महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 14 श्लोक 37-57

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 09:34, 25 August 2015 by दिनेश (talk | contribs) ('==चतुर्दश (14) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)== <div st...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

चतुर्दश (14) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: चतुर्दश अध्याय: श्लोक 37-57 का हिन्दी अनुवाद

दूसरी ओर सेनापति धृष्‍टधुम्न ने त्रिगर्तराज सुशर्मा को उसके मर्मस्‍थानो में अत्‍यन्‍त चोट पहॅुचायी । यह देख सुशर्मा ने भी तोमर द्वारा धृष्‍टधुम्न के गले की हॅसलीपर प्रहार किया । समर भूमि मे महापराक्रमी मत्‍स्‍यदेशीय वीरो के साथ विराट ने विकर्तन पुत्र कर्ण को रोका । वह अद्रुत सी बात थी । वहां सूतपुत्र कर्णका भयंकर पुरूषार्थ प्रकट हुआ । उसने झुकी हुई गॉठवाले बाणों द्वारा उनकी समस्‍त सेना की प्रगति रोक दी । महाराज ! तदनन्‍तर राजा द्रुपद जाकर भगदत्‍त से भिड़ गये । महाराज ! फिर उन दोनों मे विचित्र सा युद्ध होने लगा । पुरूषश्रेष्‍ठ भगदत्‍त ने झुकी हुई गॉठवाले बाणों से राजा द्रुपद को उनके सारथि, रथ और ध्‍वज सहित बींध डाला । यह देख द्रुपद ने कुपित हो शीघ्र ही झुकी हुई गॉठवाले बाण के द्वारा महारथी भगदत्‍त की छाती में प्रहार किया । भूरिश्रवा और शिखण्‍डी - ये दोनों संसार के श्रेष्‍ठ योद्धा और अस्‍त्रविधा के विशेषज्ञ थे, उन दोनों ने सम्‍पूर्ण भूतों को त्रास देनेवाला युद्ध किया । राजन ! पराक्रमी भूरिश्रवा ने रणक्षेत्र में द्रुपदपुत्र महारथी शिखण्‍डी को सायकसमूहों की भारी वर्षा करके आच्‍छादित कर दिया । प्रजानाथ ! भरतनन्‍दन ! तब क्रोध में भरे हुए शिखण्‍डी ने नब्‍बे बाण भरकर सोमदतकुमार भूरिश्रवा को कम्पित कर दिया । भयंकर कर्म करने वाले राक्षस घटोत्‍कच और अलम्‍बुष ये दोनो एक दूसरे को जीतने की इच्‍छा से अत्‍यन्‍त अद्रुत युद्ध करने लगे । वे घंमड मे भरे हुए निशाचर सैकड़ों मायाओं की सृष्टि करते और माया द्वारा ही एक-दूसरे को परास्‍त करना चाहिते थे ।वे लोगों को अत्‍यन्‍त आश्‍चर्यमें डालते हुए अदृश्‍यभाव से विचर रहे थे । चेकितान अनुविन्‍द के साथ अत्‍यन्‍त भयंकर युद्ध करने लगे, मानो देवासुर- संग्राम मे महाबली बल और इन्‍द्र लड़ रहे हों। राजन ! जैसे पूर्वकाल में भगवान विष्‍णु हिरण्‍याक्ष के साथ युद्ध करते थे, उसी प्रकार उस रणक्षेत्र में लक्ष्‍मण क्षत्रदेव के साथ भारी संग्राम कर रहा था । राजन ! तदनन्‍तर विधिपूर्वक सजाये हुए चचल घोड़ों वाले रथपर आरूढ़ हो गर्जना करते हुए राजा पौरव ने सुभद्राकुमार अभिमन्‍यु पर आक्रमण किया । तब शत्रुओंका दमन और युद्ध की अभिलाषा करने वाले महाबली अभिमन्‍यु भी तुरंत सामने आया और उनके साथ महान युद्ध करने लगा । पौरवने सुभद्राकुमार पर बाण समूहों की वर्षा प्रारम्‍भ कर दी । यह देख अर्जुनपुत्र अभिमन्‍यु ने उनके ध्‍वज, छत्र, और धनुष को काटकर धरती पर गिरा दिया । फिर अन्‍य सात शीघ्रगामी बाणों द्वारा पौरव को घायल करके अभिमन्‍यु ने पॉच बाणों से उनके घोड़ो और सारथि को भी क्षत-विक्षत कर दिया । तत्‍पश्‍चात् अपनी सेना का हर्ष बढ़ाते और बारबांर सिंह के समान गर्जना करते हुए अर्जुन कुमार अभिमन्‍यु ने तुरंत ही एक ऐसा बाण हाथ में लिया, जो राजा पौरव का अन्‍त कर डालने में समर्थ था उस भयानक दिखायी देनेवाले सायक को धनुष पर चढ़ाया हुआ जान कृतवर्मा ने दो बाणों द्वारा अभिमन्‍यु के सायक सहित धनुष को काट डाला । तब शत्रुवीरों का संहार करने वाले सुभद्राकुमार ने उस कटे हुए धनुष को फेंककर चमचमाती हुई तलवार खींच ली और ढाल हाथ में ले ली । उसने अपनी शक्ति का परिचय देते हुए सुशिक्षित हाथोवाले पुरूष की भॉति अनेक ताराओं के चिह्रों से युक्‍त ढाल के साथ अपनी तलवार को घुमाते और अनेक पैंतरे दिखाते हुए रणभूमि में विचरना आरम्‍भ किया ।


'

« पीछे आगे »


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः