महाभारत वन पर्व अध्याय 25 श्लोक 15-19

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 13:33, 19 July 2015 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replace - "{{महाभारत}}" to "{{सम्पूर्ण महाभारत}}")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

पञ्चविंश (25) अध्‍याय: वन पर्व (अरण्‍यपर्व)

महाभारत: वन पर्व: पञ्चविंश अध्याय: श्लोक 15-19 का हिन्दी अनुवाद

कुन्तीनन्दन महाराज युधिष्ठिर ! पर्वतशिखर के समान ऊँचे और बड़े-बड़े दाँतों वाले इन महाबली गजराजों की ओर तो देखो। ये भी विधाता के आदेश का पालन करने में लगे हैं। इसलिये मैं शक्ति का स्वामी हूँ ऐसा समझकर कभी अधर्माचरण न करें। नरेन्द्र  ! देखो, ये समस्त प्राणी विधाता के विधान के अनुसार अपनी योनि के अनुरूप सदा कार्य करते रहते हैं, अतः अपने को बल का स्वामी समझकर अधर्म न करें। कुन्तीनन्दन ! तुम अपने सत्य, कर्म, यथायोग्य बर्ताव तथा लज्जा आदि सद्गुणों के कारण समस्त प्राणियों से ऊँचे उठे हुए हो। तुम्हारा यश और तेज अग्नि तथा सूर्य के समान प्रकाशित हो रहा है। महानुभाव नरेश ! तुम अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार इस कष्ट साध्य वनवास की अवधि पूरी कर कौरवों के हाथ से अपनी तेजस्विनी राजलक्ष्मी को प्राप्त कर लोगे।

वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय ! तपस्वी महात्माओं के बीच में अपने सुहृदों के साथ बैठे हुए धर्मराज युधिष्ठिर से पूर्वोक्त बातें कहकर महर्षि मार्कण्डेय धौम्य एवं समस्त पाण्डवों से विदा ले उत्तर दिशा की ओर चल दिये।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत अर्जुनाभिगमनपर्व में द्वैतवनप्रवेशविषयक पच्चीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः