महाभारत विराट पर्व अध्याय 5 श्लोक 15-29

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पन्चम (5) अध्याय: विराट पर्व (पाण्डवप्रवेश पर्व)

महाभारत: विराट पर्व: पन्चम अध्याय: श्लोक 15-29 का हिन्दी अनुवाद

यह वृक्ष रास्ते से बहुत दूर जंगल में है। इसके आस-पास हिंसक जीव और सर्प आदि रहते हैं। विशेषतः यह दुर्गम श्मशानभूमि के निकट है; (अतः यहाँ तक किसी के आने या वृक्ष पर चढ़ने की सम्भावना नहीं है;) इसलिये इसी शमी-वृक्ष पर हम अपने अस्त्र-शस्त्र रखकर नगर में चलें। भारत ! ऐसा करके हम यहाँ जैसा सुयोग होगा, उसके अनुसार विचरण करेंगे। वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय ! धर्मराज युधिष्ठिर से ऐसा कहकर अर्जुन वहाँ अस्त्र-शस्त्रों को रखने के प्रयत्न में लग गये। कुरुश्रेष्ठ अर्जुन ने जिस धनुष के द्वारा एकमात्र रथ का आश्रय ले सम्पूर्ण देवताओं और मनुष्यों पर विजय पायी थी तथा अन्यान्य अनेक समृद्धशाली जनपदों पर विजय पताका फहरायी थी, जिस धनुष ने दिव्य बल से सम्पन्न असुरों आदि की सेनाओं का भी संहार किया था, जिसकी टंकारघ्वनि बहुत दूर तक फैलती है, उस उदार तथा अत्यन्त भयंकर गाण्डीव धनुष की प्रत्यंचा अर्जुन ने उतार डाली। परंतप वीर युधिष्ठिर ने जिके द्वारा समूचे कुरुक्षेत्र की रक्षा की थी, उस धनुष की अक्षय डोरी को उन्होंने भी उतार दिया। भीमसेन ने जिसके द्वारा पान्चाल वीरों पर विजय पायी थी, दिग्विजय के समय उन्होंने अकेले ही जिसकी सहायता से बहुतेरे शत्रुओं का परास्त किया था, वज्र के फटने और पर्वत के विदीर्ण होने के समान जिसका भयंकर टंकार सुनकर कितने ही शत्रु युद्ध छोड़कर भाग खड़े हुए तथा जिसके सहयोग से उन्होंने सिन्धुराज जयद्रथ को परास्त किया था, अपने उसी धनुष की प्रत्यन्चा को भीमसेन ने भी उतार दिया । जिनका मुख ताँबे के समान लाल था, जो बहुत कम बोलते थे, उन महाबाहु माद्रीनन्दन नकुल ने दिग्विजय के समय जिस धनुष की सहायता से पश्चिम दिशा पर विजय प्राप्त की थी, समूचे कुरुकुल में जिनके समान दूसरा कोई रूपवान न होने के कारण जिन्हें नकुल कहा जाता था, जो युद्ध में शत्रुओं को रुलाने वाले शूरवीर थे; उन वीरवर नकुल ने भी अपने पूर्वोक्त धनुष की प्रत्यन्चा उतार दी। शास्त्रानुकूल तथा उदार आचार-विचार वाले शक्तिशाली वीर सहदेव ने भी जिसकी सहायता से दक्षिण दिशा को जीता था, उस धनुष की डोरी उतार दी। धनुषों के साथ-साथ पाण्डवों ने बड़े-बड़े एवं चमकीले खंग, बहुमूल्य तूणीर, छुरे के समान तीखी धार वाले क्षुरधार और विपाठ नामक बाण भी रख दिये। वैशम्पायनजी कहते हैं- राजन् ! तदनन्तर कुन्तीनन्दन युधिष्ठिर ने नकुल को आज्ञा दी- ‘वीर ! तुम इस शमी पर चढ़कर ये धनुष आदि अस्त्र-शस्त्र रख दो’। तब नकुल ने उस वृक्ष पर चढ़कर उसके खोखलों में वे धनुषआदि आयुध स्वयं अपने हाथ से रक्खे। उसके जो खोखले थे, वे नकुल को दिव्यरूप जान पड़े।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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