महाभारत आदि पर्व अध्याय 10 श्लोक 1-8

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 08:39, 8 August 2015 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (1 अवतरण)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

दशम (10) अध्‍याय: आदि पर्व (पौलोम पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: दशम अध्याय: श्लोक 1-8 का हिन्दी अनुवाद

रूरू मुनि और डुण्डुभ का संवाद

रूरू बोला—सर्प ! मेरी प्राणों के समान प्यारी पत्नी को एक साँप ने डँस लिया था। उसी समय मैंने यह घोर प्रतिज्ञा कर ली कि जिस-जिस सर्प को देख लूँगा, उसे-उसे अवश्य मार डालूँगा। उसी प्रतिज्ञा के अनुसार मैं तुम्हें मार डालना चाहता हूँ। अतः आज तुम्हें अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ेगा।

डुण्डुभ ने कहा—ब्रह्मन ! वे दूसरे ही साँप हैं जो इस लोक में मनुष्यों को डँसते हैं। साँप की आकृति मात्र से ही तुम्हें डुण्डुभों को नहीं मारना चाहिये। अहो ! आश्चर्य है, बेचारे डुण्डुभ अनर्थ भोगने में सब सर्पो के साथ एक हैं; परन्तु उनका स्वभाव दूसरे सर्पों से भिन्न है। तथा दुःख भोगने में तो सब सर्पों के साथ एक हैं; किन्तु सुख सबका अलग-अलग है। तुम धर्मज्ञ हो, अतः तुम्हें डुण्डुभों की हिंसा नहीं करनी चाहिये।

उग्रश्रवाजी कहते हैं—डुण्डुभ सर्प का यह वचन सुनकर रूरू ने उसे कोई भयभीत ऋषि समझा, अतः उसका वध नहीं किया। इसके सिवा, बड़भागी रूरू ने उसे शान्ति प्रदान करते हुए कहा-‘भुजंगम ! बताओ, इस विकृत (सर्प) योनि में पड़े हुए तुम कौन हो?’

डुण्डुभ ने कहा—रूरो ! मैं पूर्व जन्म में सहस्त्रपाद नामक ऋषि था; किन्तु एक ब्राह्मण के शाप से मुझे सर्पयोनि में आना पड़ा है।

रूरू ने पूछा- भुजगोत्तम ! उस ब्राह्मण ने किसलिये कुपित होकर तुम्हें शाप दिया? तुम्हारा यह शरीर अभी कितने समय तक रहेगा?



« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः