महाभारत आश्रमवासिक पर्व अध्याय 7 श्लोक 16-23

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 14:07, 23 August 2015 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (1 अवतरण)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

सप्तम (7) अध्याय: आश्रमवासिक पर्व (आश्रमवास पर्व)

महाभारत: आश्रमवासिक पर्व: सप्तम अध्याय: श्लोक 16-23 का हिन्दी अनुवाद

गुप्तचरों द्वारा शत्रु सेना की जाँच पड़ताल करके अपनी सेनिक शक्ति का भी निरीक्षण करे। फिर अपनी या शत्रु की भूमि पर युद्ध आरम्भ करे। राजा को चाहिये कि वह पारितोषिक आदि के द्वारा सेना को संतुष्ट रखे और उसमें बलवान् मनुष्यों की भर्ती करे । अपने बलाबल को अच्छी तरह समझकर साम आदि उपायों के द्वारा संधि या युद्ध के लिये उद्योग करे। महाराज ! इस जगत् में सभी उपायों द्वारा शरीर की रक्षा करनी चाहिये और उसके द्वारा इहलोक तथा परलोक में भी अपने कल्याण का उत्तम साधन करना उचित है। महाराज ! जो राजा इन सब बातों का विचार करके इनके अनुसार ठीक ठीक आचरण और प्रजा का धर्मपूर्वक पालक करता है, वह मृत्यु के पश्चात् स्वर्गलोक में जाता है। तात ! कुरूश्रेष्ठ ! इस प्रकार तुम्हें इहलोक और परलोक में सुख पाने के लिये सदा ही प्रजावर्ग के हित साधन में संलग्न रहना चाहिये। नृपश्रेष्ठ ! भीष्म जी, भगवान श्रीकृष्ण तथा विदुर ने तुम्हें सभी बातों का उपदेश कर दिया है । मेरा भी तुम्हारे ऊपर प्रेम है, इसीलिये मैंने भी तुम्हें कुछ बताना आवश्यक समझा है। यज्ञ में प्रचुर दक्षिणा देने वाले महाराज ! इन सब बातों का यथोचित रूप से पालन करना । इससे तुम प्रजा के प्रिय बनोगे और स्वर्ग में सुख पाओगे। जो राजा एक हजार अश्वमेध यज्ञों का अनुष्ठान करता है अथवा दूसरा जो नरेश धर्मपूर्वक प्रजा का पालन करता है, उन दोनों को समान फल प्राप्त होता है।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्रमवासिक पर्व के अन्तर्गत आश्रमवास पर्व में धृतराष्ट्र का उपसंवाद विषयक सातवाँ अध्याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः