्रसंग सुनाना नराधम! जब पृथ्वी में तेरा पहिया फॅंस जायेगा और तू अचेत-सा हो रहा होगा, उस समय तेरा शत्रु पराक्रम करके तेरे मस्तक को काट गिरायेगा। अब तू चला जा। ’ओ मूढ! जैसे असावधान होकर तूने इस गौ का बध किया है, उसी प्रकार असावधान-अवस्था में ही शत्रु तेरा सिर काट डालेगा।' इस प्रकार शाप प्राप्त होने पर कर्ण ने उस श्रेष्ठ ब्राह्मण को बहुत- सी गौएँ, धन और रत्न देकर उसे प्रसन्न करने की चेष्टा की। तब उसने इस प्रकार उत्तर दिया- ’सारा संसार आ जाये तो भी कोई मेरी बात को झूठी नहीं कर सकता। तू यहाँ से जा या खड़ा रह अथवा तुझे जो कुछ करना हो, वह कर ले। ब्राह्मण के ऐसा कहने पर कर्ण को बड़ा भय हुआ। उसने दीनतावश सिर झुका लिया। वह मन-ही-मन उस बात का चिन्तन करता हुआ परशुराम जी के पास लौट आया।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत राजधर्मानुशासन पर्व में कर्ण को ब्राह्मण का शाप नामक दूसरा अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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